पर्यावरण को बचाने के लिए नारों से ज्यादा सच्चे सपथ को अपनाएं - प्रेरणा बुड़ाकोटी जी
पर्यावरण को बचाने के लिए नारों से ज्यादा सच्चे सपथ को अपनाएं
पेड़ लगाओ हरियाली लाओ के नारे अक्सर शहरों में सुनने को मिलते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में इन वाक्यों को दोहराने समझने समझाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। आप किसी भी शहर में घूमने या किसी कार्य के जरिए जाएं तो यह चीज जरूर देख पाएंगे कि सोने, चांदी, हीरे, मोती और अनगिनत पैसों और ब्रांडेड जीवन शैली भरे माहौल हर गली हर मोहल्ले रास्ते में जरूर मिलेंगे परंतु कहीं पर भी कुदरत की पहचान हरियाली पेड़ पौधे नहीं मिल पाएंगे। इसके ना मिल पाने का सबसे बड़ा कारण है लोगों की सोच महंगी जीवनशैली जीने की आदत और बड़ी-बड़ी इमारतों से बना मकान का सपना देखना। खुद को धनवान दिखाने के चक्कर में लोगों ने इतनी इमारतें खड़ी कर दी है जिस कारण छत का कोई नामो-निशान नहीं मिलता। शहरों की हर गली में इतने इमारते हैं की गली को भी नाम और अंकों से बने नंबर से पहचाना जाता है। मोहल्ले के बीचो-बीच खड़े होकर चारों तरफ देखकर सुरंग की भांति दिखती गलियां लोगों को उनके फ्लैट या मकान तक पहुंचाने का कार्य करती है। हर मकान व इमारत रंग-बिरंगे वॉलपेपर या डिजाइनर टाइल्स की प्रदर्शनी से भरा हुआ है। पेड़ पौधे के नाम पर डेकोरेटिव आर्टिफिशियल गमले लगाए जाते हैं।
बातें पुरानी है परंतु सुहानी है, वह भी क्या दिन थे जब लोग मकान बनाते वक्त मेन गेट के पास एक तरफ बगिया और एक तरफ पेड़ पौधों का रखाव करते थे। जब बड़े-बड़े वृक्षों के बीच मकान एक छोटा सा घोसले की भांति दिखाई देता था। मकान में चारों तरफ से शुद्धीकरण का प्रतीक जरूर था। इंसानों से ज्यादा घर के हर कमरे मे खिड़की के जरिए पेड़ पौधों की हवाएं ऑक्सीजन के रूप में प्रवेश करती थी। पर्दों के हल्के हल्के लहराने पर एक अलग सा सुकून महसूस होता था। किसी एक के घर का पेड़ 2-3 घरों को अपने आंचल पर छुपा कर रखता था और भीषण गर्मी से बचाता था। उन दिनों गर्मी के मौसम का भी अलग आनंद था। औषधि से भरपूर फल सब्जियां घर के कियारियो में मिलना आम बात होती थी।। हर किसी का एक छोटा सा बगीचा था जिसमें ओस की बूंदों का प्रवेश हमारे लिए सकारात्मक संदेश का प्रतीक था।
रंग बिरंगी फूलों से भरा आंगन हर दिन हर वक्त होली के त्यौहार के भांति लगता। आज कहीं भी चले जाओ केवल शादी और त्योहार पर ही रंग बिरंगे फूल देखने को मिलते हैं फिर एहसास होता है कि हम इन से कितने कोसों दूर चले आए हैं।
जो चीज पहले अपने ही घर में आसानी से मिल जाती थी आज उसके लिए लोग एग्जीबिशन और ऑनलाइन शॉपिंग के मोहताज बन गए हैं क्योंकि कुछ लोगों ने अपने घर में खेती करके पेड़ पौधों की परिभाषा सिखाते हुए व्यापार का कार्य शुरू किया है। जिसमें फूलों फलों सब्जियों और उन से बनी चीजों को एक साइंटिफिकली नेम देकर बेचना शुरू किया है। दो चार अक्षरों का ज्ञान हो जाने पर हम सभी ने कुदरत को ही एक नया नाम दिया है। ब्रांडेड लोग जिनके पास कुदरत की कोई चीज नहीं उन्होंने इसे लेना शुरू किया है। पहले संतुलित आहार होता था अब ऑर्गेनिक फूड कहलाता है। नासमझ इस दुनिया के लोग केवल ब्रांडेड युग कहलाता है।
हर जगह हर नारे पर हो रहा, पेड़ लगाओ हरियाली लाओ"
क्यों नहीं कोई कहता, मिलावट ना कर, ऑर्गेनिक उगाओ, महँगे टाइल्स को छोड़,
प्लास्टिक हटाओ, जूट अपनाओ, पॉलिथीन हटाकर, सूती बैग अपनाओ,
फास्ट फूड छोड़कर, सादा भोजन खाओ, चमक-दमक हटाकर, सादगी अपनाओ।
मिट्टी के लेप से आँगन महकाओ, आरव का पानी छोड़कर, मटके को घर लाओ,
मोटर गाड़ी का धुआँ कम करके,
पैदल चलने को भी साधन बनाओ। दिखावे को छोड़, छत पर पक्षियों के लिए दाना,
पानी और घोंसला लगाओ,
घर के हर कोने में छोटे बड़े पौधे लगाओ, ऐसा करने से पर्यावरण को बचाओ।
आओ चलो मिलकर एक शपथ खाएं धरती मां की रक्षा की मोहर लगाएं नहीं मिलेगा चैन हमको इसे काट कर आओ चलो सब मिलकर पेड़ पौधे लगाकर फिर से अपनी कुदरत में हरियाली पाए।
लेखिका प्रेरणा बुड़ाकोटी
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