स्वतंत्रत भारत में स्वतंत्रता का अनुभव व महत्व  - प्रतिभा प्रसाद "कुमकुम"

Aug 15, 2024 - 00:32
Aug 15, 2024 - 14:07
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स्वतंत्रत भारत में स्वतंत्रता का अनुभव व महत्व  - प्रतिभा प्रसाद "कुमकुम"
स्वतंत्रत भारत में स्वतंत्रता का अनुभव व महत्व  - प्रतिभा प्रसाद

स्वतंत्रत भारत में स्वतंत्रता का अनुभव व महत्व 

अपने रुह से अनुभव करने वाली अनुभूति यह है कि आप अपने चिंतन से कर्म में स्वतंत्रत हैं या नहीं । यदि हैं तो कितना हैं कब से हैं कब तक हैं या कब तक रह पाएंगे ? क्यों की दैहिक दैविक भौतिक ताप आपको कब कहाँ कैसे मजबूर कर देगी , कब क्या छिन लेगी , कब क्या दे देगी ? यह सब विधि के विधान पर ही निर्भर करता है । आज मैं अपने विचार व्यक्त कर पा रहीं हूँ यह भी ईश्वर प्रदत्त ही है । स्वतंत्रत लेखन भी माँ सरस्वती के आशीर्वाद स्वरूप ही मिलता है । अतः माँ शारदे को शत् शत् नमन करते हुए लेखनी चल पड़ी है । आगे माँ जो लिखवा लें । 

                      भारत माता की जय । जगत जननी माँ जगदम्बे की जय । श्री गणेश जी की जय । श्री शिव शंकर को नमन । नमन श्री नारायणी श्री नारायण को  । एक लम्बी परतंत्रता के बाद स्वतंत्रता की सुबह को कोटि-कोटि नमन । आहा कितनी सुखद अनुभूति हुई होगी १९४७ की सुबह पँन्द्रह अगस्त को । आज भी आँखें नम हो जाती हैं । काश! उसी दिन भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो गया होता ? यह स्वतंत्रत भारत की सबसे बड़ी भूल थी । खैर जो होता है अच्छे के लिए ही होता है । शायद इसके पीछे की अच्छाई बाद में आने वाली पीढ़ी को पता चले । क्यों की ईश्वर की मर्जी के बिना तो एक पत्ता भी नहीं डोलता है । तो इतनी बड़ी घटना के पीछे भी जरूर ही कोई राज होगा । हम सबने इसे वैसे ही स्वीकार भी लिया ही था । अब बदलाव का समय शुरू हो चुका है । स्वतंत्रत भारत में अपने रामलला के मंदिर का निर्माण शुभ संकेत है । परिवर्तन का बिगुल बज चुका है । यही है स्वतंत्रत भारत की पहचान । अभी तक हम अपने धर्म में स्वतंत्रत नहीं थे । पर्दे के पीछे से इसे रोकने की कोशिश लगातार जारी रही । सेकुलरिज्म के नाम पर चिंतन का भटकाव । झूठे प्रचार संग ऐसे कई हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं । धर्म परिवर्तन प्रमुख मुद्दा रहा । कई इलाकों से हिन्दूओं का पलायन इसके कारण हुए । हिन्दूओं पर अत्याचार की कहानियां विश्व विख्यात हैं । अब जाकर हिन्दू धर्म खुली साँस ले पा रहा है तो वास्तव में स्वतंत्रता का अर्थ समझ में आ रहा है । इस बार सचमुच में स्वतंत्रता दिवस के अमृत महोत्सव का‌ अनुष्ठान अनुष्ठान की तरह ही आनंदित करा रहा है । लग रहा है कि यह हमारा देश है । यह हमारी जननी है । माँ वैश्णव देवी के प्रयास से श्री शिव शंकर द्वारा निर्मित इस ब्रह्माण्ड के भारतीय भू-भाग के स्वामित्व के संतती की हम हीं संतान है । कैसा सुखद आश्चर्य है ? अंदर तक देवत्व की भावना संचार कर रही है । माँ दुर्गा होने का एहसास हर नारी में प्रज्वलित हो उठी है । यह है भारतीय नारी । स्वतंत्रत भारत की सभ्यता संस्कृति को पूर्ण करने वाली संस्कृति की संवाहक ।

          अमृत महोत्सव को सफल अमृत महोत्सव घोषित करने वाली  सांस्कृति भावना और चिंतन की अभिव्यक्ति लिए देश को समर्पित हर नर नारी के प्रेम के पल्लव को अनुभव किया जा सकता है । देश धरा पर बलिदान हुए अमर जवान , हमारे सैनिक व स्वतंत्रता की लड़ाई में फांसी पर चढ़े भारत पुत्र , उन सभी पर न्योछावर है हर भारतियों का मान । यह सब हैं हमारे स्वतंत्रत भारत महोत्सव के संवाहक । शश्य श्यामला धरती को सुरक्षित और पूजित रखने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को कोटि-कोटि नमन वंदन के साथ समर्पित है अंतस की नेह सुधारस संचित अभिव्यक्ति ‌।

           स्वतंत्रत भारत की कामना का पहला बिगुल फूंकने वाले मंगल पाण्डेय १८५७ में ही आजाद भारतीय अभिव्यक्ति के लिए अपनी छटपटा प्रदर्शित कर चुके थे । कालांतर में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस  उनकी 'आजाद हिन्द फौज', 'गदर पार्टी' वगैरह ने देश के अंदर और बाहर दोनों तरफ से युद्ध छेड़ दिया था । इनमें चँन्द्रर शेखर आजाद ,भगत सिंह , सुखदेव बिहारी , राजगुरु के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं । रानी लक्ष्मीबाई , दुर्गा भाभी आदि ऐसे कई महिलाओं ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी । स्वामी विवेकानन्द ने अपने अल्पायु में ही अपनी बुद्धि ‌का‌ लोहा मनवा चुके थे । 

            भारत की आज़ादी में सिखों की भूमिका भी अहम रही है । कुका  विद्रोह में ६६ नामधारी सिख बलिदान हो गए थे । इस में एक बारह वर्ष का बच्चा ‌भी था । जिसे सिपाहियों ने सर धड़ से अलग कर दिया था । ऐसे छब्बीस विद्रोह का जिक्र इतिहास में मिलता है । भारत माता कि आजादी की चर्चा कर बस उन भावनाओं को सम्मान देना जरूरी है जिन्होंने अपने रक्त से देश की आजादी को सींचा है । ऐसे बलिदानियों को भारत का बच्चा-बच्चा नमन करता है । 

                  इस स्वतंत्रता के महोत्सव के अवसर पर हम जालियांवाला बाग ‌हत्याकाण्ड को कभी नहीं भूल सकते हैं । १३ अप्रैल १९१९ भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निकट जालियांवाला बाग में बैसाखी के दिन अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अकारण गोलियाँ चलवाकर चार सौ से अधिक लोगों की हत्या करवाई । इस गोली काण्ड में दो हजार से अधिक लोग घायल हुए । इसमें इकतालीस नाबालिग लड़के तथा छः माह का एक बच्चा भी शामिल था । इस काण्ड के लिए सदियों तक अंग्रेज़ो को माफ नहीं किया जा सकता है । यह कैसी सत्ता लिप्सा थी जो मानव और मानवता के खून से सनी थी । ऐसी सत्ता लिप्सा को भारत के लाल भर्त्सना करते हैं । लेकिन उनकी यह क्रुरता ही भारतीय जनमानस को जगाने के लिए उत्प्रेरक का काम कर गईं । भारत माता की सुरक्षा के लिए हर भारतीय बन्दे मातरम् बोल उठा । हर गली गांव जाग गया । भारत माता की जय से हुंकार उठा ।

                     किसी भी अत्याचार की हद होती है । सनातन धर्मी हमेशा  "वसुधैव कुटुंबकम्" के विचार चिंतन को आत्मसात कर अपने महत्वपूर्ण जीवन शैली को जिंदा रखते हुए हर धर्म का सम्मान करती रही है । बहुत दुख होता जब हम ठगे छले जाते हैं । आहात मन फिर भी मानवता की सेवा में लग जाता है । अंतिम विजय धर्म और सत्य की होगी यह मानते हुए हम सदैव श्रीराम श्रीकृष्ण को ही आदर्श मानकर आचरण करते हैं । हमारी जीवन शैली इन्हीं प्रभु नारायण की देन‌ है ‌। यह सब लीलाधर की लीला है । जो समझा वो‌ जीत गया । अपने पुर्वजों और अपने भगवान को सादर‌ नमन करते हुए , अपने देश और धर्म की रक्षा में सदा तत्पर रहते हैं ‌। कुछ जयचन्दों को छोड़कर ।

               भारतीय जनमानस को स्वतंत्र भारत की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ  देते हुए भारतीयता को जिन्दा रखने की सविनय पूर्वक सादर प्रार्थना करते हैं । इति शुभ !


प्रतिभा प्रसाद "कुमकुम"

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।