ग़ज़ल  - डा, नौशाद अहमद सिद्दीकी,  दुर्ग, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल  अगर हमें ये तिरी रहबरी नहीं मिलती,   कभी ख़ुशी की हमें इक घड़ी नहीं मिलती। 

Apr 21, 2025 - 15:02
Apr 21, 2025 - 15:36
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ग़ज़ल  - डा, नौशाद अहमद सिद्दीकी,  दुर्ग, छत्तीसगढ़
ग़ज़ल  - डा, नौशाद अहमद सिद्दीकी,  दुर्ग, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल 

अगर हमें ये तिरी रहबरी नहीं मिलती,  
कभी ख़ुशी की हमें इक घड़ी नहीं मिलती। 

फ़कत दुआ के भरोसे न आप बैठे रहें,
बिना दवा के कभी ज़िंदगी नहीं मिलती।  

किताबें पढ़ के किसी दौर की भी देखो तो,  
न जिसमें ख़ून बहा हो सदी नहीं मिलती।  

सदायें देता है यह बार बार दिल मेरा, 
किसी की छीन के दिल को खुशी नहीं मिलती।  

चमन को ऐसा उजाड़ा है कुछ दरिंदों ने, 
किसी भी शाख पे खिलती कली नहीं मिलती।  

मेरा कुसूर क्या है ये पता नहीं मुझको, 
कहां कहां  नहीं ढूंढा खुशी नहीं मिलती।  

करे तो क्या करे नौशाद, ग़म का मारा है, न जाने क्यों अभी तक रौशनी नहीं मिलती।  

या,, नहीं मैं जानता क्यों रौशनी नहीं मिलती। 

डा, नौशाद अहमद सिद्दीकी, 
दुर्ग, छत्तीसगढ़, 

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।