वनरक्षी से वनपाल पदोन्नति नियम में संशोधन से नाराज वनरक्षियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल
झारखंड राज्य में वनरक्षी से वनपाल में पदोन्नति के नियम में संशोधन के कारण वनरक्षी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। राज्य सरकार द्वारा 50% सीधी नियुक्ति प्रक्रिया का विरोध हो रहा है। वनरक्षियों के हितों को ध्यान में रखते हुए उनके हक के लिए यह हड़ताल की जा रही है।
झारखंड के वनरक्षी अपने हितों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं। जिले के वनरक्षियों ने वनपाल में पदोन्नति के नियम में राज्य सरकार द्वारा किए गए संशोधन का कड़ा विरोध किया है। इस संशोधन के तहत अब 50% पदों पर सीधी नियुक्ति की जाएगी, जिससे वनरक्षियों में गहरा असंतोष पैदा हो गया है।
क्यों हो रही है हड़ताल?
झारखंड राज्य अवर वन सेवा संघ के आह्वान पर, जिले के लगभग 45 वनरक्षी शुक्रवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। ये सभी वन प्रमंडल पदाधिकारी के कार्यालय परिसर में टेंट लगाकर धरना दे रहे हैं। संघ के जिला मंत्री शुभम पंडा ने बताया कि 2017 में नियुक्त किए गए राज्य के वनरक्षियों के हितों के विरुद्ध यह नियमावली बनाई गई है। 2014 में बनी नियमावली के अनुसार वनरक्षियों को वनपाल के 100% पदों पर पदोन्नति मिलनी थी, लेकिन अब इस संशोधित नियमावली के तहत केवल 50% पदों पर सीधी नियुक्ति की जाएगी।
वनरक्षियों का आरोप
वनरक्षियों का कहना है कि यह कदम उनके अधिकारों का उल्लंघन है और उनके करियर की संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वे राज्य सरकार से इस निर्णय को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस निर्णय से उनके प्रमोशन के अवसरों में कटौती होगी और उनकी सेवा शर्तों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से अब तक इस मामले पर कोई ठोस बयान नहीं आया है, लेकिन यह कहा जा रहा है कि यह निर्णय संगठनात्मक संरचना को मजबूत करने और अधिक प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है। सरकार का तर्क है कि सीधी नियुक्ति से वन विभाग की कार्यक्षमता में सुधार होगा और नए प्रतिभाशाली अधिकारियों की भर्ती हो सकेगी।
अगले कदम
वनरक्षियों की यह हड़ताल राज्यभर में फैल सकती है, अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं। झारखंड राज्य अवर वन सेवा संघ ने संकेत दिया है कि अगर सरकार ने उनकी मांगों को अनसुना किया तो वे अपनी हड़ताल को और भी उग्र रूप दे सकते हैं। यह मामला अब राज्य के अन्य जिलों में भी चर्चा का विषय बन गया है और उम्मीद है कि जल्द ही इस पर कोई समाधान निकल सकता है।
झारखंड में वनरक्षियों की हड़ताल उनके अधिकारों और पदोन्नति के नियमों के खिलाफ आवाज उठाने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। राज्य सरकार को अब यह देखना होगा कि वह इस स्थिति को कैसे संभालती है, ताकि न सिर्फ वनरक्षियों के हित सुरक्षित रहें, बल्कि वन विभाग की कार्यक्षमता भी प्रभावित न हो।
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