प्रेम पथ - डॉ0 सुनील कुमार तिवारी जी कानपुरी
मेरा नाम डॉ. सुनील कुमार तिवारी जी है। मेरे पिता का नाम श्री जे. पी. तिवारी है। मेरी शिक्षा में एम.एस.सी. (रसायनविज्ञान), एम.ए. (गणित, हिंदी, राजनीतिशास्त्र), एम.एड., पी.एच.डी., डिप्लोमा इन कंप्यूटर, और डिप्लोमा इन योगा शामिल हैं। मैं पेशे से एक शिक्षक, साहित्यकार और स्वतंत्र लेखक हूँ। वर्तमान में मैं हिंदी प्रचारिणी सभा भारत के प्रांतीय संयोजक और अखिल भारतीय शिक्षक साहित्यकार परिषद भारत के प्रचार मंत्री के रूप में कार्यरत हूँ।मैंने लेखन के क्षेत्र में अधिकतम पुरस्कार जीते हैं और अधिक से अधिक लिखने का प्रयास कर रहा हूँ |
प्रेम पथ
आग लगी है मन मे आकर तुम्ही बुझाओ |
विरह धधक रही है बन फुहार बरस जाओ |
चलना बहुत कठिन है प्रेम पथ पर |
कस्मे वादे न करो अब प्रियवर ||
पग पग शूल बिछे है पथ पर |
मिलने आस मे चला जा रहा |
बंजर हो रही श्यामला मे तरु लगाएं |
कुंठित मन मे प्रेम भाव का दीप जलाएं ||
दोनों मिल मन की उलझन सुलझाएँ |
घने वृक्ष के नीचे एक दूसरे क़ो गले लगाएं |
दिल की क्यों नही तुम सुनते हो |
नीर भरे नैनो से क्यों अश्क़ बहाते हो ||
शुक्रिया अपना ख्याल रखना क्यों कहता है |
दिल का दर्द कौन जनता है |
पढ़ लें जो मन भाव वह साथ जरूरी है |
अहसास हो रहा बस अब कुछ ही दूरी है ||
डॉ0 सुनील कुमार तिवारी जी- कानपुरी
(लेखक एवं साहित्यकार)
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