हजल - 3 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
घुमा रही है वो पागल बना बना के मुझे, धतूरा प्यार का अपना खिला खिला के मुझे। ........
हजल
घुमा रही है वो पागल बना बना के मुझे,
धतूरा प्यार का अपना खिला खिला के मुझे।
तेरी गलियों से गुजरा तो ये हुआ अक्सर,
तेरे बाप ने मारा कूदा कूदा के मुझे।
खड़े तो कर रहे हो पोली जमीन पे मुझको,
कहीं गिरा न दे यारों ये भस भसा के मुझे।
बयान झूठे हैं सारे जज से में ये कह दूंगा,
लिखा लो चाहे जो डंडा दिखा दिखा के मुझे।
कुतूब मीनार पे चढ़ के तुझे पुकारूंगा,
जमाना देखेगा अब सर उठा उठा के मुझे।
बचा लो कोई तो, नौशाद, से अभी वरना,
ये मार डालेगा शेरो शायरी सुना सुना के मुझे।
गज़लकार, हजलकर,
नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
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