Jamshedpur Inspection: अस्पताल में अफसर की रेड, 4 डॉक्टर गैरहाजिर, मचा हड़कंप!
धालभूम अनुमंडल पदाधिकारी शताब्दी मजूमदार ने जमशेदपुर सदर अस्पताल का औचक निरीक्षण किया, जहां 4 डॉक्टर लापता मिले! क्या सरकारी अस्पतालों की लापरवाही अब भी जारी है? जानिए पूरा मामला।
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सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्थाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन जब कोई अधिकारी औचक निरीक्षण करता है, तो असलियत सामने आ ही जाती है। ऐसा ही हुआ झारखंड के जमशेदपुर में, जहां धालभूम अनुमंडल पदाधिकारी शताब्दी मजूमदार ने सदर अस्पताल का अचानक निरीक्षण किया और वहां की लापरवाही देखकर सख्त आदेश जारी किए। इस दौरान चार डॉक्टर अपने कार्यस्थल से गायब पाए गए, जिससे अस्पताल प्रबंधन में हड़कंप मच गया!
कौन-कौन से डॉक्टर मिले अनुपस्थित?
निरीक्षण के दौरान इन विभागों के डॉक्टर अपनी ड्यूटी से गायब मिले:
- ईएनटी विभाग – डॉ. प्रीति पांडेय
- स्किन विभाग – डॉ. निकिता गुप्ता
- गायनोकोलॉजी विभाग – डॉ. गीताली घोष
- डेंटल विभाग – डॉ. विमलेश कुमार
चारों डॉक्टरों के बिना किसी पूर्व सूचना के अनुपस्थित पाए जाने पर सिविल सर्जन को शो-कॉज नोटिस जारी करने के निर्देश दिए गए। इतना ही नहीं, अब सभी डॉक्टरों का रोस्टर उनके कमरे के अंदर और बाहर चिपकाने का आदेश भी दिया गया, ताकि मरीजों को सही जानकारी मिल सके।
मरीजों से भी की बातचीत, सुविधाओं की हकीकत आई सामने!
निरीक्षण के दौरान शताब्दी मजूमदार ने मरीजों से भी बातचीत की और अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं का जायजा लिया। इस दौरान मरीजों ने कई शिकायतें भी दर्ज कराईं, जिनमें शामिल थीं:
साफ-सफाई की कमी
पेयजल की अनियमितता
समय पर डॉक्टरों की विजिट न होना
बेडशीट नियमित रूप से न बदली जाना
भोजन की गुणवत्ता पर सवाल
क्या सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में रह गई हैं?
सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। फिर भी, अव्यवस्था और डॉक्टरों की लापरवाही मरीजों के लिए मुसीबत बनी हुई है।
क्या सरकारी डॉक्टरों को जनता की परवाह नहीं है? क्या अस्पताल प्रशासन केवल अफसरों के दौरे के समय ही सतर्क होता है?
स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी जारी रहेगी!
निरीक्षण के बाद अनुमंडल पदाधिकारी ने साफ कर दिया कि यह आखिरी औचक निरीक्षण नहीं था। उन्होंने कहा,
"सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सेवाओं में सुधार लाने के लिए समय-समय पर ऐसे निरीक्षण किए जाएंगे, ताकि मरीजों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें और अस्पताल प्रशासन अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाए।"
जनता को कब मिलेगा न्याय?
सवाल यह उठता है कि यदि किसी दिन कोई अफसर औचक निरीक्षण न करे, तो मरीजों की हालत क्या होगी?
क्या यह लापरवाही डॉक्टरों की जिम्मेदारी नहीं बनती?
सरकारें बदलती हैं, नियम-कायदे लागू होते हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों की हालत आज भी जस की तस बनी हुई है।
आप इस मामले पर क्या सोचते हैं? क्या डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए?
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