Tata Group Property: अब कौन संभालेगा रतन टाटा की संपत्ति? टाटा समूह में सौतेले भाई-बहनों की एंट्री!
रतन टाटा एंडोमेंट ट्रस्ट में नोएल टाटा, डियाना और शिरीन जीजीभाय की एंट्री! रतन टाटा की वसीयत और संपत्तियों के वितरण में आया बड़ा बदलाव, जानें पूरी डिटेल।

टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की संपत्तियों के वितरण को लेकर एक बड़ा अपडेट सामने आया है। रतन टाटा द्वारा बनाए गए 'रतन टाटा एंडोमेंट ट्रस्ट' में उनके सौतेले भाई और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा, उनकी सौतेली बहनें डियाना जीजीभाय और शिरीन जीजीभाय को शामिल कर लिया गया है।
इसके अलावा, टाटा समूह के दो वरिष्ठ अधिकारी जमशेद पोंचा और आरआर शास्त्री को भी ट्रस्ट में जगह दी गई है। इस फैसले के बाद टाटा समूह में हलचल तेज हो गई है, क्योंकि यह सीधे तौर पर रतन टाटा की वसीयत और उनके बाद संपत्तियों के वितरण से जुड़ा मामला है।
रतन टाटा के उत्तराधिकारी कौन होंगे?
रतन टाटा भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक हैं और उनका जीवन टाटा समूह के लिए पूरी तरह समर्पित रहा है। लेकिन, उन्होंने अब तक आधिकारिक रूप से किसी उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की थी।
- नोएल टाटा: टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन हैं और अब एंडोमेंट ट्रस्ट का भी हिस्सा बन चुके हैं।
- डियाना और शिरीन जीजीभाय: ये दोनों रतन टाटा की सौतेली बहनें हैं और उनकी वसीयत के निष्पादन की जिम्मेदारी संभालेंगी।
- जमशेद पोंचा और आरआर शास्त्री: टाटा समूह के अधिकारी हैं, जो संपत्तियों के वितरण की प्रक्रिया में शामिल रहेंगे।
कैसे होगा रतन टाटा की संपत्ति का बंटवारा?
रतन टाटा की वसीयत के मुताबिक, उनकी संपत्तियों का वितरण एक निष्पादक प्रक्रिया के तहत किया जाएगा। इस प्रक्रिया में दो अहम स्टेप शामिल हैं:
प्रोबेट अप्रूवल: यह एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा वसीयत को मान्यता दी जाती है।
वितरण प्रक्रिया: कोर्ट की मंजूरी के बाद ही संपत्ति के हकदारों को उनका हिस्सा दिया जाएगा।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस पूरी प्रक्रिया में अभी करीब छह महीने का समय लग सकता है। लेकिन ट्रस्ट में हुई नई नियुक्तियों से यह संकेत मिलता है कि प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है।
क्या कानूनी अड़चन आ सकती है?
कानूनी तौर पर नोएल टाटा, डियाना और शिरीन को ट्रस्ट में शामिल होने से कोई नहीं रोक सकता। हालांकि, रतन टाटा ने अपनी वसीयत पहले से ही तैयार कर रखी थी और दोनों बहनों को निष्पादक के तौर पर नामित किया था।
इसका मतलब यह है कि वे दोनों हाईकोर्ट की मंजूरी के बाद वसीयत का अध्ययन करेंगी और संपत्तियों का वितरण करेंगी। इस प्रक्रिया में टाटा समूह के अन्य अधिकारियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी।
टाटा समूह के इतिहास में वसीयत विवाद नया नहीं!
अगर टाटा समूह के इतिहास पर नजर डालें, तो वसीयत को लेकर पहले भी विवाद होते रहे हैं।
- 1904 में जमशेदजी टाटा के निधन के बाद भी उनकी संपत्तियों के वितरण को लेकर कई वर्षों तक कानूनी प्रक्रियाएं चलीं।
- रतन टाटा के कार्यकाल में भी चेयरमैन पद को लेकर कई विवाद हुए, जिसमें साइरस मिस्त्री की बर्खास्तगी सबसे बड़ी घटना थी।
- अब रतन टाटा की वसीयत का मामला सामने आने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मामला सुचारू रूप से निपटता है या फिर कोई नई कानूनी चुनौती खड़ी होती है।
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि रतन टाटा की वसीयत को लेकर कोई बड़ा विवाद खड़ा होने की संभावना कम है। लेकिन, अगर कोई कानूनी दावेदारी की जाती है, तो यह मामला लंबा खिंच सकता है।
बिजनेस विशेषज्ञों के अनुसार:
- "रतन टाटा का ट्रस्ट एक सोची-समझी योजना के तहत बनाया गया है, जिससे संपत्तियों का सही तरीके से वितरण सुनिश्चित हो सके।"
- "नोएल टाटा और उनकी बहनों की नियुक्ति यह दर्शाती है कि रतन टाटा अपने परिवार के सदस्यों को ट्रस्ट का हिस्सा बनाना चाहते थे।"
आगे क्या होगा?
प्रोबेट प्रक्रिया पूरी होने के बाद संपत्ति का वितरण शुरू होगा।
अगर कोई कानूनी विवाद नहीं हुआ, तो अगले छह महीनों में सब कुछ तय हो सकता है।
टाटा समूह में इस बदलाव का कोई सीधा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि ट्रस्ट टाटा संस के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रतन टाटा की संपत्तियों का बंटवारा बिना किसी विवाद के पूरा होता है या इसमें कोई नया मोड़ आता है!
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