Ranchi Dayan Pratha : हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं", झारखंड की पद्मश्री छुटनी देवी ने कही बड़ी बात!

पद्मश्री छुटनी देवी ने रांची में डायन प्रथा के खिलाफ महिलाओं से की अपील, जानें कैसे झारखंड की महिलाएं चिंगारी बन सकती हैं!

Jan 13, 2025 - 11:49
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Ranchi Dayan Pratha  : हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं", झारखंड की पद्मश्री छुटनी देवी ने कही बड़ी बात!
Ranchi Dayan Pratha : हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं", झारखंड की पद्मश्री छुटनी देवी ने कही बड़ी बात!

रांची: झारखंड की शौर्यगाथा में एक और नारी ने अपनी आवाज बुलंद की है। पद्मश्री से सम्मानित छुटनी देवी ने हाल ही में एक सशक्त संदेश दिया, जिसमें उन्होंने कहा, "हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं।" यह शब्द सिर्फ एक वक्तव्य नहीं, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत का प्रतीक हैं। छुटनी देवी ने झारखंड की महिलाओं से अपील की है कि वे डायन प्रथा के खिलाफ आगे आएं और इस अंधविश्वास को जड़ से समाप्त करें।

छुटनी देवी का संघर्ष और डायन प्रथा की कड़ी आलोचना

पद्मश्री छुटनी देवी को यह सम्मान उनके अथक संघर्ष और मेहनत के लिए मिला है, खासकर उनके द्वारा डायन प्रथा के खिलाफ की गई जंग के लिए। झारखंड के ग्रामीण इलाकों में, विशेषकर आदिवासी समुदायों में डायन के आरोप पर महिलाओं को घोर यातनाएँ दी जाती हैं, और यह कुप्रथा आज भी कई स्थानों पर जारी है। छुटनी देवी ने अपनी आवाज़ बुलंद कर इस प्रथा को चुनौती दी और एक नई दिशा की ओर महिलाओं को प्रेरित किया।

क्या है डायन प्रथा?

डायन प्रथा का मतलब है कि किसी महिला पर यह आरोप लगाना कि वह जादू-टोना करती है और समाज को नुकसान पहुंचाती है। इस आरोप के बाद उस महिला को तिरस्कार, सामाजिक बहिष्कार और मानसिक शोषण का सामना करना पड़ता है। यह प्रथा झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में बेहद प्रचलित है और इसने सैकड़ों महिलाओं की जिंदगियों को तबाह कर दिया है। डायन करार दी गई महिला के खिलाफ कई बार हिंसा भी होती है।

डायन प्रथा पर शोध और उसकी सच्चाई

डॉ रामदयाल मुंडा शोध संस्थान ने अब इस मुद्दे पर गंभीरता से अध्ययन शुरू किया है। संस्थान का प्रारंभिक शोध यह दिखाता है कि डायन प्रथा के कारण पीड़ित परिवारों और व्यक्तियों के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर गहरा असर पड़ता है। डायन करार दी गई महिला या परिवार को गांव और समाज से पूरी तरह से अलग कर दिया जाता है, जिससे वे मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से टूट जाते हैं।

संस्थान का यह शोध एक नई दिशा में काम करने का संकेत देता है। इसके परिणामों से सरकार को डायन प्रथा को रोकने के लिए नीतियों को तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे यह भी साफ होगा कि अब तक के प्रयासों को और बेहतर कैसे किया जा सकता है और समाज में इस कुप्रथा को खत्म करने में कौन से उपाय अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं।

क्या बदलाव लाएगी यह शोध?

यह शोध सिर्फ अकादमिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसके जरिए यह समझने में मदद मिलेगी कि डायन प्रथा का वास्तविक कारण क्या है और इसके खिलाफ किस प्रकार से जागरूकता और कदम उठाए जा सकते हैं। इस शोध के परिणामों से यह भी स्पष्ट होगा कि अब तक के प्रयासों को किस प्रकार और कारगर बनाया जा सकता है ताकि महिलाएं इस भयावह कुप्रथा से बच सकें।

महिलाओं की शक्ति और समाज में बदलाव की दिशा

छुटनी देवी के संघर्ष और शोध संस्थान के प्रयासों से एक बात साफ हो गई है - महिलाओं में चिंगारी की ताकत है, और जब ये चिंगारियाँ एक साथ आ जाती हैं, तो वे बड़ी आग का रूप ले सकती हैं। इस आग से सिर्फ डायन प्रथा ही नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त अन्य प्रकार के अंधविश्वास और भेदभाव को भी जलाया जा सकता है।

झारखंड की महिलाओं से अपील:

छुटनी देवी ने अपनी अपील में कहा, "झारखंड की हर महिला को अपनी शक्ति का अहसास करना होगा। हम सिर्फ फूल नहीं, बल्कि चिंगारी हैं।" उन्होंने झारखंड की महिलाओं से अपील की कि वे इस कुप्रथा के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करें और समाज में बदलाव लाने की दिशा में काम करें।

अब समय है बदलाव का!

डायन प्रथा के खिलाफ उठती इस आवाज़ ने झारखंड के सामाजिक ताने-बाने को एक नई दिशा दी है। यह एक स्पष्ट संदेश है कि महिलाओं को उनकी ताकत का अहसास होना चाहिए और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ा जाना चाहिए। अगर हम बदलाव चाहते हैं तो हमें एकजुट होकर इस कुप्रथा का अंत करना होगा।

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