प्रेम और वासना में अंतर - अजय कुमार सिंह, आईआरएस

प्रेम और वासना में अंतर - अजय कुमार सिंह, आईआरएस

Jul 11, 2024 - 17:11
Jul 13, 2024 - 14:33
प्रेम और वासना में अंतर - अजय कुमार सिंह, आईआरएस

वासना की आंख से देखा जाना किसी को भी पसंद नहीं। प्रेम की आंख से देखा जाना सभी को पसंद है। तो दोनों आंखों की परिभाषा समझ लो। 

वासना का अर्थ है, वासना की आंख का अर्थ है कि तुम्हारी देह कुछ ऐसी है कि मैं इसका उपयोग करना चाहूंगा। प्रेम की आंख का अर्थ है, तुम्हारा कोई उपयोग करने का सवाल नहीं, तुम हो, इससे मैं आनंदित हूं। तुम्हारा होना, अहोभाग्य है! बात खतम हो गयी। प्रेम को कुछ लेना-देना नहीं है। वासना कहती है, वासना की तृप्ति में और तृप्ति के बाद सुख होगा; प्रेम कहता है, प्रेम के होने में सुख हो गया। इसलिए प्रेमी की कोई मांग नहीं है।

तब तो तुम अजनबी के पास से भी प्रेम से भरे निकल सकते हो। कुछ करने का सवाल ही नहीं है। 

हड्डियों को हड्डियों से लगा लेने से कैसे प्रेम हो जाएगा! प्रेम तो दो आत्माओं का निकट होना है। और कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि जिसके पास तुम वर्षों से रहे हो, बिलकुल पास रहे हो, पास न होओ; और कभी ऐसा भी हो सकता है कि राह चलते किसी अजनबी के साथ तत्क्षण संग हो जाए, मेल हो जाए, कोई भीतर का संगीत बज उठे, कोई वीणा कंपित हो उठे। बस काफी है। उस क्षण परमात्मा को धन्यवाद देकर आगे बढ़ जाना। पीछे लौटकर भी देखने की प्रेम को जरूरत नहीं है। पीछे लौट-लौटकर वासना देखती है। और वासना चाहती है कि दूसरा मेरे अनुकूल चले।