हेमंत सोरेन की ऐतिहासिक वापसी,मईयां सम्मान योजना ने महिलाओं का दिल जीता ||
हेमंत सोरेन की झारखंड में ऐतिहासिक जीत, मईयां सम्मान योजना ने महिलाओं का दिल जीता। जानें कैसे झामुमो ने सत्ता में वापसी की और बीजेपी के मुद्दे फेल हुए।
Ranchi News: झारखंड की राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी सरकार ने सत्ता में वापसी कर इतिहास रच दिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाले इंडी गठबंधन ने झारखंड विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की। इस जीत का सबसे बड़ा कारण ‘मईयां सम्मान योजना’ को माना जा रहा है, जिसने महिलाओं का दिल जीत लिया।
महिलाओं की बदौलत झारखंड में JMM का परचम
झारखंड की महिलाओं ने इस बार राजनीति का चेहरा बदल दिया। हेमंत सोरेन की ‘मईयां सम्मान योजना’ के तहत महिलाओं को 1,000 रुपये दिए जा रहे थे, जिसे दिसंबर से 2,500 रुपये करने का वादा किया गया। इस योजना ने महिलाओं को इतनी प्रभावित किया कि उन्होंने एनडीए की ‘गोगो दीदी योजना’ को पीछे छोड़ दिया।
महिलाओं के इस समर्थन ने हेमंत सोरेन को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया। झारखंड के कई विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही। इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को दिया जा रहा है, जिन्होंने चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हेमंत-कल्पना की जोड़ी ने किया चमत्कार
चुनाव प्रचार में हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने 81 विधानसभा सीटों पर 200 से अधिक सभाएं कीं। दोनों ने न केवल झामुमो उम्मीदवारों बल्कि कांग्रेस और राजद के प्रत्याशियों के लिए भी प्रचार किया। हेमंत ने अपने भाषणों में जनता को यह समझाने में सफलता पाई कि बीजेपी ने उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर परेशान किया।
चुनाव से पहले ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के केस में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को झामुमो ने बड़ा मुद्दा बनाया। उन्होंने इस घटना को एक ‘विक्टिम कार्ड’ के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने जनता में सहानुभूति की लहर पैदा की।
जेल की मुहर ने बढ़ाई सहानुभूति
हेमंत सोरेन ने अपने चुनावी पोस्टरों में जेल की मुहर को दिखाकर जनता को यह संदेश देने का प्रयास किया कि उन्हें आदिवासी होने के नाते प्रताड़ित किया जा रहा है। इस रणनीति ने एंटी-इन्कंबेंसी को खत्म कर दिया और सहानुभूति का फायदा दिलाया।
आदिवासी और मुस्लिम वोटों पर मजबूत पकड़
झामुमो का सबसे बड़ा वोट बैंक आदिवासी और मुस्लिम समुदाय हैं। हेमंत ने आदिवासियों को यह समझाने में कामयाबी हासिल की कि बीजेपी उन्हें बांटने और उनकी जमीन छीनने की कोशिश कर रही है। आदिवासी बहुल इलाकों में झामुमो का प्रदर्शन शानदार रहा।
मुस्लिम वोटरों ने भी झामुमो को अपना समर्थन दिया। बीजेपी के ‘बांग्लादेशी घुसपैठ’ और ‘डेमोग्राफी चेंज’ जैसे मुद्दे मुस्लिम मतदाताओं को प्रभावित करने में असफल रहे। इसके विपरीत, झामुमो ने इन मुद्दों को झूठा साबित करने का काम किया।
बीजेपी की रणनीति क्यों हुई फेल?
बीजेपी का नारा ‘बंटोगे तो कटोगे और एक हैं तो सेफ हैं’ बैकफायर कर गया। पार्टी ने आदिवासी नेताओं सीता सोरेन और चंपाई सोरेन को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की, लेकिन इससे जनता में यह संदेश गया कि बीजेपी हेमंत सोरेन की पार्टी को तोड़ने की साजिश कर रही है।
कल्पना सोरेन का उभार
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद कल्पना सोरेन ने पार्टी को मजबूत करने का काम किया। उन्होंने गांडेय के उपचुनाव में जीत दर्ज की और इसके बाद विधानसभा चुनाव में 100 से अधिक सभाएं कीं।
कल्पना ने खासतौर पर महिलाओं को टारगेट किया। उनकी सादगी, संवाद शैली और जनता से जुड़ने का तरीका महिला मतदाताओं को बेहद पसंद आया। उनकी सभाओं में भारी भीड़ दिखी और उन्होंने महिलाओं के बीच अपनी खास जगह बनाई।
झामुमो की ऐतिहासिक जीत के सबक
हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने यह साबित कर दिया कि जनता उनके नेतृत्व में झारखंड को आगे बढ़ता देखना चाहती है। झामुमो ने विकास योजनाओं और भावनात्मक कनेक्ट के जरिए वोटरों को प्रभावित किया, जबकि बीजेपी की नीतियां और मुद्दे जनता की उम्मीदों से मेल नहीं खा सके।
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि झामुमो ने आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के साथ भावनात्मक संबंध स्थापित कर अपनी जीत सुनिश्चित की। वहीं, बीजेपी की विभाजनकारी नीतियां और झूठे मुद्दे उन्हें हार की ओर ले गए।
झारखंड में झामुमो की यह जीत इतिहास में दर्ज हो चुकी है। हेमंत सोरेन ने न केवल अपनी पार्टी को सत्ता में वापसी दिलाई, बल्कि झारखंड के मतदाताओं का दिल भी जीता। यह जीत झारखंड की राजनीति में मील का पत्थर साबित होगी।
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