Baharagora Sand Scam: स्वर्णरेखा नदी में अवैध बालू खनन का बड़ा खेल, सफेदपोशों की शह में रातों-रात मालामाल हो रहे माफिया!
बहरागोड़ा में अवैध बालू खनन का खेल बदस्तूर जारी! प्रशासन ने जब्त किया 26 हजार सीएफटी बालू, लेकिन क्या इससे माफिया रुकेगा? जानिए पूरी खबर।

बहरागोड़ा: अवैध बालू खनन को रोकने के लिए कितनी ही बार प्रशासन ने सख्त कार्रवाई की हो, लेकिन बालू माफियाओं के हौसले बुलंद हैं। रात के अंधेरे में स्वर्णरेखा नदी के घाटों से ट्रकों और ट्रैक्टरों में धड़ल्ले से बालू निकाला जा रहा है। सवाल ये है कि आखिर किनके संरक्षण में यह अवैध कारोबार चल रहा है?
बालू माफिया का नेटवर्क और प्रशासन की नाकामी
बहरागोड़ा विस क्षेत्र में बालू खनन का खेल कोई नया नहीं है। सालों से यह कारोबार जारी है और स्थानीय लोगों का मानना है कि बिना किसी प्रभावशाली व्यक्ति के समर्थन के यह मुमकिन ही नहीं। सरकार को इससे हर दिन लाखों का नुकसान हो रहा है, लेकिन अवैध कारोबारियों पर लगाम लगाने में प्रशासन बेबस नजर आता है।
इतिहास में भी बालू माफिया का दबदबा
भारत में बालू खनन का इतिहास दशकों पुराना है। विशेषकर झारखंड, बिहार, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह एक गंभीर समस्या रही है। कई बार सरकारों ने इस पर नियंत्रण की कोशिश की, लेकिन काले धन और राजनीतिक संरक्षण के चलते यह रुक नहीं सका। स्वर्णरेखा नदी के घाटों पर भी यही कहानी दोहराई जा रही है, जहां रात के अंधेरे में बालू खनन का गोरखधंधा चलता रहता है।
प्रशासन ने कसा शिकंजा, जब्त हुआ हजारों सीएफटी बालू
मंगलवार को एसडीओ सुनील चन्द्रा और खनन विभाग की टीम ने घाटशिला के विभिन्न घाटों पर छापा मारा। दुधियाशोल गांव में 26 हजार सीएफटी बालू जब्त किया गया। इस दौरान तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, जिनमें प्रखंड के साकरा गांव निवासी उप प्रमुख मनोरंजन होता उर्फ मुन्ना होता, पाटपुर के राहुल सीट और बहरागोड़ा के देबु ओझा शामिल हैं।
क्या यह कार्रवाई काफी है?
प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद इलाके में हलचल जरूर बढ़ गई, लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब बालू माफियाओं पर शिकंजा कसा गया हो। इससे पहले भी कई बार छापेमारी हुई, लेकिन नतीजा जस का तस है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक इस कारोबार के असली मास्टरमाइंड पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह सिलसिला जारी रहेगा।
अवैध खनन से पर्यावरण और राजस्व को नुकसान
अवैध खनन से सरकार को राजस्व का नुकसान तो होता ही है, साथ ही पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है। नदियों के प्रवाह में बदलाव, जल स्तर में गिरावट और बंजर होती जमीन – यह सब बालू खनन के दुष्प्रभाव हैं। फिर भी, इस पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।
आगे क्या होगा?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस कार्रवाई को कितनी गंभीरता से आगे बढ़ाता है। क्या यह केवल एक दिखावटी कार्रवाई थी, या फिर प्रशासन अब वाकई अवैध बालू खनन पर लगाम कसने के मूड में है? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, लेकिन अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए तो यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।
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