MP Shock: रिजल्ट के बाद पांच छात्रों ने तोड़ी जीवन की डोर, शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल
मध्य प्रदेश में 12वीं का रिजल्ट आते ही एक ही दिन में 5 छात्रों ने आत्महत्या कर ली। फेल होने या कम नंबर आने पर उठाया खौफनाक कदम। क्या हमारी शिक्षा प्रणाली युवाओं का भरोसा तोड़ रही है?

मध्य प्रदेश में 12वीं के नतीजों ने एक बार फिर से देश की शिक्षा व्यवस्था और छात्रों के मानसिक दबाव पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 2025 के MP Board Result के जारी होते ही प्रदेश के अलग-अलग जिलों से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई – केवल एक दिन में पांच छात्रों ने आत्महत्या कर ली। कारण? किसी ने परीक्षा में असफलता को बर्दाश्त नहीं किया, तो किसी ने उम्मीद से कम अंक आने पर अपने जीवन को अलविदा कह दिया।
इस खबर ने हर माता-पिता, शिक्षक और शिक्षा विशेषज्ञ को झकझोर कर रख दिया है। क्या हमारे बच्चों को इतनी कठिन मानसिक परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है कि वे जीवन जैसे अमूल्य तोहफे को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं?
विदिशा: दो घटनाएं, दो मासूम जानें
विदिशा जिले में दो छात्रों ने आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठाया। शशांक शर्मा, जो NEET की तैयारी कर रहे थे, ने कम अंक आने के कारण रेलवे ट्रैक पर कूदकर आत्महत्या कर ली। उनके पिता ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि शशांक रिजल्ट के बाद फोटोकॉपी के बहाने घर से निकले थे। लेकिन वापस लौटने के बजाय उन्होंने जिंदगी को अलविदा कह दिया।
दूसरे छात्र अतुल सेन ने गंज बासौदा स्थित अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या की। फिलहाल कारण की जांच चल रही है, लेकिन शक यही है कि रिजल्ट ही इसकी वजह बना।
भिंड, दमोह और सतना में भी मातम
भिंड जिले की खुशी नरवरिया, जो 10वीं में टॉपर रही थीं, इस बार एक विषय में कम अंक आने से टूट गईं। उन्होंने अपने ही घर में फांसी लगा ली।
दमोह जिले के झागर गांव में एक 17 वर्षीय छात्रा ने फेल होने पर जान दे दी। परिजनों के अनुसार, वह विज्ञान विषय की छात्रा थी और परिणाम से बेहद निराश थी।
सतना जिले के रामपुर बाघेलान थाना क्षेत्र में, परीक्षा परिणाम आने के केवल आधे घंटे बाद एक 18 वर्षीय छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिजनों को यह भी नहीं पता था कि उसके नंबर कैसे आए हैं।
शिक्षा प्रणाली पर सवाल
यह कोई पहला मामला नहीं है जब MP Board के परिणाम के बाद छात्रों की जानें गई हों। हर साल परीक्षा परिणामों के बाद छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं। इतिहास गवाह है, 2015 से 2024 के बीच प्रदेश में दर्जनों छात्र परीक्षा में असफलता या अपेक्षा से कम अंक मिलने पर जान गंवा चुके हैं।
कौन है जिम्मेदार?
क्या शिक्षा केवल नंबरों की दौड़ बन चुकी है? क्या हम अपने बच्चों को मानसिक रूप से इतना मजबूत बना पा रहे हैं कि वे असफलता को झेल सकें? परीक्षा के नाम पर यह मानसिक यातना कब तक चलेगी?
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यह आत्महत्याएं केवल रिजल्ट की वजह से नहीं, बल्कि लगातार दबाव, असफलता का डर और सामाजिक तुलना के कारण होती हैं। स्कूलों और अभिभावकों को मिलकर इस पर काम करना होगा।
अब क्या?
MPBSE को चाहिए कि वह रिजल्ट के साथ एक काउंसलिंग सुविधा भी शुरू करे। विद्यालयों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खुली बातचीत हो और छात्रों को सिखाया जाए कि असफलता अंत नहीं, एक सीख है।
आज अगर हम नहीं जागे, तो कल और भी शशांक, खुशी और अतुल इस दौड़ में अपनी जानें गंवा देंगे।
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