Uttarakhand Fire Prevention: जंगलों में आग से बचाव के लिए वन विभाग की ऐतिहासिक तैयारी, क्या होगा असर?

उत्तराखंड में वन विभाग ने 1996 के बाद पहली बार फायर लाइन में उगे पांच लाख पेड़ों को काटने का निर्णय लिया है। जानें इस महत्वपूर्ण कदम के बारे में।

Nov 22, 2024 - 12:13
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Uttarakhand Fire Prevention: जंगलों में आग से बचाव के लिए वन विभाग की ऐतिहासिक तैयारी, क्या होगा असर?
Uttarakhand Fire Prevention: जंगलों में आग से बचाव के लिए वन विभाग की ऐतिहासिक तैयारी, क्या होगा असर?

उत्तराखंड में वनाग्नि से बचाव के लिए वन विभाग ने इस बार ऐतिहासिक कदम उठाने की योजना बनाई है। 1996 के बाद पहली बार जंगलों के बीच बनाई जाने वाली फायर लाइन में उगे पांच लाख पेड़ों को काटने का फैसला लिया गया है। इस साल गर्मी के मौसम में जंगलों में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए वन विभाग ने पहले ही तैयारी शुरू कर दी है।

क्या है फायर लाइन और क्यों है ये इतनी महत्वपूर्ण?

उत्तराखंड के जंगलों में फायर लाइन की व्यवस्था ब्रिटिश काल से चली आ रही है। फायर लाइन दरअसल एक खाली क्षेत्र होता है, जो जंगलों में आग के फैलाव को रोकने के लिए बनाया जाता है। यह तकनीक जंगलों में आग को नियंत्रित करने का एक वैज्ञानिक तरीका मानी जाती है। फायर लाइन के तहत जंगलों के बीच विशेष रूप से आग के फैलाव को रोकने के लिए विभिन्न क्षेत्रीय नियम बनाए गए हैं।

ब्रिटिश शासन के दौरान यह तय किया गया था कि दो वन प्रभागों के बीच 100 फीट की फायर लाइन होनी चाहिए, जबकि वन प्रभागों के भीतर विभिन्न रेंज के बीच 50 फीट की फायर लाइन होना चाहिए। यह नियम जंगलों में आग से बचाव के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

1996 के बाद क्यों नहीं काटे गए पेड़?

1996 के बाद सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के कारण जंगलों में उगे पेड़ों को काटने पर रोक लगी थी। इस आदेश के अंतर्गत 1000 मीटर से ऊंचे पेड़ों को काटने पर रोक लगाई गई थी। इसके कारण फायर लाइन के भीतर उगे पेड़ों को हटाया नहीं जा सका। यह पेड़ अब विशालकाय हो चुके हैं, और फायर लाइन पूरी तरह से जंगल में तब्दील हो गई है। इस कारण जंगल में आग के फैलने का खतरा बढ़ गया था, और फायर लाइन का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया था।

सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश और फायर लाइन सफाई

हालांकि, 18 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को बदलते हुए फायर लाइन की सफाई के लिए अनुमति दे दी। इसके बाद प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) ने 28 अक्टूबर को सभी डीएफओ को फायर लाइन को साफ करने के निर्देश दिए। इसके तहत कुमाऊं में 1.5 लाख और गढ़वाल मंडल में 3.5 लाख पेड़ों को काटने का निर्णय लिया गया।

इस आदेश के बाद वन अधिकारियों ने फायर लाइन में उगे पेड़ों का छपान शुरू कर दिया है। यह कदम जंगलों में आग के फैलाव को रोकने के लिए एक अहम प्रयास माना जा रहा है।

जंगल की आग पर काबू पाने के लिए विशेषज्ञों की राय

पूर्व पीसीसीएफ आई.डी. पांडे का कहना है कि फायर लाइन सिस्टम को साफ रखना बेहद जरूरी है। यदि जंगलों की आग को नियंत्रित करना है, तो फायर लाइन को पूरी तरह से साफ रखा जाना चाहिए। यह एक वैज्ञानिक तरीका है, जिसके जरिए आग के फैलाव को रोका जा सकता है। डीएफओ हिमांशु बागरी ने भी इस योजना की महत्वता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा, "तराई पूर्वी वन प्रभाग में फायर लाइन की सफाई पूरी हो चुकी है, ताकि फायर सीजन के दौरान आग के फैलाव को रोका जा सके।"

क्या है फायर सीजन और उसकी तैयारी?

उत्तराखंड में वन विभाग 15 फरवरी से 15 जून तक के समय को फायर सीजन मानता है। इस दौरान जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं, और इनसे बचाव के लिए पहले से तैयारी करना आवश्यक होता है। फायर सीजन से पहले फायर लाइन की सफाई, जंगल में किसी भी प्रकार की ज्वलनशील सामग्री को हटाना, और आग की रोकथाम के अन्य उपाय किए जाते हैं।

इस साल वन विभाग ने पहले से तैयारियां शुरू कर दी हैं, और इसके तहत पांच लाख पेड़ों को काटने का कार्य किया जा रहा है। यह कदम न केवल जंगलों की आग को फैलने से रोकने के लिए जरूरी है, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

उत्तराखंड की यह तैयारी क्यों है अहम?

उत्तराखंड राज्य में जंगलों की आग हर साल एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। कई बार इन आग की घटनाओं में वन्यजीवों की मौत हो जाती है और पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचता है। फायर लाइन की सफाई और पेड़ों को काटने का निर्णय इस साल इस समस्या से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह कदम न केवल आग को फैलने से रोकने में मदद करेगा, बल्कि इससे जंगलों की समृद्धि और सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

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