ग़ज़ल - 15 - नौशाद अहमद सिद्दीकी
तीर खा खा के भी सुनो मुस्कुराने वाले, हम हैं दुश्मन को भी अपना बनाने वाले....
ग़ज़ल
तीर खा खा के भी सुनो मुस्कुराने वाले,
हम हैं दुश्मन को भी अपना बनाने वाले।
हो के मदहोश नशें में भी ऐ जमाने वाले,
आए मयखाने की आदाब सिखाने वाले।
लड़खड़ाएंगें क़दम और न ज़बां फिसलेंगी,
क्यों कि हम लोग हैं ग़ालिब के घराने वाले।
की बहुत ज़िद कि न पियेंगे मगर मान गए,
शेख़ जी आज हैं मयखाने में आने वाले।
रूबरू जब नहीं कह पाते हैं नौशाद,
तब इशारों में बताते हैं बताने वाले।
गज़लकार
नौशाद अहमद सिद्दीकी,
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