Jamshedpur Disaster: विधायक पूर्णिमा साहू ने संभाली कमान, फटे पाइप से तबाही पर पहुंचाई राहत
जमशेदपुर के देव नगर में टाटा स्टील यूआईएसएल की हाई प्रेशर पाइप फटने से कई घर तबाह हो गए। छतें टूटीं, सामान बर्बाद हुआ। विधायक पूर्णिमा साहू ने राहत पहुंचाई और प्रशासन से मुआवजे की मांग की।

जमशेदपुर, जो हमेशा से उद्योग और तकनीक का केंद्र रहा है, अब एक ऐसी खबर का गवाह बना जिसने कई परिवारों की नींद उड़ा दी। बाराद्वारी के देव नगर इलाके में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब टाटा स्टील यूआईएसएल (पहले जुस्को) की हाई प्रेशर रॉ वॉटर सप्लाई पाइप अचानक फट गई।
तेज जलप्रवाह इतना जबरदस्त था कि देखते ही देखते कई कच्चे मकानों की छतें टूट गईं, दीवारें गिर गईं और घरों का सारा सामान बह गया। अनाज, कपड़े, ज़रूरी दस्तावेज़—सब पानी में तबाह हो गए। कुछ परिवारों की जिंदगी भर की कमाई कुछ ही मिनटों में कीचड़ में बदल गई।
इतिहास की पृष्ठभूमि: पानी से जुड़ी आपदाएं कोई नई बात नहीं...
भारत में पानी से जुड़ी आपदाओं का लंबा इतिहास रहा है—चाहे वो 1978 की बिहार बाढ़ हो या 2005 का मुंबई जलप्रलय। लेकिन टेक्नोलॉजिकल हब के रूप में पहचान रखने वाला जमशेदपुर इस तरह की घटना से इतने बड़े स्तर पर पहली बार प्रभावित हुआ है।
बाराद्वारी क्षेत्र की ये पाइपलाइन दशकों पुरानी बताई जा रही है, जो कभी जमशेदपुर की ताकत मानी जाती थी, आज लापरवाही और निगरानी की कमी का प्रतीक बन गई है।
नेताओं की तत्परता या संवेदना की राजनीति?
घटना के कुछ ही घंटों बाद जमशेदपुर पूर्वी की विधायक पूर्णिमा साहू मौके पर पहुंचीं। उन्होंने मौके का मुआयना किया, पीड़ितों से मुलाकात की और उन्हें राहत सामग्री बांटी। चावल, दाल, आटा जैसी ज़रूरत की चीज़ें बांटी गईं।
विधायक साहू ने वादा किया कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं होती, तब तक टैंकर के माध्यम से प्रतिदिन पानी की आपूर्ति की जाएगी। साथ ही उन्होंने जिला प्रशासन और टाटा स्टील यूआईएसएल से समन्वय कर उचित मुआवजा और पुनर्वास योजना की बात भी कही।
स्थानीय प्रशासन पर उठते सवाल...
इस हादसे ने स्थानीय प्रशासन और टाटा स्टील यूआईएसएल की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या इन पाइपलाइनों की समय-समय पर तकनीकी जांच नहीं होनी चाहिए थी? क्या एक हाई प्रेशर लाइन को रिहायशी इलाकों से होकर गुजरना चाहिए?
विधायक पूर्णिमा साहू ने खुद माना कि तकनीकी निगरानी और निरीक्षण व्यवस्था को और मज़बूत किया जाना जरूरी है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।
पीड़ितों की आंखों में आंसू और मन में डर...
घटना के बाद से ही पीड़ितों की आंखें सवाल पूछ रही हैं—“हमारा कसूर क्या था?” किसी का बच्चा कीचड़ में बर्बाद हुई किताबें उठाने की कोशिश करता दिखा, तो कोई वृद्ध महिला अपनी भीगी हुई रोटियों को देखकर फूट-फूट कर रो पड़ी।
आगे क्या?
अब सवाल ये है कि क्या वाकई पीड़ितों को उचित मुआवजा मिलेगा? क्या पुनर्वास की योजना सिर्फ कागज़ों पर ही रह जाएगी या धरातल पर कुछ नजर भी आएगा?
विधायक साहू ने यह भी बताया कि वो जिला उपायुक्त से मिलकर पुनर्वास कार्यों में सहयोग सुनिश्चित करेंगी।
जमशेदपुर की ये घटना बताती है कि कभी-कभी आधुनिकता के नाम पर बनी व्यवस्थाएं आम जनता के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं, अगर उन्हें सही तरीके से मॉनिटर नहीं किया जाए। अब देखना ये है कि प्रशासन इस चेतावनी को गंभीरता से लेता है या इसे भी बाकी हादसों की तरह भुला दिया जाएगा।
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