India Hockey: भारतीय हॉकी ने छह गोल्ड जीते फिर भी क्यों झेलना पड़ा संघर्ष का दौर, ध्यानचंद की विरासत को जीवंत करने का पुनर्जागरण
हॉकी जिसने भारत को 6 ओलंपिक स्वर्ण दिलाए, आज क्यों संघर्ष कर रही है? ध्यानचंद की "जादुई स्टिक" से लेकर आधुनिक एस्ट्रोटर्फ की चुनौतियों तक, भारतीय हॉकी का गौरव, संघर्ष और पुनर्जागरण की कहानी क्या है? लेस्ली क्लॉडियस और बलबीर सिंह सीनियर जैसे दिग्गजों ने कैसे रचा इतिहास? हॉकी इंडिया क्यों कह रहा है कि यह 'भविष्य के सपनों में सीधा निवेश' है? जानें भारत के राष्ट्रीय खेल दिवस से जुड़ी इस विरासत का पूरा सच।
नई दिल्ली, 7 नवंबर 2025 – क्रिकेट की चकाचौंध के पीछे दबी हुई एक ऐसी कहानी, जो भारत के खेल गौरव का सबसे मजबूत स्तंभ है। हम बात कर रहे हैं हॉकी की। हॉकी सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा से जुड़ा वह पहला पहचान चिन्ह था, जिसने ब्रिटिश शासन के दौरान ही देश को विश्व मानचित्र पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया। मेजर ध्यानचंद की 'जादुई स्टिक' से शुरू हुई यह गाथा आज एक नए पुनर्जागरण के दौर से गुजर रही है, जहां विरासत को सम्मान और भविष्य को पोषण दिया जा रहा है। यह इतिहास में झाँकने और यह समझने का समय है कि भारत हॉकी में दशकों तक विश्व शक्ति कैसे बना रहा, और वह संघर्ष क्या था जिसने इस गौरव को पीछे धकेल दिया।
स्वर्ण युग: जब हॉकी थी राष्ट्र गौरव का प्रतीक
भारतीय हॉकी का इतिहास असाधारण उपलब्धियों से भरा पड़ा है। बीसवीं सदी के आरंभ में, भारतीय हॉकी ने अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी थी।
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लगातार छह स्वर्ण: 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में ध्यानचंद के नेतृत्व में भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद 1932, 1936, 1948, 1952 और 1956 में भी लगातार स्वर्ण पदक जीते, जिससे हॉकी विश्व पर दशकों तक भारत का राज कायम रहा।
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महान दिग्गज: इस स्वर्णिम पीढ़ी में मेजर ध्यानचंद (जिन्होंने 400 से ज़्यादा गोल किए), लेस्ली क्लॉडियस ('द आयरन मैन' - 3 स्वर्ण), उधम सिंह ('द रॉक') और बलबीर सिंह सीनियर ('द गोल्डन बॉय' - 1952 फाइनल में 5 गोल) जैसे दिग्गज शामिल थे।
एस्ट्रोटर्फ की चुनौती: गौरव के बाद संघर्ष का दौर
1950 के दशक के बाद विश्व हॉकी में बड़ा तकनीकी बदलाव आया, जिसने भारतीय हॉकी को गहरा आघात पहुँचाया।
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तकनीकी बाधा: जब विश्व हॉकी में एस्ट्रोटर्फ (कृत्रिम घास) का प्रयोग शुरू हुआ, तब कौशल, ड्रिब्लिंग और तेज़ पासिंग पर आधारित पारंपरिक भारतीय शैली कृत्रिम मैदानों पर पिछड़ने लगी।
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आशा की किरण: इस संघर्ष के बीच, 1975 में कुआलालंपुर विश्व कप में कप्तान अजित पाल सिंह की टीम ने स्वर्ण पदक जीता, जो लंबे समय तक आखिरी बड़ी उपलब्धि रही। धनराज पिल्लै ('द कमबैक किंग') जैसे खिलाड़ियों ने संघर्ष के इस दौर में भी भारतीय हॉकी को जीवित रखा।
पुनर्जागरण: विरासत का सम्मान और भविष्य में निवेश
इक्कीसवीं सदी में भारतीय हॉकी ने एक बार फिर अपनी लय पकड़ी है, जिसे 'पुनर्जागरण' का दौर कहा जा रहा है।
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कांस्य पदक की वापसी: 2021 टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारत ने अपने गौरव की वापसी का संकेत दिया। पीआर श्रीजेश ('द वॉल') जैसे आधुनिक नायकों ने इस पुनर्जागरण का नेतृत्व किया।
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हॉकी इंडिया की पहल: हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने भारतीय हॉकी की स्वर्णिम विरासत का सम्मान करने और इसके भविष्य में निवेश करने के दोहरे उद्देश्य पर प्रकाश डाला है।
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रणनीतिक निवेश: 7 नवंबर का यह उत्सव न केवल खेल के समृद्ध अतीत का स्मरण कराएगा, बल्कि वित्तीय सहायता के माध्यम से खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और जमीनी स्तर के अधिकारियों को सीधी मदद करेगा। टिर्की ने कहा, "यह वित्तीय सहायता अगली पीढ़ी के सपनों में एक सीधा निवेश है।"
हॉकी सिर्फ एक खेल नहीं है, बल्कि यह भारत की अस्मिता और एकता का प्रतीक है, जिसका जज़्बा कभी नहीं मरता।
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