Jamshedpur Festival Attack : डांडिया की धुन पर बरसी हिंसा, 22 से ज्यादा हमलावरों ने रचा खूनी खेल
जमशेदपुर के नीलडीह में डांडिया कार्यक्रम के दौरान खूनी हमला, 22 से ज्यादा युवकों ने दो को घायल किया। जानें कैसे त्योहार की खुशियाँ अफरा-तफरी में बदल गईं।
त्योहार का मौसम, रोशनी और रंगों से सजे पंडाल, ढोल की थाप और झंकारते गरबा गीत… पर बुधवार देर रात टेल्को थाना क्षेत्र के नीलडीह में आयोजित डांडिया महोत्सव अचानक चीख-पुकार और अफरा-तफरी के मंजर में बदल गया। यहां डांडिया उत्सव की खुशियों पर हिंसा का साया ऐसा पड़ा कि पूरा इलाका दहशत से भर गया।
उत्सव से दहशत तक
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, डांडिया कार्यक्रम के बीच ही युवक लकी ने दो युवकों – श्रवण और अनुराग – को किसी बहाने से बाहर बुलाया। जैसे ही वे बाहर निकले, पहले से घात लगाए करीब 22-25 युवक उन पर टूट पड़े। लात-घूंसों के साथ धारदार हथियार से भी हमला किया गया। चपड़ से किए गए वार में दोनों बुरी तरह लहूलुहान हो गए।
स्थानीय लोगों ने घायल श्रवण और अनुराग को तत्काल अस्पताल पहुंचाया, जहाँ उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है।
पुलिस की शुरुआती जांच
घटना की सूचना मिलते ही टेल्को थाना पुलिस मौके पर पहुँची और जांच शुरू कर दी।
पुलिस का कहना है कि यह हमला पूरी तरह योजनाबद्ध लगता है। शुरुआती जांच में आपसी रंजिश और पुरानी दुश्मनी की आशंका जताई जा रही है। अब पुलिस सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है और आरोपियों की पहचान में जुटी है।
त्योहारों पर हिंसा का धब्बा
डांडिया और गरबा भारत के पारंपरिक त्योहारों का अभिन्न हिस्सा हैं। नवरात्र में देवी की उपासना और नृत्य-गीतों के इस उत्सव की जड़ें गुजरात की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी हैं।
लेकिन नीलडीह की इस घटना ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को दहला दिया बल्कि त्योहार की पवित्रता पर भी सवाल खड़े कर दिए।
त्योहारों में हिंसा की घटनाएँ कोई नई बात नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि सांस्कृतिक आयोजनों पर बदला लेने और शक्ति प्रदर्शन का मंच कई बार बनाया गया है। पर सवाल यह है कि क्या हमारे सामाजिक ताने-बाने में अब खुशियों के उत्सव भी सुरक्षित नहीं बचे?
स्थानीय लोगों की नाराज़गी
इलाके के निवासियों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ त्योहारों की छवि धूमिल करती हैं और लोगों में असुरक्षा की भावना भर देती हैं।
एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा –
“हम डांडिया में गए थे खुशियाँ मनाने, लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया। बच्चों और महिलाओं के बीच दहशत फैल गई। अब लोग ऐसे आयोजनों में जाने से पहले सोचेंगे।”
लोगों ने प्रशासन से सख्त कार्रवाई की माँग की है ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ दोबारा न हों।
सवालों के घेरे में सुरक्षा
यह घटना एक और बड़ा सवाल खड़ा करती है –
क्या त्योहारों और भीड़भाड़ वाले आयोजनों में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की जाती है?
डांडिया जैसे कार्यक्रम में जहाँ सैकड़ों लोग मौजूद हों, वहाँ पुलिस की गश्त और सीसीटीवी निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए। लेकिन इस मामले ने सुरक्षा इंतज़ामों की पोल खोल दी है।
नीलडीह का डांडिया कार्यक्रम अब सिर्फ यादों में नहीं रहेगा, बल्कि यह लोगों को लंबे समय तक खौफ और असुरक्षा का एहसास कराएगा।
श्रवण और अनुराग के ऊपर हुआ यह हमला त्योहार की खुशियों को खून के धब्बों से रंग गया।
अब सबकी निगाहें पुलिस पर टिकी हैं कि वह कितनी जल्दी आरोपियों को पकड़कर पीड़ितों को न्याय दिलाती है।
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