दे जायेगा - अंकिता सिन्हा , जमशेदपुर
वो अगर आया तो आकर और क्या दे जाएगा
दर्द मेरी ज़िन्दगी में फिर नया दे जाएगा
मेरे सर कब तक खताएं अपनी लादे जाएगा
इक न इक दिन सब्र मेरा भी दग़ा दे जाएगा
प्यार से साइल को तुम खाना खिलाकर देखना
क़ीमती बदले में वो तुमको दुआ दे जाएगा
क्या पता था दर्द ही बन जाएगा दिल की दवा
क्या खबर थी ज़हर अमृत का मज़ा दे जाएगा
शाम होते होते सो जाएगा सूरज भी कहीं
रौशनी का फिर से हमको मसअला दे जाएगा
नफ़रतें दिल से मिटाकर गुफ्तगू तो कीजिये
प्यार होंठो को शहद का ज़ायक़ा दे जाएगा
क़त्ल ो गारत की कोई ताज़ा खबर होगी छपी
सुबह का अखबार फिर इक हादिसा दे जाएगा
आग भड़काने में है माहिर यहां हर आदमी
जो भी आएगा वो शोलों को हवा दे जाएगा
इस जहां में एक ज़र्रा भी नहीं देता कोई
किसे दिल अपना कोई मुझको भला दे जाएगा
जलाने को किसी के वास्ते क्यों घर बनाती हूँ
मैं ये महसूस करती हूँ मगर अक्सर बनाती हूँ
बयां में ला नहीं सकती तबाही शहर की अपने
मैं यूँ तो हादसाते वक़्त के मंज़र बनाती हूँ
क़लम फिर कर दिए हैं शहर में मासूम सब उसने
लहू आलूद अल्फ़ाज़ों में उनके सर बनाती हूँ
ये देखा है वहीँ बिजली चमकती है जहां भी मैं
घरौंदे ढांपने को फूस का छप्पर बनाती हूँ
पिघल जाते हैं अब वो बर्फ के महलात सूरज से
तख़य्युल में जिसे मेहनत से मैं शब् भर बनाती हूँ
खुदा जाने वो क्या है तीसरी शय तेरी सिनअत में
कभी मैं देवता उसको कभी पत्थर बनाती हूँ।।
अंकिता सिन्हा , जमशेदपुर
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