क्या आदिवासियों की जायज मांगों को अनसुना कर रही है सरकार? जानिए कोल्हान बंद के पीछे की पूरी कहानी
क्या आदिवासियों की जायज मांगों को अनसुना कर रही है सरकार? जानिए कोल्हान बंद के पीछे की पूरी कहानी
भूमिका
धरना-प्रदर्शन जारी रहने की सूचना दी एवं उनके साथ मिलकर समाधान के लिए वार्ता करने हेतु लिखित प्रस्ताव भी दिया गया। अनिश्चितकालीन धरना के 14 दिन बाद अचानक 11 जुलाई 2024 को लगभग 11 बजे दिन में सरायकेला खरसावाँ जिला प्रशासन के आदेश पर करीब 400 पुलिस बल धरना स्थल पर आए और अचानक लाठी चार्ज कर दिया। इस घटना में कई लोग घायल हो गए और पुलिस ने धरनास्थल से 35 महिला-पुरुष, जिनमें एक दूधमुंहे बच्चे की माँ भी थी, को गिरफ्तार कर खरसावाँ थाना लेकर चली गयी।
आदिवासी आंदोलन का पृष्ठभूमि
तितिरबिला गाँव सरायकेला थानान्तर्गत आता है, 11 जुलाई 2024 को ही कोल्हान प्रमंडल के वरिष्ठ प्रशासनिक पदाधिकारियों को अमानवीय घटना की लिखित रूप से जानकारी दी गई। आदिवासी जहाँ-जहाँ अपनी जायज मांगों को लेकर संवैधानिक, कानूनी एवं लोकतांत्रिक तरीके से आन्दोलन करते हैं, तो प्रशासन द्वारा उनके ऊपर सरकारी कार्य में बाधा पहुँचाने का केस दर्ज कर दिया जाता है।
प्रशासन का क्रूर रवैया
ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिनमें हाल ही में हथियाडीह, आदित्यपुर में भी देखने को मिला है जिसमें आदिवासी महिलाओं को कई महीनों तक जेल की यातना सहनी पड़ी। ऐसा ही एक वाक्या चांडिल अनुमंडल के दो आदिवासी जिला परिषद् सदस्यों पर भी हुआ, जिसमें एक महिला सदस्य भी शामिल थीं, उनपर मुकदमा दर्ज किया गया। इसी तरह की समस्या रुँगटा माईन्स द्वारा राजनगर अंचल में भूमि अधिग्रहण एवं हस्तान्तरण को लेकर उत्पन्न हुई है।
कोल्हान बंद का आह्वान
इन्हीं सब उपरोक्त समस्याओं की बार-बार पुनरावृत्ति एवं आदिवासी जमीन को हड़पने की शडयंत्र को रोकने के लिए कोल्हान बंद का आह्वान किया गया है। इसमें हमारी मांगे निम्न प्रकार हैं:
मांगे
1. भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का अक्षरसः अनुपालन सुनिश्चित हो
अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के मानकी, माझीबाबा के द्वारा ग्राम सभा से पारित होने के बाद ही भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आरम्भ की जाए।
2. सरना धर्म को मान्यता दी जाए
आदिवासी प्रकृति पूजक हैं, हमारा धर्म सरना है। हम सरना धर्मावलम्बी केन्द्र सरकार से सरना कोड की मांग कर रहे हैं क्योंकि हमारी संख्या जैन धर्मावलम्बियों से अधिक है।
3. हो, मुण्डारी एवं भुमिज भाषाओं को संवैधानिक मान्यता मिले
कोल्हान क्षेत्रों में बोली जाने वाली हो, मुण्डारी एवं भुमिज भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
4. महाविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों के पद भरें जाएं
सरकार महाविद्यालयों एवं शैक्षणिक संस्थानों के नाम पर आदिवासियों की सैकड़ों एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर चुकी है। परन्तु कोल्हान विश्वविद्यालय में पिछले एक वर्ष से VC, Pro VC, FO, Registrar & CCDC के महत्वपूर्ण पद खाली हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव शैक्षणिक व्यवस्था पर पड़ रहा है। यह एक गम्भीर एवं चिन्ताजनक विषय है जिसे सरकार गम्भीरतापूर्वक नहीं ले रही है।
5. संविधान की पाँचवी अनुसूची के प्रावधानों का सख्ती से पालन हो
संविधान की पाँचवी अनुसूची के अनुच्छेद 244 (1) में वर्णित प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए। यह एक गम्भीर साजिश का हिस्सा है कि 24 सालों में झारखण्ड सरकार के समक्ष संविधान की पाँचवी अनुसूची, PESA कानून, SPT/CNTAct, समता जजमेंट 1997 सभी पंगु हो गए हैं।
संघर्ष का संकल्प
आदिवासी बनता है दो चीजों से – एक अलग संस्कृति और दूसरा जमीन की मालकियत। ये दोनों चीजों से आदिवासियों को बेदखल कर दो तो वह आदिवासी नहीं रहता है। यह संघर्ष करो या मरो की स्थिति है। जब तक अंतिम सांस रहेगी, तब तक संघर्ष का संकल्प लें। आदिवासी झारखण्डी जिस दिन संघर्ष का रास्ता परित्याग करेगा, समझो कि वह मर गया है।
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