Jamshedpur Review: करोड़ों की योजनाएं अधर में लटकी, डीसी ऑफिस से हुआ बड़ा अल्टीमेटम
जमशेदपुर के समाहरणालय सभागार में डीसी ऑफिस की अहम समीक्षा बैठक में करोड़ों की योजनाओं की प्रगति पर सवाल खड़े हुए। उपायुक्त के निर्देश पर अधूरी परियोजनाओं को तय समय में पूरा करने का आदेश जारी किया गया।

शहर में चल रही कई सरकारी योजनाएं या तो अधर में लटकी हुई हैं या फिर कागज़ों में सिमट कर रह गई हैं। करोड़ों के एमपी-एमएलए फंड, डीएमएफटी, सीएसआर और पर्यटन विभाग की योजनाएं समय से पहले जमीन पर उतरतीं तो आज नजारा कुछ और होता।
लेकिन अब उपायुक्त कार्यालय की सख्ती ने सिस्टम को हिलाया है।
समीक्षा बैठक: जहां खुली योजनाओं की परतें
रविवार को जमशेदपुर के समाहरणालय सभागार में उपायुक्त अनन्य मित्तल के निर्देश पर एक विशेष समीक्षा बैठक आयोजित की गई।
इस बैठक की अध्यक्षता उप विकास आयुक्त अनिकेत सचान ने की। बैठक में जिले की अनाबद्ध निधियों, सांसद-विधायक निधि, डीएमएफटी (District Mineral Foundation Trust), सीएसआर (Corporate Social Responsibility), पर्यटन और तकनीकी विभाग के अंतर्गत स्वीकृत योजनाओं की बारीकी से समीक्षा की गई।
यह बैठक इसलिए अहम मानी जा रही है क्योंकि कई योजनाएं वर्षों से अधूरी हैं, जबकि कुछ योजनाएं शुरू ही नहीं हो सकीं।
खुली पोल: शिलान्यास और एकरारनामे में देरी
बैठक में यह तथ्य सामने आया कि कई योजनाएं सिर्फ इसलिए अधर में लटकी हैं क्योंकि उनका शिलान्यास नहीं हुआ या फिर संवेदक (contractor) के साथ एकरारनामा अब तक नहीं किया गया।
इस पर उप विकास आयुक्त ने साफ निर्देश दिए कि सात दिनों के भीतर सभी लंबित योजनाएं शुरू कराई जाएं।
संवेदकों को तय शर्तों के अनुसार काम शुरू करने के लिए बाध्य किया जाए, अन्यथा कार्रवाई की जाएगी।
जर्जर आंगनबाड़ी और अधूरी सड़कें बनीं चिंता का विषय
जिले में कई आंगनबाड़ी केंद्र जर्जर अवस्था में हैं, जिनमें बच्चों की सुरक्षा खुद एक बड़ा सवाल बन गई है।
बैठक में यह भी तय किया गया कि इन केंद्रों की मरम्मत और नए भवनों का निर्माण प्राथमिकता पर होगा।
साथ ही, सामुदायिक भवन, पुल-पुलिया और सड़कों के निर्माण में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि आगामी मानसून से पहले अधिकतम कार्य पूरे किए जा सकें।
इतिहास में झांके तो…
अगर हम पिछले वर्षों की समीक्षा करें, तो झारखंड में अक्सर यही देखने को मिला है कि फंड होते हुए भी योजनाएं अधूरी रह जाती हैं।
इसके पीछे कभी तकनीकी कारण तो कभी प्रशासनिक उदासीनता जिम्मेदार रही है।
2005 में भी इसी तरह की बैठक में ऐसे ही 42 योजनाओं को “लंबित” की श्रेणी में डाला गया था, जिनमें से आधी योजनाएं कभी पूरी नहीं हो सकीं।
इस बार सवाल यह है—क्या इतिहास खुद को दोहराएगा या वाकई बदलाव दिखेगा?
डीसी ऑफिस का निर्देश: समय, गुणवत्ता और जवाबदेही पर फोकस
उप विकास आयुक्त अनिकेत सचान ने निर्देश देते हुए कहा कि सभी योजनाएं आम जनता के जीवन से जुड़ी हैं,
चाहे वो स्वास्थ्य केंद्र हों, आंगनबाड़ी, सड़क या सामुदायिक भवन।
ऐसे में इन योजनाओं को तय समय में और तय गुणवत्ता के साथ पूरा करना न सिर्फ एक प्रशासनिक दायित्व है, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है।
उन्होंने यह भी कहा कि जो योजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं, उन्हें हैंडओवर कर उपयोग में लाया जाए।
कौन-कौन रहे शामिल?
बैठक में एडीसी भगीरथ प्रसाद, जिला योजना पदाधिकारी मृत्युंजय कुमार, तकनीकी विभागों के सभी कार्यपालक अभियंता, सहायक अभियंता और अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित रहे।
इन सभी को जिम्मेदारी दी गई कि वे अपने-अपने विभागों में चल रही योजनाओं की मॉनिटरिंग करें और साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
जमशेदपुर में अब वक्त है कागज़ी योजनाओं को हकीकत में बदलने का।
डीसी ऑफिस ने संकेत दे दिए हैं कि यदि सिस्टम नहीं सुधरा, तो सख्त कदम उठाए जाएंगे।
अब देखना ये है कि सरकारी फंड की ये करोड़ों की योजनाएं ज़मीन पर उतरती हैं या फिर फिर से फाइलों में कैद होकर रह जाती हैं।
आम जनता को अब सिर्फ इंतज़ार नहीं, जवाब चाहिए।
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