Dhanbad Crime: अस्पताल के शौचालय में फेंकी नवजात बच्ची, ममता हुई शर्मसार!
धनबाद के SNMMCH अस्पताल में नवजात बच्ची को शौचालय में फेंकने की सनसनीखेज घटना! आखिर कौन है इस निर्दयता का जिम्मेदार? पढ़ें पूरी खबर।

धनबाद: झारखंड के शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SNMMCH) में इंसानियत को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। एक नवजात बच्ची को जन्म देने के बाद प्लास्टिक की थैली में डालकर अस्पताल के गायनी विभाग के शौचालय में फेंक दिया गया। यह दिल दहला देने वाली घटना तब उजागर हुई जब रात में शौचालय गई एक महिला मरीज की नजर उस थैली पर पड़ी, जो हल्के-हल्के हिल रही थी। उसने तुरंत अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों को सूचना दी। जब कर्मचारी पहुंचे, तो पाया कि बच्ची जीवित थी, लेकिन चार घंटे के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई।
कैसे उजागर हुआ मामला?
यह भयावह घटना मंगलवार आधी रात करीब 1 बजे सामने आई। महिला मरीज ने शौचालय में एक प्लास्टिक की थैली देखी, जो रहस्यमय तरीके से हिल रही थी। उसने आशंका होने पर नर्सिंग स्टाफ को सूचना दी। जब अस्पताल कर्मी पहुंचे और थैली खोली, तो अंदर एक नवजात बच्ची थी, जो तड़प रही थी। आनन-फानन में उसे अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग में भर्ती कराया गया, लेकिन उसकी नाजुक हालत के कारण बुधवार सुबह पांच बजे उसकी मौत हो गई।
पुलिस जांच में क्या निकला?
घटना की जानकारी मिलते ही सरायढेला थाना प्रभारी नूतन मोदी मौके पर पहुंचीं और अस्पताल प्रशासन से रिपोर्ट मांगी। अस्पताल के दस्तावेज खंगाले गए, लेकिन गायनी विभाग में नवजात बच्ची के जन्म का कोई प्रमाण नहीं मिला। इससे यह आशंका बढ़ गई कि बच्ची का जन्म कहीं और हुआ था और उसे जानबूझकर SNMMCH के शौचालय में लाकर फेंक दिया गया।
क्या कहता है मेडिकल रिपोर्ट?
अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग के एचओडी डॉ. अविनाश कुमार के मुताबिक, नवजात का जन्म समय से पहले यानी सातवें महीने में ही हो गया था। बच्ची का वजन मात्र 760 ग्राम था, जिससे उसकी हालत बेहद नाजुक थी। डॉक्टरों का कहना है कि अगर उसे समय पर सही इलाज मिल जाता, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी।
इतिहास में ऐसे मामले क्यों बढ़ रहे हैं?
भारत में नवजात बच्चियों को त्यागने के मामले कोई नए नहीं हैं। सामाजिक रूढ़ियों, गरीबी और अज्ञानता के कारण कई परिवार बच्चियों को जन्म देने के बाद लावारिस छोड़ देते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो झारखंड समेत कई राज्यों में हर साल दर्जनों नवजात बच्चियों को कूड़े के ढेर, अस्पतालों या सार्वजनिक स्थलों पर फेंकने की घटनाएं सामने आती हैं।
अस्पताल प्रशासन का क्या कहना है?
एसएनएमएमसीएच के अधीक्षक डॉ. दिनेश कुमार गिंदौरिया ने बताया कि बच्ची के अस्पताल में जन्म होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। आशंका है कि किसी निजी अस्पताल में जन्म के बाद बच्ची को यहां लाकर फेंक दिया गया। अस्पताल प्रशासन ने पुलिस को इसकी जानकारी दे दी है और मामले की जांच जारी है।
समाज को क्या सबक लेना चाहिए?
इस हृदयविदारक घटना ने फिर से समाज के संवेदनहीन चेहरे को उजागर कर दिया है। यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्यों एक मां अपनी ही संतान को इस तरह फेंकने पर मजबूर हो जाती है? क्या यह गरीबी का नतीजा है या सामाजिक तिरस्कार का डर?
सरकार और समाज को मिलकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। जरूरत इस बात की है कि नवजात शिशुओं के लिए हेल्पलाइन नंबर, आश्रय गृह और जागरूकता अभियान चलाए जाएं, ताकि कोई भी मां अपने बच्चे को इस तरह त्यागने को मजबूर न हो।
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