Jamshedpur Missing Mystery: पांच महीने से कोई सुराग नहीं, मां बोलीं – “अब बस वही मेरी आखिरी उम्मीद है”
जमशेदपुर के पास हासाडुंगरी का मिंटू पांच महीने से लापता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे की तलाश में उसकी मां इशरत खातून ने पुलिस से लगाई गुहार। जानिए पूरी कहानी।

जमशेदपुर (झारखंड): 18 अक्टूबर 2024 की शाम थी, जब हासाडुंगरी के एक छोटे से मोहल्ले से मोहम्मद आज़ाद खान उर्फ मिंटू अचानक बिना किसी को बताए कहीं निकल गया। आम दिनों की तरह परिवार ने सोचा, "कुछ दिन में लौट आएगा" — लेकिन इस बार उसकी वापसी अब तक नहीं हुई।
अब पांच महीने गुजर चुके हैं, और मिंटू की मां इशरत खातून की उम्मीदें धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं। यह कोई सामान्य गुमशुदगी नहीं, बल्कि एक मां की तड़प और समाज की उदासीनता की वो कहानी है, जिसे सुनकर दिल कांप उठता है।
कौन है मिंटू? क्यों बढ़ी है चिंता?
मिंटू, जो कि मानसिक रूप से अस्वस्थ बताया गया है, पहले भी कई बार घर से गायब हो चुका है। लेकिन हर बार 8 से 10 दिनों में लौट आता था। उसकी मां इशरत खातून कहती हैं, “वो थोड़ा कमजोर ज़रूर है, पर हर बार लौट आता था। अबकी बार ऐसा क्या हुआ कि उसका कोई पता नहीं चल रहा?”
हासाडुंगरी जैसे इलाके में मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। सामाजिक दृष्टिकोण भी अब तक पिछड़ा हुआ है, जहां मानसिक रोगों को बीमारी नहीं, बल्कि ‘कमजोरी’ समझा जाता है। ऐसे में मिंटू जैसे लोग अक्सर खो जाते हैं — कहीं भी, किसी के भी बीच।
1 मार्च को दर्ज हुई शिकायत, पुलिस जुटी जांच में
कपाली ओपी थाना में मिंटू की गुमशुदगी की लिखित शिकायत 1 मार्च 2025 को दर्ज कराई गई। लेकिन सवाल उठता है — क्या बहुत देर हो चुकी है?
पुलिस अब मामले की छानबीन में जुटी है, लेकिन कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लगा है।
इशरत खातून ने कहा, “मेरा सिर्फ एक ही बेटा है, वही मेरी जिंदगी का सहारा था। अब तो हर रात लगता है कि शायद वो दरवाजे पर खड़ा हो। लेकिन अब सिर्फ खामोशी बची है।”
मानसिक स्वास्थ्य और लापता मामले: एक अनदेखा संकट
भारत में हर साल हजारों लोग लापता होते हैं, जिनमें से बहुत से मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल करीब 70,000 से ज्यादा लोग गुमशुदा दर्ज होते हैं, जिनमें बड़ी संख्या मानसिक रूप से पीड़ितों की होती है।
ऐसे मामलों में लापरवाही, सही समय पर कार्रवाई न होना, और सामाजिक उदासीनता सबसे बड़े कारण बनते हैं। मिंटू का मामला भी इसी कड़ी का एक जीवंत उदाहरण है।
मां की आखिरी उम्मीद: कोई तो बताओ मिंटू कहां है?
इशरत खातून की आंखों में सिर्फ सवाल हैं —
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क्या मेरा बेटा ज़िंदा है?
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क्या किसी ने उसे देखा है?
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क्या वो कहीं किसी अस्पताल, रेलवे स्टेशन या सड़क किनारे भटक रहा है?
वो कहती हैं, “अगर किसी को भी मेरा बेटा कहीं दिखे, तो प्लीज़ पुलिस को या हमें खबर करें। वो सफेद कुर्ता-पायजामा पहने था और बोलचाल में थोड़ा धीमा है। उसका नाम पुकारो तो पहचान लेता है।”
समाज की भूमिका: अब चुप रहने का समय नहीं
यह सिर्फ एक मां की गुहार नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति से जुड़ा सवाल है —
क्या हम किसी लापता, असहाय को देखकर नज़रें फेर लेते हैं?
क्या हमें मिंटू जैसे लोगों को पहचानने और उनकी मदद करने की ज़रूरत नहीं है?
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