गजल - 27 - रियाज खान गौहर भिलाई

देखिये यूँ सताना मुनासिब नहीं  दूर से मुस्कुराना मुनासिब नहीं .....

Jan 14, 2025 - 13:15
Jan 14, 2025 - 13:41
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गजल - 27 - रियाज खान गौहर भिलाई
गजल - 27 - रियाज खान गौहर भिलाई

ग़ज़ल 

देखिये यूँ सताना मुनासिब नहीं 
दूर से मुस्कुराना मुनासिब नहीं 

ऐक दिल ऐक जाँ अगर हम और तुम 
बात दिल की छुपाना मुनासिब नहीं 

आह दिल की लगेगी यकीनन तुम्हें 
मुफ़्लिसों को सताना मुनासिब नहीं 

बात करने से पहले ये सोचो ज़रा 
बात इतनी बढ़ाना मुनासिब नहीं 

होगा तुमको यकीं ऐक न ऐक दिन 
मेरी उल्फ़त भुलाना मुनासिब नहीं 

आज माहौल पर मशवरा है मिरा 
आदमी को लड़ाना मुनासिब नहीं 

हुस्न की आँख से पीजिये बे खतर 
मैकदे में तो जाना मुनासिब नहीं 

हर नज़र का भरोसा नहीं आजकल 
रुख से पर्दा हटाना मुनासिब नहीं 

सुन लो गौहर रहे साथ मिलकर सभी 
दूरियाँ यूँ बढ़ाना मुनासिब नहीं 

ग़ज़लकार 
रियाज खान गौहर भिलाई

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।