Gumla & Simdega: चर्च का हैरान कर देने वाला फरमान, बीजेपी समर्थकों को नहीं मिलेगी अंतिम संस्कार की जगह!
गुमला और सिमडेगा में चर्च ने बीजेपी समर्थकों को चर्च में इंट्री न देने और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए जगह न देने का फरमान जारी किया। चुनाव आयोग ने मामले पर रिपोर्ट तलब की।
19 नवम्बर 2024: झारखंड के गुमला और सिमडेगा जिले में चर्च द्वारा जारी किए गए एक विवादित फरमान ने पूरे इलाके में हलचल मचा दी है। चर्च ने स्थानीय ग्रामीणों को यह चेतावनी दी है कि यदि वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को वोट देते हैं तो उन्हें चर्च में प्रवेश नहीं दिया जाएगा, और अगर वे इंडिया गठबंधन के दलों का समर्थन नहीं करते हैं, तो उनके परिवार के सदस्य को कब्रिस्तान में भी अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं दी जाएगी। इस फरमान के बाद, चुनाव आयोग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए दोनों जिलों के जिलाधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है।
क्या है पूरा मामला?
सूत्रों के मुताबिक, गुमला और सिमडेगा के चर्च द्वारा जारी किए गए इस फरमान में यह कहा गया है कि बीजेपी को हराने के लिए मिशनरी संगठन पूरी ताकत लगा रहे हैं। जो लोग बीजेपी का समर्थन करेंगे, उनके लिए चर्च के दरवाजे बंद होंगे और वे अपने परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार भी नहीं करवा सकेंगे। इस निर्देश के बाद इलाके में हड़कंप मच गया है और ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया है।
चर्च की भूमिका पर सवाल
इस विवाद को लेकर चर्च पर यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि क्रिश्चन मिशनरियां बीजेपी को हराने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। गुमला और सिमडेगा में चर्च द्वारा यह आह्वान किया जा रहा है कि बीजेपी को हराना होगा। जो लोग बीजेपी का समर्थन करेंगे, उन्हें चर्च में प्रवेश से लेकर कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार की जगह तक नहीं दी जाएगी। इससे यह सवाल उठता है कि क्या धार्मिक संस्थाएं चुनावी राजनीति में इस तरह से हस्तक्षेप कर सकती हैं? क्या इससे धार्मिक स्वतंत्रता और चुनावी निष्पक्षता पर असर नहीं पड़ेगा?
चुनाव आयोग की कार्रवाई
यह विवाद बढ़ने के बाद कुछ ग्रामीणों ने इस मामले की शिकायत चुनाव आयोग से की। चुनाव आयोग ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए गुमला और सिमडेगा जिलों के जिलाधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह मामला गंभीर है, क्योंकि चुनावी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
आस्था और राजनीति का टकराव
इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आस्था और राजनीति का टकराव किस तरह से सुलझाया जाएगा। कुछ लोग इसे धार्मिक एकता के नाम पर किया गया कदम मान रहे हैं, तो कुछ इसे वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा मान रहे हैं। गुमला और सिमडेगा में चर्च द्वारा इस तरह के फरमान के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या धर्म के नाम पर चुनावी रणनीतियां बनाई जा सकती हैं?
कहीं यह चुनावी राजनीति का हिस्सा तो नहीं?
बीजेपी समर्थकों का कहना है कि यह फरमान साफ तौर पर चुनावी राजनीति का हिस्सा है, और यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह केवल राजनीतिक दबाव बनाने के लिए किया गया है, ताकि बीजेपी को हराया जा सके। यह घटना इस बात को भी उजागर करती है कि धार्मिक संस्थाएं किस हद तक चुनावी राजनीति में हस्तक्षेप कर सकती हैं।
अब आगे क्या होगा?
चुनाव आयोग ने इस मामले पर त्वरित कार्रवाई करने की बात कही है। रिपोर्ट मिलने के बाद आयोग यह तय करेगा कि क्या इस तरह के धार्मिक आदेश चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप के तौर पर आए हैं और इस पर क्या कदम उठाए जाएंगे। गुमला और सिमडेगा के निवासियों को अब यह जानने की उम्मीद है कि इस विवाद का अंत कैसे होगा।
गुमला और सिमडेगा में चर्च द्वारा जारी किए गए इस फरमान ने एक नई बहस को जन्म दिया है। यह मामला न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों और चुनावी निष्पक्षता के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया है। चुनाव आयोग की कार्रवाई पर अब सबकी नजरें हैं, क्योंकि यह तय करेगा कि धार्मिक संस्थाओं का चुनावी राजनीति में इस तरह का हस्तक्षेप कितना सही है।
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