प्रधानमंत्री के आगमन से जमशेदपुर में सुरक्षा की आड़ में शिक्षा ठप: क्या बच्चों की पढ़ाई पर राजनीति भारी?

पीएम मोदी के जमशेदपुर दौरे के कारण 13 से 16 सितंबर तक 27 स्कूल बंद रहेंगे, जिससे छात्रों की शिक्षा पर असर पड़ने की चिंता बढ़ गई है। क्या सुरक्षा कारणों से स्कूली शिक्षा बाधित करना आवश्यक है, या क्या यह योजना में विफलता को दर्शाता है?

Sep 13, 2024 - 00:06
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प्रधानमंत्री के आगमन से जमशेदपुर में सुरक्षा की आड़ में शिक्षा ठप: क्या बच्चों की पढ़ाई पर राजनीति भारी?
प्रधानमंत्री के आगमन से जमशेदपुर में सुरक्षा की आड़ में शिक्षा ठप: क्या बच्चों की पढ़ाई पर राजनीति भारी?

15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जमशेदपुर आगमन होने वाला है, और इसके चलते शहर में तैयारियां चरम पर हैं। लेकिन इन तैयारियों का सबसे बड़ा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। प्रशासन ने 27 स्कूल और कॉलेजों को 13 से 16 सितंबर तक बंद रखने का आदेश जारी कर दिया है। सवाल उठता है, क्या किसी एक कार्यक्रम के लिए हज़ारों बच्चों की शिक्षा को ठप करना वाकई जरूरी था?

सुरक्षा इंतज़ाम या शिक्षा पर हमला?

प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर जमशेदपुर में बड़े पैमाने पर पुलिस बल तैनात किया गया है। उनके ठहरने के लिए शहर के कई हिस्सों में कैंप बनाए गए हैं और इसमें 27 स्कूलों और कॉलेजों का भी इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन क्या प्रशासन के पास छात्रों के भविष्य की चिंता करने का समय नहीं है? पुलिस फोर्स की तैनाती के लिए बच्चों के स्कूल बंद कराना क्या प्रशासनिक विफलता नहीं दर्शाता?

नो एंट्री: सिर्फ बड़ी गाड़ियों पर या शिक्षा पर भी?

जमशेदपुर में 15 और 16 सितंबर को सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तक नो-एंट्री लागू कर दी गई है। बड़ी गाड़ियों (बसों को छोड़कर) का परिचालन पूरी तरह से रोक दिया गया है। इस बीच, सबसे बड़ा सवाल ये है कि सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर बच्चों की पढ़ाई क्यों रुकनी चाहिए? क्या ये हमारी सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी को नहीं दिखाता कि एक कार्यक्रम के लिए पूरे शहर का सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया जाए?

प्रशासन की अनदेखी या सरकारों की असफलता?

सरकार और प्रशासन से यह सवाल उठता है कि क्या बड़े नेताओं के दौरे के लिए इतनी बड़ी संख्या में स्कूलों को बंद करना वास्तव में आवश्यक था? एक तरफ जहां शिक्षा नीति पर जोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बच्चों की पढ़ाई को ऐसे ठप कर देना क्या सरकार की नीति और वादों के विरोधाभास को नहीं दर्शाता?

छात्रों का भविष्य दांव पर: किसकी जिम्मेदारी?

सैकड़ों छात्रों की पढ़ाई का हर्जाना किसे भुगतना होगा? 1. दयानन्द पब्लिक स्कूल 2. उत्कल समाज हाई स्कूल, गोलमुरी 3. केन्द्रीय विद्यालय टाटानगर, बागबेड़ा 4. डीबीएमएस हाई स्कूल, कदमा 5. ग्रेजुएट वॉमेन कॉलेज, साकची 6. तारपोर हाई स्कूल, घातकीडीह, बिष्टुपुर 7. राजेन्द्र विद्यालय, साकची 8. करीम सिटी कॉलेज, साकची 9. केरला समाजम, गोलमुरी 10. साकची हाई स्कूल, साकची 11. डीएवी पब्लिक स्कूल, रामदास भट्ठा, बिष्टुपुर 12. बिरसा मुण्डा आडन हॉल, सिदगोड़ा 13. उत्कल समाज एशोसियशन, साकची 14. शारदामनी हाई स्कूल, साकची 15. भारत सेवा आश्रम संघ, सोनारी 16. रामकृष्ण मिशन सिस्टर निवेदिता गर्ल्स स्कूल, बर्मामाइन्स 17. गुरुनानक हाई स्कूल, मानगो चौक 18. बिरसा मुण्डा टाउन हॉल, सिदगोड़ा 19. टाटा वर्कर्स यूनियन उच्च विद्यालय ( डब्बा स्कूल), कदमा 20. सोन मंडप, सिदगोड़ा 21. राजस्थान भवन, बिष्टुपुर 22. मिलानी हाउस, बिष्टुपुर 23. आन्ध्रा भकत श्रीराम मंदिर हॉल, बिष्टुपुर 24. जुस्को स्कूल साउथ पार्क, बिष्टुपुर 25. को-ऑपरेटिव कॉलेज (मल्टीपरपस हॉल) 26. को-ऑपरेटिव (लॉ कॉलेज) 27. जुगसलाई नगर पर्षद जैसे नामी संस्थान 4 दिनों तक बंद रहेंगे। ऐसे में बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाला असर किसकी जिम्मेदारी है? क्या सरकार और प्रशासन इस नुकसान की भरपाई कर सकेंगे?

कहां हैं वैकल्पिक उपाय?

प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के लिए प्रशासन के पास और कोई विकल्प नहीं था? क्या स्कूलों के अलावा अन्य स्थानों पर पुलिस बल के लिए व्यवस्था नहीं की जा सकती थी? इन सवालों के जवाब अब तक नहीं मिल सके हैं, लेकिन जो साफ है, वह यह है कि राजनीति और सुरक्षा के नाम पर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है।

आखिर कब सुधरेगा यह सिलसिला?

हर बार जब कोई बड़ा नेता या अधिकारी किसी शहर का दौरा करता है, तो उसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। लेकिन इस बार सवाल केवल ट्रैफिक या सुरक्षा का नहीं है, बल्कि छात्रों के भविष्य का है। क्या सरकार और प्रशासन छात्रों की पढ़ाई से बड़ी कोई योजना नहीं बना सकते?

इस पूरे मामले से एक बात साफ है—हमारी सुरक्षा व्यवस्था अब भी इस काबिल नहीं हो पाई है कि वह बड़े नेताओं के दौरे पर बिना शिक्षा और जनजीवन को प्रभावित किए सुरक्षा व्यवस्था संभाल सके।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।