आदमी - नौशाद अहमद सिद्दीकी | काव्य स्पर्धा 2024
सुधरा है न सुधरेगा कभी यार आदमी, क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी। ..
आदमी
सुधरा है न सुधरेगा कभी यार आदमी,
क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी।
कह दे कोई ऐलान है अमरीका चीन का,
के बंट रहा है चांद पे पट्टा जमीन का।
हो जाए अभी जाने को तैयार आदमी,
क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी।
गंदूम का किया इसने जन्नत में घोटाला,
अल्लाह ने फौरन इसे दुनियां में हकाला।
आकर जहां में हो गया मक्कार आदमी,
क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी।
शैतान खुश है तेरी ठिठाई को देखकर,
चुचवाए लार सबकी कमाई को देखकर।
सुधरा है न सुधरेगा कभी यार आदमी। क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी।
ठग है, कहीं डाकू, कहीं बटमार आदमी,
क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी,,
ईमान का कभी, कभी सौदा अपने जमीर का,
कपड़ा हर इक उतार अपने शरीर का,
नंगा खड़ा है क्यों सरेबाजार आदमी।
क्या करिए अपनी आदतों से है लाचार आदमी,
सुधरा है न सुधरेगा कभी यार आदमी।
नौशाद, जरा सी भी है गैरत तुम्हें अगर,
रखो न पांव तुम कभी सोहरत की जमीं पर।
बनके रहो हमेशा ही खुद्दार आदमी,
यानी सुधर ही जायेगा लाचार आदमी,,
शायर
नौशाद अहमद सिद्दीकी
दुर्ग, छत्तीसगढ़
What's Your Reaction?