सबकी आँखों में आंसू थे - पीयूष गोयल जी, उत्तर प्रदेश
सबकी आँखों में आंसू थे - पीयूष गोयल जी, उत्तर प्रदेश
सबकी आँखों में आंसू थे
बात बहुत पुरानी है। मैं वृंदावन में बाँके बिहारी के दर्शन करने अकेला ही जा रहा था। सामने से आ रही एक बहुत सुंदर सी गाड़ी, जिसे एक महिला चला रही थी, अचानक मेरे पास आकर रुकी। शीशा नीचे करके उसने पूछा, "आप पीयूष हैं ना?" मैंने कहा, "हाँ, मैं पीयूष हूँ।" उसने गाड़ी किनारे लगाई और मेरे पास आई, "पहचाना मुझे?" मैंने कहा, "नहीं, मैं पहचान नहीं पाया।" उसने कुछ समय दिया मुझे पहचानने के लिए, लेकिन मैं फिर भी नहीं पहचान पाया।
वह बोली, "चल, मैं तुझे कुछ हिंट देती हूँ। हम साथ-साथ पढ़े थे," और उसने दो-तीन मित्रों के नाम बताए। मैं पहचान गया। उसने मुझे गले से लगा लिया। मेरी आँखों में आँसू थे और उसकी आँखों में भी। हम बहुत सारी बातें करने लगे। उसने कहा, "बाँके बिहारी के दर्शन करने जा रहे हो? चलो, मैं भी चलती हूँ दुबारा तुम्हारे साथ। वैसे मैं दर्शन कर आई हूँ, पर तेरे साथ दर्शन करना अच्छा लगेगा।"
उसने गाड़ी एक सुरक्षित स्थान में खड़ी की और हम साथ-साथ चल दिए, आपस में बातें करते हुए। "पीयूष, तुझे याद है सन् 1984 की बात, तू मुझसे नाराज था और मुझे पता चला था कि तू जा रहा है। मैं तेरे घर आई थी, तेरे जाने से दो दिन पहले। तूने मुझे माफ़ नहीं किया था और तुझे वो भी याद होगा जब तू बस में बैठ गया था। मैंने तुझे जाते हुए भी देखा था। बस जब दूर चली गई थी, तूने पीछे मुड़कर भी देखा था। तूने कोई जवाब नहीं दिया था। मुझे बता, तू मुझसे किस बात पर नाराज था?"
मैंने कहा, "हाँ, मैं नाराज था। तुझे भी पता है किस बात से नाराज था। चल, छोड़ ये सब बातें। ये बता, तू आजकल क्या कर रही है?"
वह बोली, "मैं तीन-तीन कंपनियों को देख रही हूँ। दो बेटे हैं, दोनों बाहर पढ़ रहे हैं। मेरे पति बहुत नशा करते हैं। बड़ी मेहनत की पर अब तीनों कंपनियों को मैं अकेले ही देखती हूँ।"
हम बातें करते-करते गाड़ी तक वापस आ गए। "पीयूष, तू कहां ठहरा हुआ है?" मैंने कहा, "दर्शन हो गए, वापस जा रहा हूँ।" "नहीं, पीयूष, तू आज वापस नहीं जाएगा," उसने ज़बरदस्ती मेरा हाथ पकड़ कर अपनी गाड़ी में बैठा लिया। बात करते-करते हम वहां पहुंचे जहां वह ठहरी हुई थी। होटल की बालकनी पर बातें और चाय का आनंद लेते रहे।
उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, "पीयूष, ईश्वर ने मेरी सुन ली। मैं कहती थी वो दिन कब आएगा जब मैं पीयूष से मिलूंगी। आज देख मिल ही गए। पीयूष, अब मैं थक गई हूँ इतनी मेहनत करते-करते। मेरा तुझसे एक अनुरोध है, मेरी तीनों कंपनियों की जिम्मेदारी तू ले ले।" ये सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गया। "ठीक है, मुझे कुछ समय दे सोचने के लिए।"
विदा लेते हुए हमने आपस में मोबाइल नंबर शेयर किए। "पीयूष, तू मेरा एक बहुत अच्छा मित्र था और जिसे मैं बहुत प्यार करती थी। लेकिन कुछ कारणवश मैं तुझे बता नहीं पाई और इसी वजह से तू नाराज था, मुझे पता है। लेकिन आज हम ईश्वर की कृपा से वृंदावन में मिल गए।" गले लगाकर उसने मुझे विदा किया।
समय अपनी गति से चलता रहा और हमारी बातें होती रहीं। एक दिन सुबह फोन आया, "उनका निधन हो गया है, तू आ जा, मुझे कुछ नहीं पता।" मैं पहुंच गया। इसी बीच मेरी नौकरी भी चली गई। सब कुछ संपन्न होने के बाद एक दिन फोन आया, "एक बार मिलने तो आ जा।" मैंने कहा, "ठीक है, मैं आ रहा हूँ अपने परिवार के साथ।" वह बहुत खुश हुई, "हम सब एक साथ बैठेंगे और बहुत सी बातें करेंगे।"
हम सब दुपहरी का खाना खा रहे थे। वह बोली, "पीयूष, देख सब कुछ है पर शांति नहीं है। मैं थक गई हूँ। अब इतना काम नहीं होता। तुझे याद है, मैंने तुझसे वृंदावन में एक बात कही थी।" "हाँ, मुझे याद है और तूने कहा था मुझे कुछ समय दे सोचने के लिए।" तभी उसका बड़ा बेटा बोला, "हाँ अंकल, अभी हमारी पढ़ाई बाकी है और मम्मी भी अकेली हैं। आप मम्मी के साथ तीनों कंपनियों को देख लो, प्लीज।" मैंने हाँ कर दी।
आज भी मैं उनकी कंपनियों को देख रहा हूँ और उनके बगल के बंगले के साथ ही मेरा मकान भी खरीद लिया। दोनों परिवार खुशी से रह रहे हैं। मेरे बिना पूछे कोई काम नहीं होता, मेरे परिवार को अपना परिवार मानती हैं और सच में बहुत प्यार करती हैं।
एक दिन उसने मेरे पूरे परिवार को रात के खाने पर बुलाया। जैसे ही हम सब घर पर पहुंचे, दरवाजे पर ही उसने मेरे पैर पकड़े और सभी को गले लगाकर बोली, "पीयूष, मैं तुझसे ही नहीं, तेरे परिवार से भी प्यार करती हूँ।" हम सबकी आँखों में आँसू थे।
पीयूष गोयल जी
दादरी , उत्तर प्रदेश
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