झारखंड में क्षेत्रीय दलों की असफलता: नए चेहरे और नई चुनौतियां

झारखंड में क्षेत्रीय दलों की असफलता का कारण पैसा है या विचित्र मानसिकता? जानिए क्यों झारखंड के नेता अपनी पार्टियों को लंबे समय तक नहीं टिकने दे पाते।

Aug 21, 2024 - 18:21
झारखंड में क्षेत्रीय दलों की असफलता: नए चेहरे और नई चुनौतियां
झारखंड में क्षेत्रीय दलों की असफलता: नए चेहरे और नई चुनौतियां

जमशेदपुर: झारखंड, एक ऐसा राज्य जहां राजनीतिक परिदृश्य में नई पार्टियों का उभरना और फिर उनका असफल हो जाना, कोई नई बात नहीं है। झारखंड में जितनी भी क्षेत्रीय पार्टियां उभरी हैं, उनमें से अधिकतर या तो कुछ ही समय में बिखर गईं, या फिर बड़े दलों में विलीन हो गईं। सवाल उठता है कि आखिर क्यों क्षेत्रीय दल झारखंड में अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर पाते? क्या इसके पीछे पैसे की कमी है या फिर विचित्र मानसिकता का खेल?

बाबूलाल मरांडी और झारखंड विकास मोर्चा: एक असफलता की कहानी

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 2006 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से नाराज होकर झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) का गठन किया। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मरांडी बाबू बीजेपी को चुनौती देकर झारखंड की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाएंगे। लेकिन, 14 साल के अंदर ही उनकी पार्टी पूरी तरह से असफल हो गई और अंततः मरांडी को बीजेपी में वापसी करनी पड़ी।

भारतीय जनतांत्रिक मोर्चा: एक और असफल प्रयास

बीजेपी से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले नेता, जिन्होंने चुनाव में जीत भी हासिल की, ने 2021 में भारतीय जनतांत्रिक मोर्चा का गठन किया। लेकिन पार्टी के पहले चुनाव के बाद ही दल-बदल की राजनीति शुरू हो गई, और नेता जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए।

नया मोर्चा, नई उम्मीदें: झारखंडी लोकतांत्रिक खतियानी मोर्चा

इस वर्ष, एक और नई पार्टी झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य में उभर रही है, जिसका नाम है झारखंडी लोकतांत्रिक खतियानी मोर्चा। इस पार्टी को लेकर टाइगर जयराम महतो चर्चा का विषय बने हुए हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में अपनी गहरी छाप छोड़ी है और इस साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव में 60 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि झारखंडी लोकतांत्रिक खतियानी मोर्चा झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य में कितनी दूर तक जा पाता है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM): असफलताओं के बीच सफलता की कहानी

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) शायद इस राज्य की एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने लंबी अवधि तक खुद को टिकाए रखा है। हेमंत सोरेन की अगुआई में JMM ने कई बार ऑपरेशन लोटस जैसी बड़ी राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया है और उन्हें नाकाम करने में सफल रहा है।

सुदेश महतो और बीजेपी: राजनीतिक गठजोड़ की नई दिशा

इस बीच, सुदेश महतो भी बीजेपी के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। दोनों दलों के बीच यह राजनीतिक दोस्ती कब तक चलेगी, यह भी एक बड़ा सवाल है। झारखंड की राजनीति में गठजोड़ का महत्व हमेशा से रहा है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह गठजोड़ आने वाले चुनावों में कितना कारगर साबित होता है।

नेताओं की मानसिकता और क्षेत्रीय दलों की असफलता

झारखंड में क्षेत्रीय दलों की असफलता का एक बड़ा कारण नेताओं की मानसिकता और आत्मबल की कमी है। यहां के नेता अक्सर बड़े दलों से नाराज होकर नई पार्टी का गठन करते हैं, लेकिन जब व्यक्तिगत लाभ और सत्ता की बात आती है, तो वे अपने सिद्धांतों से समझौता करने में देर नहीं लगाते।

पैसे की कमी या विचित्र मानसिकता?

इस सवाल का उत्तर शायद दोनों के बीच छिपा है। पैसे की कमी एक हद तक प्रभाव डाल सकती है, लेकिन असल में क्षेत्रीय दलों की असफलता का बड़ा कारण नेताओं की विचित्र मानसिकता और सत्ता की लालसा है। झारखंड के नेता जब तक आत्मबल नहीं दिखाएंगे और अपनी पार्टी को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक क्षेत्रीय दलों का फलना-फूलना मुश्किल है।

Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।