Chatra Maoist Attack: लेंबोडीह गांव में हथियारबंद नक्सलियों का तांडव, ट्रैक्टर-पिकअप जला, गांव में दहशत
चतरा जिले के लावालौंग थाना क्षेत्र में भाकपा (माओवादी) उग्रवादियों का तांडव, ट्रैक्टर और पिकअप वाहन जलाए, दो घरों में ताला लगाकर दहशत फैलाई। ढाई साल बाद नक्सलियों की बड़ी गतिविधि से ग्रामीण सहमे।

झारखंड के चतरा जिले में एक बार फिर माओवादियों की दहशत लौट आई है। लंबे समय से शांत दिख रहे नक्सली बुधवार की देर रात अचानक सक्रिय हो उठे। लावालौंग थाना क्षेत्र के लेंबोडीह गांव में 30 से 40 हथियारबंद उग्रवादियों का दस्ता घुस आया और देखते ही देखते गांव में तांडव मचा दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, माओवादी संतन गंझू की तलाश में गांव पहुंचे थे। लेकिन संतन घर पर मौजूद नहीं थे। इससे बौखलाए नक्सलियों ने उनके घर के बाहर खड़े ट्रैक्टर और पिकअप वाहन में आग लगा दी। यही नहीं, उन्होंने संतन के घर और एक अन्य ग्रामीण के घर में ताला जड़ दिया, ताकि पूरे गांव में भय का माहौल बने।
घटना का असर
ग्रामीणों ने बताया कि जैसे ही हथियारबंद दस्ते ने गांव में प्रवेश किया, लोग अपने-अपने घरों में दुबक गए। महिलाएं और बच्चे सहमे हुए थे। माओवादी खुलेआम गांव की गलियों में हथियार लहराते घूम रहे थे।
यह घटना करीब ढाई साल बाद चतरा में किसी बड़ी नक्सली वारदात के तौर पर सामने आई है। इससे पहले पुलिस और सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई के चलते इलाके में माओवादी गतिविधियां लगभग थम सी गई थीं। लेकिन इस अचानक हुई वारदात ने एक बार फिर लोगों के बीच पुराना डर जगा दिया।
पुलिस की कार्रवाई
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस और CRPF की टीमें मौके पर रवाना हुईं। रातभर इलाके की घेराबंदी कर सर्च ऑपरेशन चलाया गया। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों की पहचान की जा रही है और जल्द ही जिम्मेदार लोगों को पकड़ लिया जाएगा।
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि नक्सलियों की इतनी बड़ी संख्या में आवाजाही होना सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। आसपास के गांवों के लोग अब अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की मांग कर रहे हैं।
नक्सलवाद का इतिहास और चतरा की भूमिका
झारखंड में नक्सलवाद कोई नई समस्या नहीं है। चतरा, पलामू, लातेहार और गढ़वा जैसे जिलों में 2000 के दशक में नक्सली हिंसा अपने चरम पर थी। चतरा जिला तो भाकपा (माओवादी) की गतिविधियों का गढ़ माना जाता था।
2004 से 2010 के बीच यहां कई बार पुलिस और माओवादियों के बीच मुठभेड़ हुई। कई निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की गई और सरकारी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई, आधुनिक हथियारों की तैनाती और सड़क कनेक्टिविटी बढ़ने के कारण नक्सलियों का असर काफी घटा था। यही कारण है कि गांव वाले मान बैठे थे कि नक्सली अब खत्म हो चुके हैं। लेकिन लेंबोडीह की यह घटना बताती है कि नक्सली अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं।
बड़ा सवाल
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क्या यह हमला सिर्फ संतन गंझू को लेकर था या फिर नक्सली दोबारा अपनी मौजूदगी जताना चाहते हैं?
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क्या सुरक्षा एजेंसियां आने वाले दिनों में और बड़ी वारदातों को रोक पाएंगी?
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ग्रामीणों की सुरक्षा को लेकर सरकार क्या ठोस कदम उठाएगी?
इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में सामने आएगा। फिलहाल इतना तय है कि इस घटना ने एक बार फिर चतरा को नक्सली नक्शे पर सुर्खियों में ला दिया है।
लेंबोडीह गांव में हुई यह घटना सिर्फ एक वाहन जलाने या घर में ताला लगाने की नहीं है, बल्कि यह संदेश है कि नक्सली अब भी सक्रिय हैं और मौका मिलते ही दहशत फैलाने से पीछे नहीं हटते। ग्रामीण सहमे हुए हैं और प्रशासन पर सुरक्षा का दबाव बढ़ गया है।
झारखंड जैसे संसाधन संपन्न राज्य में शांति और विकास तभी संभव है जब नक्सलवाद पर पूरी तरह लगाम लगाई जा सके। लेकिन लेंबोडीह की इस वारदात ने साफ कर दिया है कि अभी भी यह संघर्ष जारी है।
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