ग़ज़ल - 14 - रियाज खान गौहर, भिलाई
चल रहा है अकड़ कर बड़े आन से उसका घर चल रहा है मगर दान से ......
गजल
चल रहा है अकड़ कर बड़े आन से
उसका घर चल रहा है मगर दान से
गम नहीं है मुझे वो गया जान से
मर मिटा है वतन के लिये शान से
कर रहे थे बुराई मिरी आप जब
सुन लिया मैनें दीवार के कान से
छीन सकता नहीं कोई तुमसे यहां
जो मिला है तुम्हें उसके परवान से
कितना खामोश है बोलता ही नहीं
दब गया आज शायद वो ऐहसान से
याद रखना सदा अपनें सम्मान को
ये मिला है तुम्हें मान सम्मान से
कुर्सी छिनते ही पहचान भी छिन गई
मुझसे मिलते हैं अब लोग अनजान से
ये खुदा दाद नेमत है गौहर मियां
कोयला चांदी सोना मिले खान से
गजलकार
रियाज खान गौहर भिलाई
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