Ranchi Siyasi War: झारखंड की 1.36 लाख करोड़ की दावेदारी में सियासी घमासान, जानें क्या है पूरा मामला!
झारखंड की 1.36 लाख करोड़ रुपये की दावेदारी अब सियासी युद्ध बन चुकी है। जानिए क्यों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के बीच हो रहा है ट्विटर वॉर!
रांची: झारखंड की 1.36 लाख करोड़ रुपये की दावेदारी अब ‘सियासी युद्ध’ में तब्दील हो चुकी है। कोयले की रॉयल्टी और खदानों की जमीन के मुआवजे के रूप में यह रकम केंद्र सरकार से राज्य को मिलनी है, लेकिन इसे लेकर राजनीति का खेल तेज हो गया है। पिछले कुछ दिनों से इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड बीजेपी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के बीच तीखे बयानबाजी हो रही है, जिससे यह मामला अब सिर्फ एक वित्तीय मुद्दा नहीं बल्कि सियासी घमासान बन चुका है।
क्या है 1.36 लाख करोड़ की दावेदारी का मुद्दा?
16 दिसंबर को बिहार के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने केंद्र से सवाल उठाया था कि कोयले से अर्जित राजस्व में झारखंड का 1.41 लाख करोड़ रुपये का बकाया क्यों नहीं दिया जा रहा है। इसके बाद केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जवाब दिया कि झारखंड का कोयले से अर्जित राजस्व का कोई बकाया नहीं है। इस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे सोशल मीडिया पर उठाया और इस मुद्दे को राज्य के विकास के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने राज्य के बीजेपी सांसदों से झारखंड की मांग पर अपनी आवाज बुलंद करने की अपील की।
हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी का आमना-सामना
हेमंत सोरेन के बयान के बाद झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने पलटवार किया। मरांडी ने आरोप लगाया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) बिना किसी ठोस प्रमाण के केंद्र सरकार पर 1.36 लाख करोड़ का बकाया रखने का निराधार आरोप लगा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर झामुमो के पास इस आंकड़े को लेकर कोई ठोस दस्तावेज है तो उन्हें इसे सार्वजनिक करना चाहिए। मरांडी ने यह भी कहा कि झामुमो को यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह राशि किस मद की है और कब से लंबित है।
मरांडी ने हेमंत सोरेन को चुनौती देते हुए कहा, “झूठे आरोप और गलत आंकड़ों के सहारे केंद्र सरकार पर दोषारोपण करने की बजाय झारखंड की असल समस्याओं पर ध्यान दीजिए। बिना प्रमाण और आधारहीन आरोप लगाकर झारखंड की जनता को भ्रमित करने का खेल अब बंद होना चाहिए।”
हेमंत सोरेन का कड़ा जवाब
हेमंत सोरेन ने बाबूलाल मरांडी को जवाब देते हुए कहा कि झारखंड की मांग हवा-हवाई नहीं है, बल्कि यह राज्य के लोगों का हक है। उन्होंने कहा, “यह हमारे मेहनत का पैसा है, और हम इसे लेकर रहेंगे। यह राशि हर झारखंडी का हक है।” सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार ने कई बार विस्तृत ब्रेकअप के साथ केंद्र को इस राशि का दावा पेश किया है, लेकिन बीजेपी सरकार लगातार इसे नकार रही है। उन्होंने कहा कि यदि झारखंड बीजेपी इस मुद्दे पर राज्य के पक्ष में आवाज नहीं उठाती है, तो यह साफ माना जाएगा कि वे इस हकमारी में बराबर के साझीदार हैं।
बाबूलाल मरांडी का अगला हमला
बाबूलाल मरांडी ने फिर से हेमंत सोरेन से कई सवाल किए। उन्होंने पूछा, “यह बकाया राशि किस साल की है और कौन-कौन सी योजनाओं या परियोजनाओं से संबंधित है? 1.36 लाख करोड़ की राशि का आधार क्या है? यूपीए शासनकाल में और शिबू सोरेन के कोयला मंत्री रहते हुए कितनी राशि वसूली गई थी? और पारदर्शिता क्यों नहीं है?”
उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड के भ्रष्टाचार को देखते हुए राज्य की जनता को पूरा मामला जानने का अधिकार है। मरांडी ने कहा, “झूठे आंकड़े और फर्जी दावे बर्दाश्त नहीं होंगे, और जब तक सही दस्तावेज और तथ्यों को सामने नहीं लाया जाता, तब तक यह बात नहीं बन सकती।”
राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा
यह मामला अब केवल वित्तीय मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि एक राजनीतिक विवाद बन गया है। कोयले से अर्जित राजस्व और खदानों के मुआवजे का यह मुद्दा राज्य के राजनीतिक भविष्य को भी प्रभावित कर सकता है। राज्य के लोग और राजनीतिक दल इस बात को लेकर गंभीर हैं कि झारखंड के हिस्से का यह बकाया केंद्र से मिले या नहीं।
हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी के बीच चल रही बयानबाजी ने इस मुद्दे को सियासी मैदान में बदल दिया है। अब सवाल यह है कि केंद्र सरकार इस 1.36 लाख करोड़ रुपये के बकाए का समाधान कब और कैसे करती है। क्या झारखंड को उसका हक मिलेगा, या यह विवाद यहीं तक सीमित रहेगा? यह देखना अब दिलचस्प होगा।
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