एनसीएलटी कोलकाता में इंकैब (केबुल कंपनी) मामले की सुनवाई हुई, जिसमें विभिन्न दावेदारों के दावों पर तीखी बहस हुई।
इंकैब केबुल कंपनी के मामले में एनसीएलटी कोलकाता में हुई सुनवाई में विभिन्न दावेदारों के दावों पर तीखी बहस हुई। अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने वित्तीय लेनदारों के दावों पर सवाल उठाए। अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।
इंकैब केस: एनसीएलटी में जोरदार बहस, कई दावेदारों के पसीने छूटे
इंकैब केस में बहस का दौर जारी
जमशेदपुर के गोलमुरी स्थित इंकैब (केबुल कंपनी) मामले में एनसीएलटी कोलकाता में सदस्यों अरविंद देवनाथन और बिदीसा बनर्जी के बेंच में सुनवाई हुई। इस सुनवाई में कई दावेदारों के पसीने छूट गए। अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बहस की शुरुआत करते हुए बताया कि एनसीएलटी ने तथाकथित वित्तीय लेनदारों, तथाकथित रिजोल्यूशन प्रोफेशनल, तथाकथित मैनेजमेंट और अन्य दावेदारों के दावों की जांच नहीं की है।
वित्तीय लेनदारों के दावे संदिग्ध
श्रीवास्तव ने एनसीएलटी को बताया कि इंकैब कंपनी को कमला मिल्स लिमिटेड, फस्क्वा इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, पेगाशस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी और ट्रॉपिकल वेंचर्स ने कोई ऋण नहीं दिया था। इन सभी का दावा है कि इंकैब कंपनी के वास्तविक लेनदारों आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और सिटी बैंक ने उन्हें अपनी गैर निष्पादित अस्तियों (एनपीए) को बेचा है। लेकिन एनसीएलटी को यह जानना चाहिए कि इंकैब कंपनी 1993 से 1996 तक बंद हो गई थी, जिससे 1992 के अंत तक सभी ऋण एनपीए में तब्दील हो गए थे।
पुरानी ऋण की वैधता पर सवाल
श्रीवास्तव ने कहा कि 2018 में दाखिल की गई पींटिशन के समय इंकैब कंपनी का कोई वित्तीय लेनदार नहीं बचा था। ट्रॉपिकल वेंचर्स की कहानी और भी संदिग्ध है। उन्होंने कहा कि इंकैब कंपनी का वास्तविक लेनदार केनरा बैंक थी और यह जांचना पड़ेगा कि केनरा बैंक ने ऋण कब दिया और सिटी बैंक ने यह ऋण कब लौटाया।
लेनदारों की कमिटी की वैधता पर प्रश्न
श्रीवास्तव ने बताया कि एनसीएलएटी ने अपने 4 जून 2021 के आदेश के द्वारा लेनदारों की कमिटी को अमान्य माना था। नए अंतरिम रिजोल्यूशन प्रोफेशनल पंकज टिबरेवाल ने लेनदारों की कोई कमिटी नहीं बनाई और ना ही मजदूरों को 2016 की दिवालियापन कानून की धारा 24 (3)(सी) के तहत कोई सूचना दी।
वेदांता का जालसाजी का आरोप
वेदांता पर जालसाजी का आरोप लगाते हुए श्रीवास्तव ने कहा कि वेदांता ने इंकैब कंपनी लेने के लिए कोई रिजोल्यूशन प्लान नहीं दिया है। अगर कोई प्लान होता तो अंतरिम रिजोल्यूशन प्रोफेशनल को उसकी कापी मजदूरों को देनी थी, जो उन्होंने नहीं दी।
यूनिवर्सल लीडर की भूमिका
श्रीवास्तव ने बताया कि यूनिवर्सल लीडर ने बीआईएफआर में इंकैब के पुनर्उद्धार का पिटीशन दायर किया था, लेकिन बाद में इसे छोड़ दिया। कंपनी के निदेशकों की बैठक नहीं की गई और ना ही कोई वार्षिक सभा बुलाई गई। 1956 के कंपनी कानून के अनुसार अगर कोई निदेशक तीन लगातार बैठकों में उपस्थित नहीं होता तो वह निदेशक का पद खो देता।
समापन
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंकैब की कुल वित्तीय देनदारी 21.63 करोड़ रुपये तय की थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी अनुमोदित किया था। समपयाभाव के कारण बहस अधूरी रही और अगली सुनवाई की तारीख 24 जुलाई को निर्धारित की गई है।
संबंधित अधिवक्ता
इस बहस में कर्मचारियों की तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, आकाश शर्मा और मंजरी सिन्हा ने हिस्सा लिया।
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