Dimna Lake Initiative: छोड़ी गईं 7.5 लाख मछलियां, जानें कैसे बदलेगा विस्थापित परिवारों का भविष्य
जमशेदपुर के डिमना लेक में 7.5 लाख मछलियों का जीरा छोड़कर ग्रामीण परिवारों को स्वरोजगार का नया मौका दिया गया। जानिए इस पहल का महत्व और इसका असर।
जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम के डिमना लेक में जिला मत्स्य विभाग ने मंगलवार को 7.5 लाख मछलियों का जीरा छोड़कर एक बड़ी पहल की है। इस प्रयास का उद्देश्य न केवल झील के पर्यावरण को संरक्षित करना है, बल्कि विस्थापित परिवारों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना भी है।
क्या है मछलियों का जीरा और इसका महत्व?
मछलियों का जीरा, यानी मछली के बच्चे, झील और तालाबों में छोड़े जाते हैं ताकि वे बढ़कर मछली उत्पादन को बढ़ावा दे सकें। इस बार छोड़े गए जीरे में मुख्य रूप से रेहू, कतला, मृगाल जैसी प्रजातियां और एक लाख ग्लास कप शामिल हैं। ये प्रजातियां न केवल पोषण के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देती हैं।
डिमना लेक का ऐतिहासिक महत्व
डिमना लेक केवल जमशेदपुर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र के जल संरक्षण और मछली पालन का केंद्र भी रहा है। टाटा स्टील द्वारा निर्मित यह झील शुरू से ही स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका का स्रोत रही है। विस्थापित परिवार, जो औद्योगिक विकास के कारण अपने पारंपरिक रोजगार से वंचित हो गए, झील के माध्यम से मछली पालन और बिक्री करके अपने जीवनयापन का साधन पाते हैं।
पहल में कौन-कौन रहा शामिल?
इस कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने हिस्सा लिया।
- जिला मत्स्य पदाधिकारी अलका पन्ना और जिला मत्स्य प्रसार पदाधिकारी अमरेंद्र वर्मा ने इस पहल का नेतृत्व किया।
- जिला परिषद सदस्य गीतांजलि महतो और विधायक प्रतिनिधि माणिक चंद्र महतो ने ग्रामीणों को इस पहल के लाभ बताए।
- स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों और मत्स्यजीवी समितियों, जैसे रविलाल भुइयां, मंगल सिंह, और स्वपन कैबर्त, ने भी इस कार्यक्रम में योगदान दिया।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे मिलेगा लाभ?
डिमना लेक के आसपास के परिवार, खासकर विस्थापित समुदाय, मछली पालन से सीधे जुड़े हुए हैं।
- स्वरोजगार: मछलियों का पालन और बिक्री उनके लिए आय का मुख्य स्रोत है।
- स्थानीय बाजारों को फायदा: मछली की बिक्री स्थानीय बाजारों में बढ़ती मांग को पूरा करती है।
- पर्यावरण संरक्षण: झील में मछलियों की संख्या बढ़ने से जैव विविधता में सुधार होगा।
पहल का प्रभाव: एक व्यापक दृष्टिकोण
डिमना लेक में मछलियों का जीरा छोड़ने का काम केवल एक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण, और आर्थिक सशक्तिकरण का संगम है।
- पर्यावरण पर असर: मछलियां झील के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं।
- ग्रामीण समुदायों का विकास: विस्थापित परिवारों के लिए यह पहल उम्मीद की नई किरण है।
मछली पालन और झारखंड का इतिहास
झारखंड में मछली पालन की परंपरा सदियों पुरानी है। परंपरागत रूप से तालाबों और झीलों में मछली पालन ग्रामीण समुदायों का मुख्य व्यवसाय रहा है। लेकिन 1980 के दशक के बाद, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने इस क्षेत्र को प्रभावित किया।
हालांकि, सरकार और स्थानीय प्रशासन की ओर से की गई इस तरह की पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने की दिशा में एक मजबूत कदम है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
रविलाल भुइयां, जो इस पहल से जुड़े विस्थापित समुदाय के सदस्य हैं, कहते हैं, "डिमना लेक हमारे जीवन का हिस्सा है। मछलियों का पालन न केवल हमें आय देता है, बल्कि यह हमारी पहचान भी है।"
वहीं, जिला परिषद सदस्य गीतांजलि महतो ने कहा, "यह पहल न केवल ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाएगी, बल्कि क्षेत्र के विकास में भी सहायक होगी।"
आगे की योजनाएं
जिला मत्स्य विभाग का कहना है कि आने वाले समय में और अधिक झीलों और तालाबों में मछलियों का जीरा छोड़ा जाएगा। साथ ही, मछली पालन को और संगठित करने के लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता भी दी जाएगी।
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