Jamshedpur Hospital: गर्भवतियों के इलाज से इनकार, पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मचा हंगामा

जमशेदपुर के बिष्टूपुर अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को इलाज से इनकार पर हुआ जमकर हंगामा। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद दो महिलाओं को मिला इलाज। जानें पूरी खबर।

Nov 26, 2024 - 09:38
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Jamshedpur Hospital: गर्भवतियों के इलाज से इनकार, पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मचा हंगामा
Jamshedpur Hospital: गर्भवतियों के इलाज से इनकार, पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मचा हंगामा

जमशेदपुर (Jamshedpur): झारखंड के जमशेदपुर में स्थित श्री सत्य साईं संजीवनी अस्पताल सोमवार को विवादों के केंद्र में आ गया, जब गर्भवती महिलाओं को इलाज से इनकार कर दिया गया। अस्पताल में बेड की कमी का हवाला देते हुए गर्भवतियों को रेफर कर दिया गया, जिससे गुस्साए मरीजों और उनके परिजनों ने हंगामा खड़ा कर दिया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा, जिसके बाद दो महिलाओं को भर्ती किया गया।

फ्री इलाज वाला अस्पताल विवादों में

यह अस्पताल गर्भवती महिलाओं के मुफ्त इलाज के लिए जाना जाता है। यहां गर्भवती महिलाओं की समय पर जांच और प्रसव के लिए बेड बुक किया जाता है। लेकिन सोमवार सुबह जब कई महिलाएं, जिनका पांचवें से सातवें महीने का गर्भ चल रहा था, इलाज के लिए पहुंचीं, तो उन्हें यह कहकर अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया कि बेड उपलब्ध नहीं है।

बाहर इंतजार और बिगड़ती हालत

महिलाओं को रेफर करने का कोई लिखित प्रमाण नहीं दिया गया। गुस्साए परिजनों ने विरोध करना शुरू कर दिया। अस्पताल के गार्ड ने महिलाओं को गेट के बाहर कर दिया, जहां वे ढाई घंटे तक धूप में खड़ी रहीं। इस दौरान कुछ महिलाओं की तबीयत भी बिगड़ गई।

जमुना मुखी, जो बागबेड़ा रेलवे कॉलोनी की निवासी हैं, ने बताया कि वह अपने पहले महीने से यहां इलाज करा रही थीं। लेकिन जब पांचवें महीने में प्रसव की तैयारी के लिए आईं, तो उन्हें रेफर कर दिया गया। वहीं, उनकी भाभी को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया।

पुलिस के दखल के बाद मामला शांत

स्थिति बिगड़ने पर महिलाओं ने पुलिस को फोन किया। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल प्रशासन ने दो महिलाओं को भर्ती किया और इलाज का भरोसा दिलाया। लेकिन इससे बाकी मरीज और उनके परिजन असंतुष्ट दिखे।

आसपास के लोग भी नाराज

अस्पताल के पास रहने वाले लोगों का कहना है कि यहां गरीबों के साथ अक्सर ऐसा ही व्यवहार किया जाता है। गार्ड और अधिकारी महिलाओं को बिना किसी स्पष्ट कारण के बाहर निकाल देते हैं।

इतिहास में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की स्थिति

भारत में, गर्भवती महिलाओं के लिए मुफ्त इलाज की व्यवस्था को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) जैसे कार्यक्रमों से बढ़ावा मिला है। हालांकि, अस्पतालों में बेड की कमी, स्टाफ की अनुपलब्धता और सुविधाओं की कमी लंबे समय से चिंता का विषय रही है। जमशेदपुर का यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की तत्काल जरूरत को रेखांकित करता है।

महिलाओं के दर्द की कहानी

भालूबासा की नेहा ने बताया कि उन्हें बिना लिखित आदेश के रेफर किया गया। उन्होंने इस पर सफाई मांगी, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। नेहा ने कहा, "अगर बेड फुल था, तो दो महिलाओं को बाद में कैसे भर्ती कर लिया गया?"

इलाज के बीच में रोड़ा क्यों?

अस्पताल में हंगामे के दौरान यह सवाल बार-बार उठता रहा कि अगर बेड फुल होने का तर्क सही है, तो पुलिस के हस्तक्षेप के बाद ही महिलाओं को क्यों भर्ती किया गया? जमुना मुखी ने कहा, "अगर पहले ही यह बताया गया होता, तो मैं दूसरे अस्पताल में अपना इलाज करवा लेती। अब मुझे ऑपरेशन की सलाह दी जा रही है, जिससे आर्थिक और मानसिक दबाव बढ़ गया है।"

अस्पताल प्रबंधन की सफाई

अस्पताल प्रशासन ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है। हालांकि, उन्होंने दावा किया है कि अस्पताल में अत्यधिक भीड़ और संसाधनों की कमी के कारण यह समस्या आई।

 महिलाओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सवाल

जमशेदपुर का यह मामला गरीब गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा को उजागर करता है। जहां एक तरफ सरकारें मुफ्त इलाज और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का वादा करती हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसी घटनाएं इन दावों पर सवाल खड़े करती हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और मरीजों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करना जरूरी है, ताकि भविष्य में इस तरह के विवाद और कष्ट से बचा जा सके।

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