अवसाद - प्रतिभा प्रसाद 'कुमकुम'
मंजुला अपने पिता की जिम्मेदारी निभाते निभाते अपनी शादी अपनी गृहस्थी का सपना सब भूल गई थी। चार भाई बहनों में सबसे बड़ी अपनी सारी मधुरता कोमलता अपनी असिस्टेंट प्रोफेसरी की नौकरी और माँ की गृहस्थी की गाड़ी खिंचने में विलीन हो गई थी ।.....
अवसाद
मंजुला अपने पिता की जिम्मेदारी निभाते निभाते अपनी शादी अपनी गृहस्थी का सपना सब भूल गई थी। चार भाई बहनों में सबसे बड़ी अपनी सारी मधुरता कोमलता अपनी असिस्टेंट प्रोफेसरी की नौकरी और माँ की गृहस्थी की गाड़ी खिंचने में विलीन हो गई थी । सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होते होते मंजुला की शादी की उम्र ही निकल गई । क्या करती पिता पैरालाइसिस से बीमार बिस्तर से उठ नहीं सकते थे ।
कॉलेज के स्टाफ क्वाटर में नितांत अकेली मंजुला अपने जीवन का मुल्याकन करने पर बस एक ही खुशी देख पाती थी । वो था अपने जनक की खुशी । माँ बाबु जी अपने अंतिम छण में बेटे द्वारा घर से बेघर कर दिए जाने पर मंजुला को ही मुखाग्नि का अधिकार दे दिया था । यह पुरस्कार था या उपहार आज तक अनबुझ पहेली ही रही । हालांकि भाई नरेन्द्र ने इस बात पर एक शब्द भी बोल नहीं पाया था । मंजुला तो इसलिए खुश थी कि उसने अपने माता-पिता को कभी रोने नहीं दिया । लेकिन आज जब रीना ने बताया कि वो छुप छुपकर तुम्हारे लिए बहुत रोते थे । तो आज उसकी रुलाई फूट पड़ी । मन ही मन उन्हें कितना गलत समझा । ओह ! शायद मेरी यही नियति थी । वो कह गए थे मैं भी अब शादी कर लूं । मंजुला खुलकर हंस भी नहीं पाई । अब पैंतालीस साल के उम्र में शादी ! यह सोच कर भी बड़ा अटपटा सा ही लगता है और कोई कह दे तो सुनकर भी । वो कैसे कर पाएगी ? माँ कभी खुलकर कह नहीं पाईं । उन्हें डर था मंजुला के वगैर वो कैसे जिएंगी ? हाँ यह डर ही था । बिल्कुल सही, स्वार्थ नहीं । संवाद हीनता विकट स्थिति बना देती है । यहाँ भी शायद यही हुआ । माँ की याद और कभी कभी निर्दोष निर्नीमेष देखती उनकी निगाहें रुह तक हिला देती थी । ओह ! आत्मग्लानी का बोध था उन्हें । अम्मा, बाउ जी को कैसे समझा पाते होंगे और अपने आप को भी । अंत समय में उन्होंने किसी को याद नहीं किया । मंजुला का ही हांथ पकड़ें रहें । मानों कह रहें हों अभी तू ही मेरी माँ है । एक महीने आगे पीछे दोनों मंजुला को अकेले छोड़ गए ।
आज क्लास समाप्त कर घर लौटते समय समीर रास्ते में ही मिल गया । मंजुला के बगल वाला क्वाटर समीर का ही है । पिछले महीने उसकी पत्नी कैंसर से चल बसी थी । समीर मंजुला से नजदीकियाँ बढ़ाना चाहता था जब सोनाली जीवित थी तब से ही । वो तो मंजुला ने कभी अवसर ही नहीं दिया । रीना से बातचीत के बाद उसका नजरिया बदल गया था । रीना उसकी कलिग है, उसने कहाँ मंजुला अब तुम भी शादी करके सेटेल हो जाओ । यह बात बहुत सोचने विचारने के बाद ही उसने यह निर्णय लिया कि रीना ठीक ही कह रही है ।
उसने एक दिन समीर को चाय पर बुलाया । समीर की तो लौट्री लग गई । खुद के रसोई से छुटकारा । मिलने मिलाने का दौर चलने लगा । छः महीने होते होते बात स्वीकारोक्ति तक पहुँची ही थी कि एक अनहोनी हो गई ।
आज वो शादी के लिए अपनी रजामंदी दे ही देंगी । अम्मा बाउजी भी तो यही चाहते थे । मेरा बसा घर देखकर उनकी आत्मा को भी शाँति मिलेगी । लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था । मंजुला जैसे ही कॉलेज के कॉरीडोर में पहुँची स्टाफ रूम से समीर के ठहाके की आवाज से उसके पाँव ठिठक गए । उसकी आवाज कानों से टकराई मेरी साली से शर्त लगी है मंजुला को पटाने की । जोशी जी ने पूछा कितने की । समीर हजार रुपए की । जोशी जी बस हजार रुपए के लिए किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाओगे । यह बहुत गलत बात है । मंजुला रिश्ते के लिए गंभीर है ।
समीर -- और जब मैं चाहता था तब तो वो घास भी नहीं डालती थी । अब खुद अकेली है तो मैं ही क्यों ?
जोशी जी इसका मतलब तुम्हें तब भी प्यार नहीं था और अब भी नहीं है । है तो सिर्फ इगो । शायद इसीलिए तुम्हारी पत्नी घुलघुलकर मर गई । सच्ची बात बाहर न आ सकी । तुम्हारे इगो का सच । तभी क्लास के लिए घंटी बज गई । फिर भी जोशी जी ने जाते-जाते कहाँ । किसी की भावनाओं से खिलवाड़ करना अच्छी बात नहीं है । तुम्हीं सोचो तुम शादीशुदा थे । बीमार पत्नी को जब यह पता चले कि उसका पति उसके पीछे बेवफाई कर रहा है तो! वो जीते जी मर जाएगी । उस दृष्टि से तो मंजुला तुम से ज्यादा अच्छी और चरित्रवान है । उसने तुम्हें कर्तव्यच्युत नहीं किया । तुम्हारी पत्नी के दर्द को समझा । ओह! मंजुला इज द फॉर बेटर दैन यू । और रजिस्टर लेकर स्टाफ रूम से निकल गए ।
आज कॉलेज से लौटकर मंजुला सन्न थी । आज क्लास ही नहीं ले पाई । बस अटेंडेंस लेकर बैठी रह गई । छात्रों को कुछ लिखने दे दिया था । अपमान की ज्वाला से सर्वांग जल उठा था । कई बार खुद से नजर नहीं मिला पा रही थी । अवसाद का वो पल डूब मरने को कहता रहा । आत्महत्या ! छात्रों पर क्या असर पड़ेगा ? मरने पर भी चरित्र कलंकित । ओह नहीं-नहीं । वो ऐसा नहीं कर सकती है । दूसरे के चिंतन की सजा खुद को क्यूँ दूँ ? अभी तो मैं ने इजहार किया भी नहीं है । ओह! बची जान बची तो लाखों पाई ।
वो उठ खड़ी हुई । चेहरा धोया । अच्छे से मेकअप किया और शाम को टहलने निकल गई । समीर रास्ते में ही मिल गया । उसने आवाज लगाई । मंजुला अनसुनी कर आगे निकल गई । मानों कुछ सुना ही न हो । समीर बौखलाया सा आवाज देता रह गया । मंजुला ने पीछे मुडकर देखा भी नहीं । महीनों ऐसा ही चलता रहा । समीर के उतरे हुए चेहरे को देखकर जोशी ने पूछा आज एक महीने हो गए । क्या शर्त हार गए ? समीर कुछ बोल न सका । जोशी जी ने समीर को बताया कि मंजुला ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थी ।
दूसरे दिन समीर अपने घर में फॉसी पर लटका मिला । एक सुसाइड नोट मिला , लिखा था मुझे सचमुच प्यार हो गया था । मेरे इगो ने मुझे हरा दिया । न पत्नी का हो सका और न अपने प्यार का इजहार कर सका । अब हार गया हूँ अलविदा ।।
प्रतिभा प्रसाद 'कुमकुम'
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