Jamshedpur Protest: ममता सरकार पर गरजा भगवा मोर्चा, राष्ट्रपति शासन की उठी गूंज
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंदुओं पर हो रही हिंसा के खिलाफ जमशेदपुर में हुआ जोरदार प्रदर्शन। विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने राष्ट्रपति शासन की मांग की। जानिए पूरी कहानी, इतिहास और इसके पीछे की सच्चाई।

पश्चिम बंगाल में इन दिनों जो माहौल बन रहा है, उसने देश के कई हिस्सों में हलचल मचा दी है। खासकर मुर्शिदाबाद ज़िले में हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रही लगातार घटनाओं ने कई संगठनों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। शुक्रवार को पूरे भारत में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के आह्वान पर विरोध प्रदर्शन हुआ, लेकिन जमशेदपुर का नज़ारा कुछ और ही था — भगवा लहराते झंडे, गूंजते नारे और एक सशक्त मांग: "बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करो!"
प्रदर्शन का नेतृत्व और शामिल संगठन:
जमशेदपुर जिला मुख्यालय के सामने VHP, बजरंग दल, भाजपा और जदयू जैसे विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता एकजुट होकर खड़े हुए। उनके हाथों में भगवा झंडा था और आंखों में आक्रोश। यह सिर्फ एक विरोध नहीं था, बल्कि एक प्रतीकात्मक संदेश था कि बंगाल में हिंदू समाज के साथ जो हो रहा है, वह अब बर्दाश्त से बाहर है।
क्या बंगाल में लोकतंत्र खतरे में है?
प्रदर्शनकारियों ने खुलकर कहा कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार अब "जिहादियों की सरकार" बन चुकी है। आरोप लगाया गया कि राज्य में हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों जैसे शोभायात्राओं और जुलूसों पर हमले हो रहे हैं — जिनमें पत्थरबाज़ी आम हो गई है। और ये घटनाएं अकेले नहीं होतीं, बल्कि कथित रूप से राज्य सरकार के संरक्षण में होती हैं।
इतिहास की बात करें तो बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं नई नहीं हैं। चाहे वह 1947 के पूर्व का कलकत्ता दंगा हो या हाल के वर्षों में आसनसोल और बशीरहाट की घटनाएं — यह साफ़ दिखाता है कि हर बार सत्ता के फैसले या चुप्पी ने हिंसा को बढ़ावा दिया है।
राष्ट्रपति शासन की मांग:
प्रदर्शनकारी सिर्फ नारे लगाने तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने जमशेदपुर के उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंपा, जिसे राष्ट्रपति को भेजे जाने की मांग की गई। इस ज्ञापन में साफ़ कहा गया कि ममता सरकार संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन कर रही है और बंगाल में राष्ट्रपति शासन ही अब अंतिम समाधान है।
राजनीति या सामाजिक आंदोलन?
हालांकि आलोचक इसे एक राजनीतिक स्टंट बता सकते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जब जनता डर में जीने लगे, जब धार्मिक आयोजन असुरक्षित हो जाएं, तब सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है।
विरोध करने वालों का मानना है कि यह केवल राजनीति नहीं बल्कि "धार्मिक स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों की रक्षा" का मुद्दा है।
राष्ट्रीय स्तर पर असर:
इस विरोध का असर सिर्फ जमशेदपुर या बंगाल तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया पर इस आंदोलन की तस्वीरें वायरल हो रही हैं, #PresidentRuleInBengal और #HinduLivesMatter जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। लोग यह जानना चाहते हैं कि क्या देश के एक राज्य में धार्मिक स्वतंत्रता सच में खतरे में है?
क्या आगे कुछ बदलेगा?
यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि इस प्रदर्शन का ममता सरकार पर कोई सीधा असर पड़ेगा या नहीं, लेकिन इतना तय है कि अब देश का एक बड़ा वर्ग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर रहा है। राष्ट्रपति शासन की मांग कोई हल्की बात नहीं — यह तब उठती है जब जनता को न्यायपालिका और राज्य शासन दोनों से विश्वास उठने लगे।
बंगाल की घटनाएं और जमशेदपुर जैसे शहरों में हो रहे विरोध यह संकेत हैं कि जनता अब चुप नहीं बैठेगी। अगर राज्य सरकारें धार्मिक संतुलन और नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पातीं, तो देश के नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग ज़रूर करेंगे — चाहे वो सड़क पर उतरकर हो या राष्ट्रपति तक गुहार लगाकर।
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