Bhilai Basantotsav: भिलाई में बसंतोत्सव की धूम, कवियों की रचनाओं से गूंजा साहित्यिक मंच!
भिलाई में अभिभाषक साहित्य संसद दुर्ग द्वारा आयोजित बसंतोत्सव में कवियों ने गीत, ग़ज़ल और हास्य रचनाओं से समां बांधा। जानें, इस साहित्यिक महफिल की खास बातें।
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भिलाई: छत्तीसगढ़ के भिलाई में बसंत की मादकता और साहित्य की सुगंध एक साथ घुल गई जब अभिभाषक साहित्य संसद दुर्ग ने अपने वार्षिक बसंतोत्सव का भव्य आयोजन किया। इस शानदार महफिल में दुर्ग-भिलाई समेत अंचल के प्रतिष्ठित कवियों और साहित्य प्रेमियों ने शिरकत की।
मां सरस्वती की वंदना से हुआ शुभारंभ
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के तैल चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से हुआ। इसके बाद श्रीमती आशा झा ने अपनी गूंजती सरस्वती वंदना से माहौल को भक्तिमय कर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अभिभाषक साहित्य संसद दुर्ग के अध्यक्ष आर.एस. यादव ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध साहित्यकार समीर त्रिपाठी मौजूद रहे। विशेष अतिथि संजीव तिवारी और आशा झा ने भी मंच की शोभा बढ़ाई।
कवियों की महफिल: गीत, ग़ज़ल और हास्य रचनाओं से हुआ समां बांधा!
बसंतोत्सव में हिंदी, छत्तीसगढ़ी और अवधी भाषा के कवियों ने गीत, ग़ज़ल, हजल और कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम में जिन कवियों ने अपनी काव्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया, उनमें प्रमुख थे:
- राम बरन कोरी 'कशिश' – अपनी रोमांटिक कविताओं से तालियां बटोरी।
- अचानक गोरखपुरी – हास्य-व्यंग्य की धारदार प्रस्तुति से माहौल में ठहाके गूंज उठे।
- हाजी रियाज खान 'गौहर' – अपनी ग़ज़ल से समां बांध दिया।
- जी.टी.पी.सी. गुप्ता – छत्तीसगढ़ी रचनाओं से अपनी अलग पहचान बनाई।
- राजेश महाड़िक, नरेश विश्वकर्मा, ओमवीर करन, डॉ. नौशाद सिद्दीकी, नावेद रज़ा – अपने-अपने अनोखे अंदाज से महफिल में चार चांद लगाए।
- लक्ष्मण ललखेर, मो. अबू तारिक, मनोज शुक्ला, ताराचंद शर्मा 'मथुरिया' – साहित्यिक रंग जमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
- इंदरचंद लुनिया, प्रशांत जोशी, सुभाष सतपथी – अपनी भावनात्मक और प्रेरणादायक रचनाओं से दर्शकों को भावुक कर दिया।
संगीत और काव्य का संगम: बांसुरी वादन ने मोह लिया मन
इस बसंतोत्सव में बांसुरी वादक शिव नारायण ने अपनी मधुर तान से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी प्रस्तुति ने इस आयोजन को संगीत और साहित्य का अद्भुत संगम बना दिया।
इतिहास में झांकें तो… साहित्य और बसंत का है गहरा नाता
भारत में बसंत ऋतु का साहित्य से गहरा संबंध रहा है। संस्कृत से लेकर हिंदी और उर्दू तक, कवियों ने बसंत का गुणगान किया है। महाकवि कालिदास के ‘ऋतुसंहार’ में बसंत का मोहक चित्रण मिलता है, वहीं कबीर और तुलसीदास जैसे संत कवियों ने भी इस ऋतु की छटा को अपनी काव्यधारा में पिरोया है।
मध्यकालीन भक्ति आंदोलन में बसंत ऋतु आध्यात्मिक आनंद का प्रतीक बन गई, जबकि आधुनिक कवियों ने इसे प्रकृति और प्रेम का उत्सव बताया। आज भी यह परंपरा जीवंत है, और भिलाई का यह बसंतोत्सव इसका सजीव प्रमाण है।
श्रद्धांजलि का भावुक क्षण
कार्यक्रम के समापन पर वरिष्ठ साहित्यकार स्व. राधेश्याम सिंदूरिया और साहित्यकार व अधिवक्ता स्व. ओम प्रकाश शर्मा को श्रद्धांजलि दी गई। साहित्य प्रेमियों ने उनकी साहित्यिक उपलब्धियों को याद किया और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
क्या है अभिभाषक साहित्य संसद दुर्ग?
अभिभाषक साहित्य संसद दुर्ग छत्तीसगढ़ में साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख मंच है। यह मंच हर साल बसंतोत्सव और अन्य साहित्यिक आयोजनों के जरिए नवोदित और वरिष्ठ साहित्यकारों को जोड़ने का कार्य करता है।
साहित्य प्रेमियों के लिए एक यादगार शाम
यह बसंतोत्सव साहित्य, संगीत और कला के अद्भुत संगम का साक्षी बना। कवियों की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को हंसाया, रुलाया और सोचने पर मजबूर कर दिया।
इस तरह के आयोजन साहित्य और संस्कृति को जीवंत बनाए रखते हैं और नई पीढ़ी को साहित्य की ओर आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
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