Godda Controversy: भाजपा सांसद ने कुरैशी को 'मुस्लिम आयुक्त' कहकर मचाया राजनीतिक तूफान!

भा.ज.पा सांसद निशिकांत दुबे के बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। उन्होंने पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी को 'मुस्लिम आयुक्त' कहा। जानिए इस बयान के पीछे का इतिहास और राजनीति में उठा तूफान।

Apr 20, 2025 - 15:30
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Godda Controversy: भाजपा सांसद ने कुरैशी को 'मुस्लिम आयुक्त' कहकर मचाया राजनीतिक तूफान!
Godda Controversy: भाजपा सांसद ने कुरैशी को 'मुस्लिम आयुक्त' कहकर मचाया राजनीतिक तूफान!

झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस शुरू कर दी है। उन्होंने भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी पर तीखा हमला करते हुए उन्हें "मुस्लिम आयुक्त" करार दिया। इस बयान से राजनीति के गलियारों में हलचल मच गई है, और दोनों पक्षों के समर्थक इसे लेकर सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए हैं। तो, आइए जानते हैं कि इस बयान के पीछे क्या है और कैसे यह राजनीति में नई रोटियां सेंकने का काम कर रहा है।

दुबे ने कुरैशी को क्यों घेरा?

यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब 17 अप्रैल 2025 को कुरैशी ने एक पोस्ट में वक्फ अधिनियम को लेकर अपना बयान दिया। कुरैशी ने इसे सरकार की एक "नापाक योजना" करार दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट इसे उचित तरीके से निपटाएगा। कुरैशी का कहना था कि वक्फ अधिनियम "मुस्लिम भूमि हड़पने" के लिए एक भयावह योजना है और इसे फैलाने के लिए शरारती प्रचार का सहारा लिया गया है।

इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए, निशिकांत दुबे ने कुरैशी के कार्यकाल पर आरोप लगाया और कहा कि "आप चुनाव आयुक्त नहीं थे, आप मुस्लिम आयुक्त थे।" दुबे ने आरोप लगाया कि कुरैशी के कार्यकाल के दौरान झारखंड के संथालपरगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों को मतदाता बनाने का काम किया गया था, जो उनकी नजर में एक बड़ा राजनीतिक खेल था।

दुबे का इतिहास और बयान में निहित संदर्भ

दुबे ने अपनी टिप्पणी में झारखंड के गोड्डा क्षेत्र को लेकर ऐतिहासिक संदर्भ दिया। उन्होंने लिखा कि विक्रमशिला गांव को 1189 में बख्तियार खिलजी ने जला दिया था और उसी स्थान से आतिश दीपांकर, जो विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे, को दुनिया ने जाना।

दुबे का यह बयान न केवल राजनीतिक काव्य था, बल्कि भारतीय इतिहास से जुड़ा हुआ भी था। उनका कहना था कि इस्लाम का भारत में प्रवेश 712 में हुआ, और इससे पहले यह भूमि हिंदुओं, आदिवासियों, जैनों और बौद्धों की थी। दुबे के इस इतिहास से जोड़ने के प्रयास ने मामले को और गहरे राजनीतिक रंग दे दिए।

वक्फ अधिनियम पर विवाद

दुबे का यह बयान तब आया जब वक्फ अधिनियम (संशोधन) 2025 के बारे में चर्चा जोरों पर थी। इस एक्ट का उद्देश्य भारत में मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के प्रशासन को सुधारना था। कुरैशी ने इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया और इसे मुस्लिम भूमि हड़पने का एक उपकरण बताया। दुबे ने इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे "भारत को विभाजित करने की साजिश" तक करार दिया।

वहीं, दुबे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अगर कानून बनाने की कोशिश करता है, तो यह संविधान और संसद के खिलाफ होगा। उन्होंने अदालत से यह सवाल किया कि अगर कोई कानूनी बदलाव करना है तो फिर संसद की भूमिका क्या होगी।

भाजपा का रुख

भा.ज.पा ने दुबे के बयान से खुद को अलग कर लिया। पार्टी ने कहा कि यह बयान "व्यक्तिगत राय" है और इसे पार्टी के रुख के रूप में नहीं लिया जा सकता है। भा.ज.पा के अंदरूनी तर्क के मुताबिक, निशिकांत दुबे का यह बयान उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण को दर्शाता है, और इस तरह के बयान भा.ज.पा की पार्टी लाइन को नहीं दर्शाते

हालांकि, यह बयान भाजपा सांसद की छवि को लेकर कई सवाल खड़े कर रहा है, क्योंकि राजनीतिक बयानों और चुनावी रणनीतियों में अक्सर ऐसे तार्किक हमले किए जाते हैं जो विरोधी पार्टियों को कमजोर करने का प्रयास करते हैं।

आखिरकार क्या है इस बयान का राजनीतिक असर?

निशिकांत दुबे का यह बयान सीधे तौर पर एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसने वक्फ अधिनियम के लिए चल रही बहस को नया मोड़ दिया है। इससे पहले भी कई बार भारतीय राजनीति में धार्मिक मुद्दों को लेकर बयानों का सिलसिला चला है, लेकिन यह विवाद अदालत, संविधान और संसद के बीच की सीमा को लेकर एक नई बहस को जन्म दे सकता है।

दुबे के बयान से भारत में धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण की दिशा में नया कदम बढ़ाया गया है। वहीं, इस बयान से यह भी साफ है कि भारत में इतिहास, धर्म और राजनीति के बीच की रेखाएं अब और भी धुंधली हो चुकी हैं।

भा.ज.पा सांसद निशिकांत दुबे का बयान भारतीय राजनीति में एक नया तूल पकड़ने वाला है। हालांकि भाजपा ने इसे व्यक्तिगत राय बताया है, लेकिन इसने आने वाले दिनों में वक्फ अधिनियम और धार्मिक विवादों पर और चर्चा शुरू कर दी है। ये बयान न केवल राजनीति के गहरे पहलुओं को छेड़ता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों का बड़ा स्थान हमेशा रहेगा।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।