ग़ज़ल - 20 - रियाज खान गौहर, भिलाई
आग जब भी कहीं भी लगी है मियां मुफ्लिसों की ही बस्ती जली है मियां .....
ग़ज़ल
आग जब भी कहीं भी लगी है मियां
मुफ्लिसों की ही बस्ती जली है मियां
पेट खाली जो फुटपाथ पे सो रही
और कोई नहीं मुफ्लिसी है मियां
हाल ऐसा हुआ है शहर का मेरे
चार सू बेरूखी छा गई है मियां
घर भी अपना अगर बेच कर दे जहेज़
कहने वाले कहेंगे कमी है मियां
दे न पाया वो बेटी को अपनी जहेज़
आग की भेंट वो चढ़ गई है मियां
बोलता कुछ नही जुल्म सह कर भी वो
क्या पता कौन सी बेबसी है मियां
वार करता रहा दोस्त ही दोस्त पर
उसको कैसे कहें दोस्ती है मियां
कुछ तो गौहर इबादत करो तुम यहां
जिन्दगी का तो मकसद यही है मियां
- रियाज खान गौहर भिलाई
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