Delhi Controversy: कोर्ट में फंसे कॉमेडियन समय रैना, SMA पीड़ित बच्चों पर मज़ाक उड़ाकर मचाया बवाल!
दिल्ली में कॉमेडियन समय रैना अपने विवादास्पद जोक्स के चलते सुप्रीम कोर्ट के रडार पर हैं। SMA जैसी गंभीर बीमारी और नेत्रहीनों पर की गई टिप्पणी ने संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बड़ी बहस खड़ी कर दी है।

दिल्ली के स्टैंड-अप कॉमेडी सर्कल में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जहां जाने-माने कॉमेडियन समय रैना की कुछ टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट की गंभीर नजर में आ गई हैं। इन जोक्स में उन्होंने एक दो महीने के SMA (स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी) पीड़ित बच्चे और नेत्रहीन लोगों को लेकर जो कहा, उसने संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।
SMA बीमारी और समय रैना का जोक – कहां खींची जाए हँसी की सीमा?
समय रैना ने अपने शो में एक ऐसे केस का जिक्र किया जिसमें एक दो महीने के बच्चे के इलाज के लिए 16 करोड़ रुपये की जरूरत थी। उन्होंने इसपर मजाक करते हुए दर्शकों से कहा,
“सोचिए अगर आपके खाते में अचानक 16 करोड़ आ जाएं, तो आप अपने पति को देख कर इतना तो कहेंगी, ‘हम्म... महंगाई तो बढ़ ही रही है।’”
ये मजाक वहां तक सीमित नहीं रहा। एक और सत्र में उन्होंने एक नेत्रहीन शख्स से कहा,
“भाई, आपसे एक सवाल पूछूं? आपकी किस आंख में देखूं?”
और एक अन्य को संबोधित करते हुए बोले, “तू भगवान की आंखों में देख...”
सुप्रीम कोर्ट ने जताई कड़ी नाराजगी
इन टिप्पणियों को Cure SMA Foundation of India ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मामले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा,
“हम इन आरोपों से बेहद व्यथित हैं। हम इसे रिकॉर्ड में लाते हैं और संबंधित लोगों को नोटिस भेजते हैं। समाज के लिए ऐसे मुद्दों पर कुछ ठोस सुझाव दिए जाने चाहिए।”
इतिहास भी गवाह है – जब हंसी बनी दर्द की वजह
भारत में पहले भी कई बार कॉमेडी की आड़ में संवेदनशील मुद्दों पर अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं। 2021 में भी एक प्रसिद्ध स्टैंड-अप कॉमिक ने दिव्यांग जनों पर जोक किया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर व्यापक विरोध हुआ था। यह कोई पहली बार नहीं जब स्टैंड-अप मंच पर हास्य की आड़ में संवेदनशीलता की सीमा लांघी गई हो।
मुद्दा सिर्फ एक जोक नहीं, बल्कि समाज में गहराता नजरिया
Cure SMA Foundation का कहना है कि SMA जैसी बीमारियों का इलाज बेहद महंगा है, और आम लोग इलाज के लिए पब्लिक फंडिंग या क्राउडसोर्सिंग पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में इस प्रकार के जोक्स न सिर्फ पीड़ितों का मज़ाक उड़ाते हैं, बल्कि समाज में संवेदनशीलता की कमी को उजागर करते हैं।
इसके साथ ही याचिका में यह मांग की गई है कि डिजिटल कंटेंट निर्माताओं, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और न्यूज़ क्रिएटर्स पर ऐसी टिप्पणियों को लेकर नियामक ढांचा तैयार किया जाए।
क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी एक सीमा होनी चाहिए?
यह सवाल अब सिर्फ अदालत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक व्यापक सामाजिक बहस का रूप ले चुका है। क्या "सैटायर" के नाम पर किसी की तकलीफ पर हंसी उड़ाई जा सकती है? क्या कॉमेडी की सीमा वहीं खत्म हो जाती है जहां किसी की गरिमा शुरू होती है?
समय रैना की चुप्पी और बढ़ती आलोचना
इस पूरे विवाद पर अब तक समय रैना की कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सोशल मीडिया पर विरोध की लहर लगातार तेज हो रही है। कई लोगों ने इसे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग" करार दिया है, तो कुछ इसे "कॉमेडी का कड़वा सच" बता रहे हैं।
आगे क्या? सुप्रीम कोर्ट से क्या निकल सकता है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में समय रैना को पक्षकार बनाया है। आने वाले दिनों में इस पर विस्तार से सुनवाई होगी। इसके साथ ही अदालत यह भी तय कर सकती है कि भविष्य में किसी बीमारी या दिव्यांगता पर की गई टिप्पणियों को कैसे नियंत्रित किया जाए।
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