Saranda Terror: नक्सलियों ने बिछाई थी मौत, 10 साल की मासूम का शरीर उड़ा! जंगल में सुबह 8 बजे भीषण IED ब्लास्ट – पुलिस की जगह मासूम बच्चे और हाथी क्यों बन रहे शिकार?
झारखंड के सारंडा के जंगलों में 10 साल की श्रेया हेरेंज की जान IED ब्लास्ट में क्यों गई? सुरक्षा बलों के लिए बिछाया गया यह विस्फोटक बार-बार मासूमों को क्यों निशाना बना रहा है? नक्सलियों की इस कायराना हरकत के पीछे की असल रणनीति क्या है? क्या नक्सल के गढ़ में अब पशु और ग्रामीण भी सुरक्षित नहीं हैं? जानिए इस दर्दनाक हादसे और पूरे क्षेत्र के नक्सली खतरे का विवरण!
चाईबासा, 28 अक्टूबर 2025 – झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले (चाईबासा) में स्थित नक्सलियों का गढ़ सारंडा (Saranda) जंगल एक बार फिर मासूम के खून से लाल हो गया है। मंगलवार की सुबह करीब 8:00 बजे, जराईकेला थाना क्षेत्र के दीघा इलाके में नक्सलियों द्वारा पहले से लगाया गया आईईडी (IED) ब्लास्ट हो गया, जिसकी चपेट में आकर 10 वर्षीय श्रेया हेरेंज नामक एक मासूम बच्ची की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई।
यह घटना न केवल दिल दहला देने वाली है, बल्कि यह नक्सलियों की कायराना हरकत और प्रशासन की चुनौती को एक साथ सामने लाती है। श्रेया पत्ता चुनने के लिए जंगल गई थी और उसे क्या पता था कि जंगल की जमीन के नीचे मौत छिपी है!
सुरक्षा बल नहीं, बच्ची बन गई शिकार
पश्चिमी सिंहभूम के पुलिस अधीक्षक अमित रेणु ने घटना की पुष्टि की है। यह आईईडी विस्फोटक मुख्य रूप से सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने के लिए जंगल की पगडंडियों पर लगाया गया था। नक्सली अक्सर 'लंबी दूरी की गश्त' (Long Range Patrolling) पर निकलने वाले जवानों को निशाना बनाने के लिए जंगलों और कच्चे रास्तों पर ये घातक विस्फोटक बिछाते हैं।
लेकिन, सारंडा के जंगल में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। नक्सलियों की इस खतरनाक साजिश का शिकार सुरक्षा बलों से कहीं ज्यादा मासूम और बेबस ग्रामीण बन रहे हैं।
नक्सलियों के 'जाल' में फंसे हाथी और ग्रामीण
यह घटना इस बात को दर्शाती है कि नक्सलियों ने इस पूरे क्षेत्र को IED के 'सुरक्षा घेरे' में बदल दिया है, जहां ग्रामीण अपने दैनिक जीवन के लिए जाते हैं।
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जीवन का खतरा: ग्रामीण हर दिन सियाल पत्ता तोड़ने, जंगल से लकड़ी या महुआ बीनने के लिए इन्हीं रास्तों का इस्तेमाल करते हैं।
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पशु भी नहीं सुरक्षित: नक्सलियों की इस कायराना हरकत से पशु भी अछूते नहीं हैं। हाल के दिनों में, हाथी और अन्य वन्यजीव भी आईईडी की चपेट में आकर घायल और मृत्यु का शिकार हुए हैं, जिससे पर्यावरण और वन विभाग पर भी संकट गहराया है।
सारंडा की भूमि पर लगातार हो रहे इन ब्लास्ट की वजह से अब तक दर्जनों ग्रामीण अपनी जान गंवा चुके हैं। यह संख्या सुरक्षा बलों की तुलना में कई गुना अधिक है।
सवाल व्यवस्था पर: क्या मासूमों की जान से कीमत चुकाएगा सारंडा?
पुलिस और प्रशासन के अधिकारी घटना की सूचना पाकर घटनास्थल पर पहुंचे हैं। मृतका श्रेया हेरेंज के शव को कब्जे में लेकर आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है, और पूरे इलाके में सघन तलाशी अभियान शुरू कर दिया गया है।
लेकिन, ग्रामीणों और आम जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर है। उनका स्पष्ट कहना है कि नक्सली लगातार अपने इरादों को अंजाम दे रहे हैं, लेकिन IED को डिफ्यूज़ करने और पूरे जंगल को 'क्लीन' करने का टास्क तेज़ क्यों नहीं हो रहा?
क्या यह इलाका हमेशा बच्चों और महिलाओं की जान लेकर ही नक्सलियों के हमलों की कीमत चुकाएगा?
इस दर्दनाक घटना ने झारखंड में नक्सल समस्या के मानवीय पक्ष को गहराई से उजागर किया है। जब तक सारंडा के जंगलों से यह 'मौत का जाल' नहीं हटाया जाता, तब तक यहां के मासूमों का जीवन हमेशा खतरे में रहेगा।
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