ग़ज़ल  - 7 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

न जाने वो प्यार के नगमेंं सुनाने क्यों नहीं आते,   हमारे शहर में आखिर परिंदें क्यों नहीं आते। ............

Aug 17, 2024 - 11:23
Aug 17, 2024 - 11:20
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ग़ज़ल  - 7 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
ग़ज़ल  - 7 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

ग़ज़ल  

न जाने वो प्यार के नगमेंं सुनाने क्यों नहीं आते,  
हमारे शहर में आखिर परिंदें क्यों नहीं आते।   

किनारे पर खड़े होकर तमाशा देखने वालों, 
भंवर में फंस गया कोई, बचाने क्यों नहीं आते।  

बड़े ही तंगदस्ती से मैं अपना घर चलाता हूं, 
जो रिश्तेदार हैं वो इमदाद कराने क्यों नहीं आते।  

जो अच्छे लोग शहरों में बसे देहात से जाकर, 
वो अब कोई त्योहार अपने घर मनाने क्यों नहीं आते।   

वफा को जिंदगी मिलती थी, उससे मैं बड़ा खुश था, 
मगर अब वो सताने, आजमाने क्यों नहीं आते।   

बहुत हंसते थे, जब मैं वक्त के गर्दिश का मारा था, 
वो मेरे हाल पर अब मुस्कुराने क्यों नहीं आते।   

हंसीं भी, नेक सीरत, खानादारी, डिग्रियां फिर भी, 
गरीबी में जवां बेटी के रिश्ते क्यों नहीं आते।   

न जाने किसलिए रूठी हुई किस्मत भी बैठी है, 
मियां, नौशाद, जालिम को मनाने क्यों नहीं आते।   

गज़लकार 
नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।