Dhanbad Notice Drama: रेलवे ने फिर थमाया बेदखली का फरमान, कुष्ठ रोगियों का क्या होगा भविष्य?

धनबाद में विनोद नगर कुष्ठ कॉलोनी को रेलवे ने चौथी बार बेदखली का नोटिस भेजा। 2022 से जारी इस संघर्ष में प्रशासन की चुप्पी क्यों? जानिए पूरी खबर।

Feb 15, 2025 - 20:39
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Dhanbad Notice Drama: रेलवे ने फिर थमाया बेदखली का फरमान, कुष्ठ रोगियों का क्या होगा भविष्य?
Dhanbad Notice Drama: रेलवे ने फिर थमाया बेदखली का फरमान, कुष्ठ रोगियों का क्या होगा भविष्य?

झारखंड के धनबाद में विनोद नगर कुष्ठ कॉलोनी के निवासियों के लिए एक और बुरी खबर आई है। रेलवे ने 15 फरवरी 2025 को चौथी बार नोटिस जारी कर भूमि खाली करने का फरमान सुनाया। यह नोटिस कॉलोनी के लोगों के लिए किसी बड़े संकट से कम नहीं है, क्योंकि वे पहले ही तीन बार इस तरह के आदेश का सामना कर चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है – इन कुष्ठ रोगियों का क्या होगा?

रेलवे की कार्रवाई पर सवाल

ध्यान देने वाली बात यह है कि 2022 से लगातार रेलवे इस कॉलोनी को खाली कराने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद सरकार या प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। विनोद नगर कुष्ठ कॉलोनी के निवासी, जो पहले ही समाज से बहिष्कृत जीवन जी रहे हैं, रेलवे की इस कार्रवाई के कारण और भी दयनीय स्थिति में पहुंच सकते हैं।

इनकी लड़ाई सिर्फ घर बचाने की नहीं, बल्कि आवासीय अधिकारों और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की भी है। कॉलोनी के लोगों का कहना है कि वे यहां वर्षों से रह रहे हैं, लेकिन अब प्रशासन उन्हें कहीं और बसाने के बजाय सीधे हटाने पर आमादा है।

समाज से पहले ही बहिष्कृत, अब फिर सड़कों पर?

विनोद नगर कुष्ठ कॉलोनी में रहने वाले लोग पहले ही समाज से उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं। कुष्ठ रोगियों के लिए सरकारी योजनाएं और सहायता अक्सर कागजों तक ही सीमित रहती हैं। इनके पास न तो स्थायी रोजगार है और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं, अब अगर रेलवे उन्हें उजाड़ देता है, तो इनकी जिंदगी और भी मुश्किल हो जाएगी।

प्रशासन से लगाई गुहार, लेकिन अब तक सुनवाई नहीं

रेलवे द्वारा बार-बार भेजे जा रहे बेदखली नोटिस को लेकर मधुसूदन तिवारी, जो झारखंड के APAL लीडर हैं, ने उपायुक्त कार्यालय, धनबाद में आवेदन दिया है। उनका कहना है कि "यह बहुत दुखद है कि सरकार कुष्ठ रोगियों को पुनर्वास देने के बजाय उन्हें बार-बार बेघर करने पर तुली हुई है।"

स्थानीय लोगों का कहना है कि वे कई बार प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला। सरकार की बेरुखी और रेलवे की सख्ती के बीच ये लोग असमंजस में हैं कि आखिर वे जाएं तो जाएं कहां?

इतिहास से सबक: कुष्ठ रोगियों के लिए आज भी क्यों नहीं संवेदनशील है सिस्टम?

भारत में कुष्ठ रोगियों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं है। अंग्रेजों के जमाने में 1898 में बने ‘लैप्रोसी एक्ट’ के तहत कुष्ठ रोगियों को समाज से अलग कर दिया जाता था। हालांकि, 2019 में इस कानून को खत्म कर दिया गया, लेकिन क्या वास्तव में मानसिकता बदली है? आज भी कुष्ठ रोगियों को बुनियादी सुविधाएं देने में सरकार विफल रही है।

अब आगे क्या?

रेलवे की इस कार्रवाई के बाद कॉलोनी के लोग अब न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं। मधुसूदन तिवारी और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि जब तक इन लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक बेदखली की कार्रवाई रोकी जाए।

सरकार की भूमिका पर उठे सवाल

सरकार का दावा है कि वह गरीबों और बेघरों के लिए काम कर रही है, लेकिन विनोद नगर कुष्ठ कॉलोनी का मामला दिखाता है कि ज़मीनी हकीकत कुछ और है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन बेसहारा लोगों की आवाज़ सुनेगा या फिर वे एक बार फिर समाज के हाशिए पर धकेल दिए जाएंगे?

निष्कर्ष: इंसाफ मिलेगा या फिर बेघर होंगे कुष्ठ रोगी?

अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या प्रशासन इन लोगों की समस्या को गंभीरता से लेगा, या फिर रेलवे की कार्रवाई के आगे इन्हें बेघर होना पड़ेगा? धनबाद की यह घटना एक बड़ा सवाल छोड़ रही है – क्या कुष्ठ रोगियों को कभी समान अधिकार मिल पाएंगे?

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।