Madhepura LoveSearch: रातभर पान देकर ढूंढते हैं जीवनसाथी, जानिए आदिवासियों का ये अनोखा मेला!
मधेपुरा में हर साल लगने वाले पत्ता मेला में आदिवासी अविवाहित युवक-युवतियां रातभर घूमकर ढूंढते हैं अपना जीवनसाथी। पान खाने से होती है रज़ामंदी। जानिए इस अनोखी परंपरा का इतिहास और तरीका।

बिहार के मधेपुरा जिले में हर साल 20 और 21 अप्रैल को एक ऐसा मेला लगता है जो बाकी मेलों से बिल्कुल अलग है।
इस मेले में ना कोई झूला, ना कोई खरीदारी, यहां अविवाहित लड़के और लड़कियां रातभर घूमते हैं, लेकिन किसी सामान की तलाश में नहीं… बल्कि जीवनसाथी की खोज में।
जी हां, आपने सही सुना। ‘पत्ता मेला’, जो कि आदिवासी समाज का एक परंपरागत उत्सव है, जहां प्रेम और विवाह की नींव पान के एक पत्ते से रखी जाती है।
इतिहास की झलक: दुर्गा मुर्मू से शुरू हुई परंपरा
यह परंपरा अरार संथाली टोला में मनाई जाती है, जिसे आदिवासी समाज स्वर्गीय दुर्गा मुर्मू के नाम से जोड़ता है।
कभी इस पर्व के मुख्य भगत (पुजारी) हुआ करते थे दुर्गा मुर्मू, जिनकी मृत्यु के बाद अब उनके पोते श्यामलाल मुर्मू यह पूजा करते हैं।
पर्व के दौरान भोले शंकर (भगवान शिव) की विशेष पूजा की जाती है। आदिवासी समुदाय के अनुसार, महादेव ही इस आयोजन के संरक्षक और गवाह होते हैं।
कैसे होता है प्यार का इज़हार?
इस मेले की सबसे खास बात यह है कि अविवाहित युवक-युवतियां एक-दूसरे को चुनते हैं, लेकिन न कोई बातचीत होती है, न ही कोई ऑनलाइन चैटिंग।
बल्कि प्रेम प्रस्ताव पान के पत्ते से किया जाता है।
अगर लड़के को कोई लड़की पसंद आती है, तो वह उसे पान देता है।
यदि लड़की वह पान खा लेती है, तो इसका मतलब है कि वह भी लड़के को पसंद करती है।
इसके बाद शादी की तैयारियां पारिवारिक सहमति से शुरू हो जाती हैं।
रातभर चलता है साथी खोजने का सिलसिला
20 अप्रैल की रात से ही पूरा मेला क्षेत्र जगमग रोशनी और लोक गीतों से गूंजने लगता है।
30 फीट ऊंचा खंभा और उसके बगल में बना मचान, इस मेले का मुख्य आकर्षण होता है।
लड़के-लड़कियां पूरे मेला क्षेत्र में घूमते हैं, एक-दूसरे को निहारते हैं, और मौका देखकर पान के जरिए भावनाएं व्यक्त करते हैं।
खास पकवान और पूजा: बिना कलछुल के बनते हैं व्यंजन
मेले की अंतिम रात, यानी 21 अप्रैल को प्रसाद के रूप में पूड़ी-पकवान बनाए जाते हैं, और वो भी बिना किसी कलछुल या छांछ के।
भक्त खुले तेल और घी में सीधे हाथ से प्रसाद बनाते हैं, जिसे महादेव को चढ़ाया जाता है।
फिर सुबह भगत फूल, पान और प्रसाद लेकर ऊंचे खंभे पर चढ़ते हैं, और "हर-हर महादेव" के जयकारों के बीच वहां नाच-गान करते हुए नीचे आते हैं।
यह दृश्य देखने हजारों लोग इकठ्ठा होते हैं, मानो धरती पर कोई अलौकिक आयोजन हो रहा हो।
भक्ति, प्रेम और परंपरा का अनोखा संगम
पत्ता मेला केवल प्रेमी जोड़ियों का मिलन मंच नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक परंपरा और आध्यात्मिक विश्वास का संगम भी है।
इस मेले में पांच दिन तक उपवास रखने वाले भगत, अपने तप और साधना से लोगों को यह विश्वास दिलाते हैं कि महादेव की कृपा से सब संभव है।
आधुनिकता के दौर में भी ज़िंदा है सदियों पुरानी परंपरा
जब आज की दुनिया डेटिंग ऐप्स और इंस्टाग्राम प्रोफाइल्स के ज़रिए प्यार ढूंढ रही है, ऐसे में मधेपुरा का यह मेला बताता है कि परंपराओं की ज़मीन आज भी मजबूत है।
यह सिर्फ मेला नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, सामाजिक और धार्मिक उत्सव है, जहां एक पान का पत्ता सात फेरों की पहली सीढ़ी बन जाता है।
तो अगली बार अगर आपको प्यार की तलाश हो, तो शायद मधेपुरा का ‘पत्ता मेला’ आपके लिए एक नई शुरुआत बन जाए!
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