अस्पताल से उठी चम्पाई सोरेन की गर्जना, भोगनाडीह में घुसपैठ के खिलाफ उठाई आवाज!
अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने भोगनाडीह में आयोजित मांझी परगना महासम्मेलन को संबोधित किया। बांग्लादेशी घुसपैठ पर चिंता जताते हुए उन्होंने आदिवासी समाज से अपने अधिकारों और जमीन की रक्षा करने का आह्वान किया।
बरहेट। वीर भूमि भोगनाडीह में आज आदिवासी समाज ने एकजुट होकर "मांझी परगना महासम्मेलन" का आयोजन किया। जहां सिदो-कान्हू की वीर भूमि में जुटे हजारों आदिवासी समाज के पारंपरिक ग्राम प्रधानों और मार्गदर्शकों ने अपने हक और सम्मान की रक्षा के लिए आवाज बुलंद की। इस आयोजन की खास बात यह रही कि अस्पताल में भर्ती पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता चम्पाई सोरेन ने खुद अपनी बीमारी को दरकिनार कर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और समाज की आवाज को बल दिया।
जमशेदपुर के टाटा मेन हॉस्पिटल से संबोधित करते हुए चम्पाई सोरेन ने कहा कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा गंभीरता से लेन का समय आ चुका है। उन्होंने घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों की जमीनों और पूजा स्थलों पर कब्जा करने के प्रयास पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो आदिवासियों की जमीन को घुसपैठियों के कब्जे से मुक्त करवाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा।
चम्पाई सोरेन ने अपने जोशीले संबोधन में कहा कि आज आदिवासी समाज के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। बाहरी घुसपैठिए हमारे समाज की धरोहरों को मिटाने का प्रयास कर रहे हैं और हमारी बहु-बेटियों की सुरक्षा को भी खतरा है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस भोगनाडीह में 1855 में हजारों वीरों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति दी थी, आज वहां गिने-चुने आदिवासी परिवार ही रह गए हैं।
उन्होंने वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो जैसे महान योद्धाओं से प्रेरणा लेकर समाज को जागरूक करने की बात कही। सोरेन ने समाज के लोगों से आग्रह किया कि वे बैसी (सामूहिक बैठक) कर के घुसपैठियों को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू करें, ताकि संथाल परगना की पहचान और संस्कृति की रक्षा की जा सके।
महासम्मेलन में पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी जोरदार भाषण दिया और संथाल परगना में मांझी परगना व्यवस्था को मजबूत करने की बात कही। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य सरकार इस मुद्दे को नजरअंदाज कर रही है, जो कि घातक साबित हो सकता है।
लोबिन हेंब्रम ने कहा कि संथाल परगना की पहचान उसकी मांझी परगना व्यवस्था से है, लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ से यह व्यवस्था खतरे में पड़ गई है। इस स्थिति में समाज को खुद ही आगे बढ़कर अपनी रक्षा करनी होगी।
इस महासम्मेलन में स्थानीय ग्राम प्रधानों और आदिवासी समाज के कई अन्य मार्गदर्शकों ने भी अपनी बात रखी। सभी ने एकमत होकर बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।
इस महासम्मेलन का आयोजन संथाल परगना के आदिवासी समाज के हक और अधिकार की रक्षा के उद्देश्य से किया गया था, जिसमें मुख्यत: बांग्लादेशी घुसपैठियों के बढ़ते प्रभाव पर चर्चा हुई। इस दौरान आदिवासी समाज ने अपने पुरखों के बलिदान को याद करते हुए अपनी जमीनों और संस्कृति की रक्षा करने का संकल्प लिया।
चम्पाई सोरेन की इस दहाड़ से यह साफ है कि वे किसी भी हालत में आदिवासियों के हक और सम्मान की रक्षा के लिए पीछे हटने वाले नहीं हैं। उनका संदेश स्पष्ट था - "हमारे पुरखों ने अपनी जान देकर जो जमीन हमें सौंपी है, उसे किसी भी हालत में हाथ से जाने नहीं दिया जाएगा।"
आदिवासी समाज के इस महासम्मेलन से एक बार फिर संथाल परगना की जमीन पर संघर्ष की चिंगारी भड़क चुकी है। अब देखना यह है कि आने वाले समय में यह आंदोलन कितना प्रभावी साबित होता है और क्या बीजेपी इस मुद्दे को अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बनाकर इसे राष्ट्रीय स्तर पर उठाएगी।
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