Kargil Heroes Inspiring :कारगिल के वीरों की अनसुनी कहानियां: कैसे भारतीय जांबाजों ने दुश्मनों को दी करारी मात?

जानिए कारगिल युद्ध के उन वीरों की प्रेरक गाथाएं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों को परास्त किया। आज भी उनके बलिदान से देश के युवा प्रेरणा ले सकते हैं।

Jan 15, 2025 - 13:28
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Kargil Heroes Inspiring :कारगिल के वीरों की अनसुनी कहानियां: कैसे भारतीय जांबाजों ने दुश्मनों को दी करारी मात?
Kargil Heroes Inspiring :कारगिल के वीरों की अनसुनी कहानियां: कैसे भारतीय जांबाजों ने दुश्मनों को दी करारी मात?

कारगिल के वीरों की अमर गाथा: साहस और बलिदान का इतिहास

कारगिल युद्ध भारतीय इतिहास में वीरता और बलिदान की एक सुनहरी कहानी है। इस संघर्ष में हमारे जवानों ने न केवल दुश्मनों को हराया बल्कि पूरे विश्व को भारतीय सेना की ताकत का एहसास कराया। आज हम उन वीरों की प्रेरक गाथाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की अखंडता को बचाया।

1. मानिक वरदा: अदम्य साहस की मिसाल

  

बिहार रेजीमेंट के सिपाही मानिक वरदा, जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अपने दोनों हाथ और पैर गंवा दिए, आज भी साहस और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल हैं। उनके हौसले में कभी कोई कमी नहीं आई। मानिक वरदा कहते हैं, "भले ही कारगिल युद्ध को 23 साल बीत गए हों, लेकिन मेरे लिए यह कल की बात है। मेरी आंखों के सामने हर दृश्य आज भी दौड़ता हुआ दिखाई देता है। पाकिस्तान को मिटाने की तमन्ना मेरे दिल में आज भी जीवित है।"

हालांकि उनके हाथ और पैर नहीं रहे, लेकिन उनके जज्बे और साहस ने उन्हें कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। वे कहते हैं, "मेरी भुजाएं आज भी दुश्मन से बदला लेने के लिए फड़क उठती हैं।"

युद्ध के दौरान अदम्य साहस

मानिक वरदा झारखंड के गोविंदपुर गदरा के निवासी हैं। उनका कहना है कि कारगिल युद्ध से पहले वे श्रीलंका में शांति सेना का भी हिस्सा रह चुके थे। 1999 में जब उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध के लिए उरी सेक्टर में तैनात किया गया, तो वहां बर्फीली पहाड़ियों की रक्षा के लिए मोर्चा संभालना उनके लिए एक बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था।

उन्होंने बताया कि जैसे ही उनकी टुकड़ी वहां पहुंची, दुश्मनों ने जबरदस्त फायरिंग शुरू कर दी। युद्ध के दौरान लगातार गोलीबारी के बीच, पहाड़ भी खिसक रहे थे। इसी दौरान एक बर्फीले पहाड़ ने मानिक और उनके चार साथियों को अपने आगोश में ले लिया। मानिक करीब 18 घंटे तक बर्फ में दबे रहे। इस दौरान उनके एक साथी शहीद हो गए।

इलाज और नई शुरुआत

बर्फ से बाहर निकालने के बाद, मानिक को इलाज के लिए पहले श्रीनगर, फिर उधमपुर और अंत में पुणे के आर्टिफिशियल लिंब फिटिंग सेंटर भेजा गया। उन्होंने कहा, "मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं अपना मिशन पूरा नहीं कर सका।"

परिवार का साथ और मजबूती

मानिक वरदा का परिवार आज भी उनके बलिदान पर गर्व करता है। उनकी पत्नी शिक्षिका हैं, उनका बड़ा बेटा दिल्ली में एक इंजीनियर है, और छोटा बेटा जमशेदपुर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा है।

मानिक वरदा जैसे जांबाज सैनिकों की कहानियां हमें सिखाती हैं कि हौसला और देशभक्ति किसी भी कठिनाई को मात दे सकते हैं। उनका बलिदान और साहस हमेशा देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

2. सत्येंद्र सिंह: सियाचिन से कारगिल तक वीरता की गाथा

एयर डिफेंस के जाबांज सत्येंद्र सिंह को आज भी 18 साल पहले हुआ करगिल युद्ध का हर पल जीवंत याद है। जून 1999 की एक शाम को, यूनिट हेड ने पूरी फील्ड रेजीमेंट को आदेश दिया कि वे मात्र छह घंटे में "रेडी फॉर मूव" हो जाएं। इसका अर्थ था कि सभी अधिकारी, जेसीओ और जवान अपने निजी हथियार, बोर्डिंग उपकरण और लाइट मेटल टैंक लेकर बॉर्डर के लिए रवाना हो जाएं।

72 घंटे का राशन और पहली तैनाती

सत्येंद्र सिंह और उनकी यूनिट तड़के तीन बजे मोकल चौकी पर पहुंची। उनकी टीम को केवल 72 घंटे के ड्राई राशन के साथ बॉर्डर पर तैनात किया गया था। मोकल चौकी पर रेजीमेंट को "रेडी फॉर एक्शन" का आदेश दिया गया, जिसके तहत मिसाइल लोड टैंक पाकिस्तान की ओर फायरिंग के लिए तैयार कर दिए गए।

रात के समय, गाड़ियों का काफिला इतना लंबा था कि सुरक्षा कारणों से सभी गाड़ियों की हेडलाइट बंद कर दी गई थी। इस दौरान एक हादसा हुआ, जिसमें सुखविंदर सिंह नामक जवान दो गाड़ियों के बीच दबकर शहीद हो गए। सुबह उनकी शहादत की सूचना दी गई और दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

कमांड पोस्ट पर चुनौतीपूर्ण ड्यूटी

सत्येंद्र सिंह, जो जुगसलाई गोशाला चौक स्थित के.के. मिश्रा कॉलोनी के निवासी हैं, ने कमान पोस्ट में वायरलेस सेट ऑपरेट करते हुए अपने सीओ को पाकिस्तानी हवाई जहाज की मूवमेंट की सूचना दी। युद्ध के दौरान उनकी टीम को 2-4 दिनों तक एक ही स्थान पर रुकना पड़ता था।

उनके पास हैवी आर्टिलरी मशीन गन थी, जिसे बर्फीली पहाड़ियों पर ले जाना अत्यंत मुश्किल था। फिर भी, हर चुनौती को पार कर उन्होंने अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। उन्होंने बताया कि कभी-कभी एक चूल्हे पर कई सैनिक खाना खाते थे, और कई बार भूखे भी रह जाते थे।

सियाचिन और करगिल की दुर्दांत परिस्थितियां

सत्येंद्र सिंह ने ऑपरेशन मेघदूत के दौरान न केवल करगिल, बल्कि सियाचिन की दुर्दांत परिस्थितियों में भी अपनी सेवाएं दीं। ऑपरेशन मेघदूत पूरा होने के बाद भी वे 25 नवंबर तक बॉर्डर पर तैनात रहे।

सत्येंद्र सिंह की वीरता और संघर्ष इस बात का प्रमाण है कि देश की रक्षा में सैनिक अपने जीवन की हर कठिनाई को सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। उनकी यह गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और गौरव का स्रोत है।

3. बिरजू कुमार: 30 चोटियों से दुश्मन का सफाया

गोविंदपुर निवासी हवलदार बिरजू कुमार ने 30 दिसंबर 1995 को भारतीय थल सेना में शामिल होकर राष्ट्र सेवा का संकल्प लिया। एयर डिफेंस यूनिट के सदस्य के रूप में उन्होंने हर मोर्चे पर अपनी जिम्मेदारी निभाई और कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और जुनून का परिचय दिया।

कारगिल युद्ध में वीरता का प्रदर्शन

कारगिल युद्ध के दौरान हवलदार बिरजू कुमार ने ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को परास्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में दुश्मनों को न केवल खदेड़ा गया बल्कि उनके नापाक मंसूबों को पूरी तरह से विफल कर दिया गया। युद्ध की घोषणा से पहले ही भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को कारगिल से खदेड़ने की योजना बना ली थी, जिसे हवलदार बिरजू और उनकी टीम ने पूरी कुशलता से अंजाम दिया।

15 वर्षों की समर्पित सेवा

भारतीय सेना के माध्यम से राष्ट्र की सेवा करना उनके लिए एक गर्व और चुनौतीपूर्ण अनुभव रहा। हवलदार बिरजू कुमार ने अपनी 15 वर्षों की सेवा के दौरान अनुशासन, साहस और कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श प्रस्तुत किए। अंततः 1 नवंबर 2011 को उन्होंने भारतीय थल सेना से सेवानिवृत्ति ली।

उनकी यह गाथा आज भी युवाओं को प्रेरित करती है और राष्ट्र के प्रति सेवा भावना को जगाने का कार्य करती है। हवलदार बिरजू कुमार जैसे वीर सपूतों की बदौलत देश सुरक्षित और गौरवमयी है।

4. अजय सिंह: रसद और गोला-बारूद की जिम्मेदारी

6 बिहार इंफैंट्री रेजिमेंट के हवलदार अजय सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान अपनी कर्तव्यनिष्ठा और अद्वितीय प्रबंधन कौशल का परिचय दिया। युद्ध के समय, उनकी जिम्मेदारी थी कि कारगिल में अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे जवानों को समय पर भोजन, गोला-बारूद, और पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।

जम्मू से कारगिल तक का सफर

हवलदार अजय सिंह की यूनिट जम्मू में पोस्टेड थी। उन्हें सूचना मिली कि तत्काल कारगिल के लिए कूच करना है। उनका काफिला जम्मू से द्रास तक पहुंचा, जो कारगिल से लगभग 20 किलोमीटर पहले है। दुश्मन के फायरिंग रेंज से बचाव के लिए हथियार और रसद वाली गाड़ियां अलग-अलग सुरक्षित ठिकानों पर तैनात की गईं। उनकी टीम ने सुनिश्चित किया कि गोला-बारूद और रसद की आपूर्ति में कोई बाधा न आए।

सेना में योगदान और सम्मान

हवलदार अजय सिंह को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए "ऑपरेशन विजय मंडल" का सम्मान प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त, उन्होंने "ऑपरेशन शांति" में भी भाग लिया और अरुणाचल प्रदेश मेडल अर्जित किया। उनकी यह सेवाएं भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा का हिस्सा हैं।

वर्तमान जीवन

सेवानिवृत्ति के बाद हवलदार अजय सिंह टेल्को, जमशेदपुर में निवास कर रहे हैं। वर्तमान में वे बैंक ऑफ इंडिया की टेल्को शाखा में सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्यरत हैं। उनकी कहानी न केवल सेना के जवानों के लिए बल्कि आम नागरिकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।

हवलदार अजय सिंह का योगदान यह दर्शाता है कि किसी भी युद्ध में केवल अग्रिम मोर्चे पर लड़ने वाले सैनिक ही नहीं, बल्कि उनके पीछे काम करने वाली सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स टीम भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है।

5. ललित नारायण चौधरी: युवाओं को प्रेरित करने की अपील

नायब सूबेदार ललित चौधरी ने 6 सितंबर 2002 को भारतीय थल सेना में शामिल होकर राष्ट्र सेवा का संकल्प लिया। अपनी 18+ वर्षों की सेवा के दौरान उन्होंने सेना, वायुसेना और नौसेना की विभिन्न प्रतिष्ठित इकाइयों के साथ कार्य किया और अपने असाधारण योगदान से भारतीय सेना का गौरव बढ़ाया।

सेवा में उपलब्धियां

  • ऑपरेशन हिफ़ाज़त में उत्कृष्टता: नायब सूबेदार ललित चौधरी ने ऑपरेशन हिफ़ाज़त के दौरान पेशेवर उत्कृष्टता का परिचय दिया, जिसके लिए उन्हें 2014 में "COAS प्रशस्ति" प्राप्त हुई।
  • सियाचिन बेस कैंप कार्यकाल: कठिनतम परिस्थितियों में अपने योगदान के लिए उन्हें सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) की सराहना मिली।
  • विशेष ऑपरेशन और प्रशिक्षण अनुभव:
    • आर एंड ओ फ्लाइट श्रीनगर (उत्तरी कमान, ऑपरेशन रक्षक)
    • आर एंड ओ उड़ान रांची (दक्षिण पश्चिमी कमान)
    • आर एंड ओ फ्लाइट लेमाखोंग (सीआईओपीएस, ऑपरेशन हिफ़ाज़त)
    • प्रशिक्षक के रूप में एएडी कॉलेज गोपालपुर
    • कारगिल एविएशन स्क्वाड्रन, लेह लद्दाख
    • सियाचिन बेस कैंप

निवर्तमान जीवन और दृष्टिकोण

नायब सूबेदार ललित चौधरी वर्तमान में जमशेदपुर के टेल्को कॉलोनी, गरुरबासा में निवास कर रहे हैं। अपने अनुभवों और कारगिल युद्ध के गौरव को साझा करने में वे गहरी रुचि रखते हैं। उनका मानना है कि कारगिल युद्ध जैसी गाथाओं को जनसामान्य तक पहुंचाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए।

प्रेरणास्रोत

नायब सूबेदार ललित चौधरी की कहानी न केवल सेना के जवानों के लिए बल्कि हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी सेवाएं भारतीय सेना की अदम्य वीरता और कर्तव्यनिष्ठा का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

निष्कर्ष: वीर गाथाओं से प्रेरणा लें

कारगिल युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह वीरता, साहस और बलिदान की अद्वितीय गाथा थी। इन वीरों की कहानियां न केवल हमें प्रेरित करती हैं बल्कि यह भी सिखाती हैं कि देश की सेवा से बढ़कर कुछ नहीं।

हर युवा को इन कहानियों से प्रेरणा लेकर देश के लिए योगदान देने का संकल्प लेना चाहिए।

FAQ (Frequently Asked Questions):

  1. कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने कैसे विजय प्राप्त की?
    भारतीय सेना ने दुश्मन की हर चाल को मात देकर रणनीतिक चोटियों पर कब्जा किया।

  2. कारगिल युद्ध के प्रमुख नायक कौन थे?
    कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे और अन्य कई जांबाज इस युद्ध के नायक थे।

  3. क्या इन वीरों की कहानियां नई पीढ़ी तक पहुंचाई जा रही हैं?
    हां, सरकार और विभिन्न संगठन इन कहानियों को प्रचारित करने का प्रयास कर रहे हैं।

  4. कारगिल युद्ध की वर्षगांठ कब मनाई जाती है?
    हर साल 26 जुलाई को "कारगिल विजय दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।