क्या बीजेपी कोल्हान में खुद ही अपनी हार सुनिश्चित कर रही है? जानिए कैसे भाजपा नेता ही कर रहे पार्टी का नुकसान!
क्या बीजेपी जानबूझकर कोल्हान में हार रही है? नेताओं की आपसी दुश्मनी और अंदरूनी राजनीति ने पार्टी के जीतने की संभावनाओं को कैसे कम कर दिया है, जानिए इस रिपोर्ट में।
झारखंड विधानसभा चुनावों में हर कोई सवाल पूछ रहा है – क्या इस बार बीजेपी कोल्हान में जीत सकेगी? लेकिन अंदर की बातें कुछ और ही कहानी बयान कर रही हैं। सवाल ये उठता है कि क्या बीजेपी खुद ही अपनी हार की रणनीति बना रही है?
झारखंड में 5-10 सीटों का खेल, लेकिन भाजपा खुद को दे रही तोहफे में हार
झारखंड में सरकार बनाने और ना बनाने का खेल 5 से 10 सीटों का है, लेकिन भाजपा खुद इन सीटों को गंवा रही है। उदाहरण के तौर पर, रघुवर दास और सरयू राय की निजी दुश्मनी का असर न सिर्फ जमशेदपुर पूर्वी बल्कि कई अन्य सीटों पर भी पड़ा। दोनों की खींचतान ने बीजेपी को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया और पार्टी की संभावनाओं को ध्वस्त कर दिया।
आग में घी डालने का काम—ढुल्लू महतो की एंट्री
जब पार्टी ने तय कर लिया कि रघुवर दास या उनके परिवार से कोई भी पूर्वी से नहीं लड़ेगा, तब ढुल्लू महतो को उकसाने के लिए भेज दिया गया। इससे आपसी मतभेद और गहरा हो गया। रघुवर दास और सरयू राय के बीच ये झगड़ा पार्टी के लिए हानिकारक साबित हुआ।
रामबाबू तिवारी और सरयू राय की दुश्मनी
अगर ढुल्लू महतो के उकसाने से विवाद शांत नहीं हुआ तो स्थानीय नेताओं ने रामबाबू तिवारी का नाम जमशेदपुर पूर्वी से उछाल दिया। रामबाबू और सरयू राय के बीच पहले से ही विवाद है, जो स्थिति को और खराब कर रहा है। इस प्रकार, पार्टी के भीतर की यह खींचतान चुनाव जीतने की संभावनाओं को लगातार कम कर रही है।
बहरागोड़ा सीट: विद्युत वरण महतो की राजनीति
बहरागोड़ा में भाजपा के सांसद विद्युत वरण महतो ने पार्टी को जीतने से रोकने का ठेका लिया हुआ है। खबरों के अनुसार, वह सीट अपने बेटे के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं और इसलिए वे कमजोर उम्मीदवार की खोज में लगे हुए हैं। इस तरह के प्रयासों ने लगातार तीन बार से भाजपा को हार का सामना करवाया है।
कोल्हान में हार की पूरी कहानी—व्यक्तिगत हितों ने डुबोया
कोल्हान की राजनीति में भाजपा के बड़े नेताओं ने अपने व्यक्तिगत हितों को पार्टी से ऊपर रखा, और यही वजह है कि कोल्हान में भाजपा लगातार हार रही है। अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शैलेंद्र महतो—सभी के आपसी झगड़ों ने पार्टी को कमजोर कर दिया। रघुवर दास और अर्जुन मुंडा के बीच की खींचतान ने भी भाजपा के लिए हार की स्थितियां बनाई हैं।
अंदरूनी दुश्मनी के चलते पार्टी कमजोर
कोल्हान ही नहीं, संथाल परगना में भी निशिकांत दुबे और विधायकों के बीच खींचतान है। इन आपसी दुश्मनियों ने पार्टी की जीत की संभावनाओं को कमजोर कर दिया है। पलामू प्रमंडल और कोयलांचल में भी भाजपा के कार्यकर्ता और नेता पार्टी को हराने की दिशा में जुटे हुए हैं।
क्या बीजेपी जानबूझकर हार रही है?
अंत में सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा के नेता अपनी निजी दुश्मनी और राजनीति को पार्टी से ऊपर रख रहे हैं? जनता तो पार्टी को जिताने के लिए तैयार है, लेकिन जब पार्टी के नेता ही अपनी सीटें गंवाने के लिए तैयार बैठे हों, तो जीतना मुश्किल हो जाता है।
क्या है समाधान?
इस स्थिति को सुधारने के लिए क्या शिवराज सिंह चौहान या हिमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं को सख्ती से कदम उठाने होंगे? क्या वक्त आ गया है कि पार्टी के भीतर के विवादों को खत्म किया जाए और नेताओं को अनुशासन में लाया जाए? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो पार्टी को कोल्हान में हार का सामना करना पड़ेगा।
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