Popcorn Tax Slab: GST का Popcorn पर नया नियम, फ्लेवर और पैकेजिंग से तय होगा टैक्स
GST काउंसिल ने पॉपकॉर्न पर टैक्स दरों में बदलाव किया। 5%, 12%, और 18% टैक्स अब फ्लेवर और पैकेजिंग के आधार पर लागू होगा। जानिए इसका असर।
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नई दिल्ली: GST काउंसिल की 55वीं बैठक में पॉपकॉर्न के शौकीनों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। पॉपकॉर्न पर अब फ्लेवर और पैकेजिंग के आधार पर तीन अलग-अलग टैक्स दरें लागू होंगी। इससे देशभर में पॉपकॉर्न निर्माताओं और उपभोक्ताओं के लिए बड़े बदलाव होने की उम्मीद है।
पॉपकॉर्न, जिसे हर उम्र के लोग पसंद करते हैं, अब 5%, 12% और 18% GST स्लैब में आएगा। आइए जानते हैं, किस प्रकार के पॉपकॉर्न पर कितना टैक्स लगेगा और यह बदलाव क्यों किया गया।
GST दरें: पॉपकॉर्न फ्लेवर और पैकेजिंग के आधार पर
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साधारण पॉपकॉर्न (बिना पैकेजिंग और फ्लेवर)
- टैक्स दर: 5% GST।
- साधारण नमक और मसालों से तैयार, बिना पैकेजिंग वाला पॉपकॉर्न इस श्रेणी में आएगा।
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पैकेज्ड और लेबल्ड पॉपकॉर्न
- टैक्स दर: 12% GST।
- अगर पॉपकॉर्न पैकेजिंग और लेबलिंग के साथ बेचा जाता है, तो इस पर टैक्स बढ़ जाएगा।
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फ्लेवर वाले पॉपकॉर्न (जैसे कारमेल, चॉकलेट)
- टैक्स दर: 18% GST।
- चीनी फ्लेवर जैसे कारमेल और अन्य मीठे स्वादों को 'चीनी कन्फेक्शनरी' की श्रेणी में रखा गया है।
कैसे बदलेगा बाजार?
इस निर्णय से पॉपकॉर्न उद्योग और उपभोक्ताओं दोनों पर असर पड़ेगा।
- निर्माताओं पर असर:
अब पॉपकॉर्न उत्पादकों को फ्लेवर और पैकेजिंग के अनुसार टैक्स का हिसाब करना होगा। इससे मूल्य निर्धारण में बदलाव होगा। - उपभोक्ताओं पर असर:
पैकेज्ड और फ्लेवर वाले पॉपकॉर्न अब महंगे हो सकते हैं, जबकि साधारण पॉपकॉर्न की कीमत कम रहेगी।
पॉपकॉर्न का इतिहास: कैसे बना सबका फेवरेट?
पॉपकॉर्न का इतिहास 5,000 साल पुराना है। माना जाता है कि यह पहली बार अमेरिका के आदिवासियों द्वारा खोजा गया।
- भारत में पॉपकॉर्न:
पॉपकॉर्न 19वीं शताब्दी में भारत पहुंचा और जल्दी ही यह सिनेमा हॉल का सबसे पसंदीदा स्नैक बन गया। - फ्लेवर का विकास:
पहले पॉपकॉर्न केवल नमक के साथ खाया जाता था। बाद में, मक्खन, कारमेल, चॉकलेट और मसाला फ्लेवर ने बाजार में धूम मचाई।
GST काउंसिल का उद्देश्य: क्यों लिया यह निर्णय?
GST काउंसिल ने यह निर्णय बाजार में पारदर्शिता और श्रेणीकरण सुनिश्चित करने के लिए लिया है।
- चीनी कन्फेक्शनरी श्रेणी:
फ्लेवर वाले पॉपकॉर्न को इस श्रेणी में डालने से सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा। - छोटे व्यापारियों को राहत:
साधारण पॉपकॉर्न पर कम टैक्स दर (5%) रखने से छोटे व्यापारियों को राहत मिलेगी।
विशेषज्ञों की राय
GST काउंसिल के इस निर्णय पर विशेषज्ञों का कहना है:
- मूल्य निर्धारण चुनौती:
पॉपकॉर्न के फ्लेवर और पैकेजिंग के आधार पर मूल्य निर्धारण जटिल हो सकता है। - ग्रामीण बाजार पर असर:
छोटे व्यापारियों और ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए यह निर्णय मिश्रित परिणाम लाएगा। - आधुनिक बाजार के लिए अनुकूल:
फ्लेवर और पैकेजिंग वाले पॉपकॉर्न शहरी बाजार में लाइफस्टाइल प्रोडक्ट बन चुके हैं, जिससे यह कदम आवश्यक हो गया।
क्या बदलेगा आपके लिए?
यदि आप सिनेमा हॉल में पैकेज्ड या फ्लेवर वाले पॉपकॉर्न के शौकीन हैं, तो इसकी कीमत बढ़ सकती है। वहीं, साधारण पॉपकॉर्न की कीमत पर ज्यादा असर नहीं होगा।
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