परिंदा पिंजरे का - सुनीता अग्रवाल पिंकी
परिंदा पिंजरे का - सुनीता अग्रवाल पिंकी , राँची (झारखंड)
परिंदा पिंजरे का
ये जीवन है
जो है एक
जंजाल की भाँति।
जिसमें हम उलझते
फँसते,ठगते
ठगाते रहते सदा।
न जाने क्या पाना होता
न जाने क्या टूटने
लूटने का डर सताता।
जो हम मान ले रे बंधु
जो हम ले जान
कुछ नहीं निरर्थक सब।
व्यर्थ है दिल लगाना
नहीं रहना सदा यहाँ
परिंदा को उड़ जाना।
सुनीता अग्रवाल पिंकी
राँची (झारखंड)
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